आम हारे, चीकू जीते

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अपना पिछला करतब करने के बाद मेरी तबीयत नासाज हो गई थी, उसके दो कारण थे, पहला कि बर्फ़ के अपने बदन पर प्रयोग से मुझे ठण्ड लग गई थी, दूसरा यह कि मेरा मासिक धर्म शुरु हो गया था।

लेकिन दिल बेचैन था कुछ नया करने के लिए !

तो मैंने अपने मित्र से पूछा कि क्या करूँ तो उन्होंने मुझे डाँटते हुए 3-4 आराम करने को कहा। मेरे जिद करने पर उन्होंने मुझसे चैट ही बन्द कर दी।

लेकिन कुछ तो करना था, मैंने श्रेया से ही कुछ सलाह मांगी तो उसके बताए अनुसार हमने कल रात 3 कारनामे एक साथ किए।

  1. कूल कूल: इसमें हम दोनों चटाई पर अगल बगल लेट गईं…

फिर दोनों ने अपनी चूचियों पर कंगन (बड़ी चूड़ियाँ) रखी…

सामने घड़ी रखकर, समय नोट करके फिर उन कंगनों में हमने आइस क्यूब रखे एक चूची पर 5 टुकड़े….

और हमारी प्रतियोगिता शुरु हो गई..

मैं केवल 3 मिनट तक ही सह पाई। बर्फ़ का पानी बह कर पीठ के नीचे आ रहा था और गुदगुदी हो रही थी इसलिए…

इसमें चीकू जीते और आम हार गये…

मैं हार गई, श्रेया जीत गई… एक बार मेरे मित्र ने हमारी चूचियों का नामकरण किया था, मेरे विशाल चूचों का नाम उन्होंने मैन्गो यानि आम रखा था और श्रेया की छोटी चूचियों को चीकू का नाम दिया था।

  1. ठण्ड में गरमी का अहसास: उसके बाद हमारे स्तन काफ़ी ठंडे हो गये थे, और सख्त भी, तब श्रेया ने एक नया खेल बताया, मोम्बत्ती को जलाना और उसे फूंक मार कर बुझा कर बुझते ही एकदम से चूचियों पर लगाना, हमारी चूचियाँ तो बर्फ़ हो रही थी, मोमबत्ती के गर्म मोम से जला नहीं बल्कि बर्फ़ीली चूचियों को कुछ राहत ही मिली !

  2. आखिरी खेल था वेट लिफ्टिंग..

इसमें बड़ा मज़ा आया.. हमरे घर में तांबे के छोटे छोटे लोटे हैं, चार लोटों को एक एक को चारों ओर से धागे से बांधा, धागों के दूसरे सिरे पर कपड़े सुखाने वाली चिमटियाँ बांधी, फिर उन चिमटियों को अपने चुचूकों पर लगाया तो लोटे हमारे चुचूकों के सहारे लटक गए।

अब शुरु हुआ वेट लिफ़्टिंग यानी भारोत्तोलन का खेल !

हम दोनों ने चुचूकों से लोटे उठाने थे, जो ज़्यादा वजन उठाएगी वो जीतेगी…

हम दोनों चटाई पर पालथी मार कर पूरी नंगी बैठी थी, दोनों ने खाली लोटे आसानी से उठा लिए। तब धीरे धीरे उनमें पानी डाला फिर जैसे जैसे लोटों का भार बढ़ रहा था, वैसे वैसे हमारे निप्प्ल नीचे खिंच रहे थे, तकलीफ़ हो रही थी, मुश्किल हो रही थी..

फिर भी मैंने अपने दोनों आमों से दोनों लोटे उठा लिए, और चीकू अभी कच्चे हैं तो मजबूत हैं ना, इसलिए श्रेया ने तो बहुत आसानी से लोटों का भार सह लिया।

जब दोनों ने पानी भरे लोटों का भार सह लिया तो ना कोई हारी ना कोई जीती !

फ़िर सोचा कि लोटों का भार बढ़ाया जाए। लेकिन कैसे?

तभी ख्याल आया कि घर में काफ़ी नट बोल्ट बचे पड़े हैं ! लेकिन वो भी बाहर वाले स्टोर में हैं। उन्हें लाने के लिये खुले में से जाना पड़ता। दोनों ने तय किया कि हम दोनों इसी तरह लोटों को निप्पलों पर लटकाए ही स्टोर तक जाएंगी।

हम दोनों बहुत धीरे धीरे से उठ कर खड़ी हुई, उठते हुए लोटों के डोलने से काफ़ी खिंचाव हो रहा था। जैसे कैसे हम दोनों धीरे धीरे स्टोर तक गईं, यह डर भी था कि कोई देख ना ले, वैसे हमारे घर की बाऊण्डरी वाल काफ़ी ऊन्ची है 7-8 फ़ीट की तो ज्यादा डर नहीं था।

मैंने स्टोर खोल कर वो डिब्बा उठाया जिसमें नट बोल्ट थे और उसे लेकर दोनों नंगी धीरे धीरे चलती हुई कमरे में आ गई और अब काफ़ी सारे नट छाँट कर रख लिये और एक एक करके लोटों में नट डालने शुरु किए। जैसे ही एक नट डालते तो थोड़ा सा पानी बाहर गिर जाता। मेरा दर्द बढ़ रहा था पर श्रेया आराम से सारा भार सह रही थी। उसके कच्चे चीकुओं में काफ़ी जान है, मजबूत हैं !

मैं ना सह सही, अपने आप नीचे झुक गई तो मेरे लोटे नीचे चटाई पर टिक गए और मैंने अपनी हार स्वीकार कर ली।

श्रेया जीत गई…

आम हार गए, चीकू जीत गए।

पर सच में काफ़ी मज़ा आया… हारने पर मैंने उसे अपनी नई सिल्क साड़ी उसे गिफ्ट भी दी…

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