इत्तेफाक से जेठ बहू के तन का मिलन-1

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दोस्तो, आज आप लोगों के समक्ष एक ऐसी कहानी प्रस्तुत कर रहा हूं जिसमें काफी इत्तेफाक हैं क्योंकि कभी-कभी जिंदगी भी इत्तेफाक के दम पर आगे बढ़ती है। तो ऐसा ही इत्तेफाक इस कहानी में भी है लेकिन कहानी शुरू करने से पहले मैं इस कहानी के पात्र का परिचय दे देता हूं।

इस कहानी का मुख्य पात्र मैं यानि कमल जिसके साथ घटना घटी, फिर सिंधू, जो कहानी की नायिका है और फिर आलोक है जो मेरा छोटा भाई है। मैं एक बहुत अच्छा डांसर हूं और साथ ही साथ कोरियोग्राफर भी हूँ, मैं काफी लोगों को डांस सिखाता हूँ उसमें से मेरा भाई भी मुझसे डांस सीखता है। हमारा एक ग्रुप है जो कई जगह जाकर डांस का प्रोग्राम करता है। प्रोग्राम के कारण हम लोग अक्सर एक साथ बाहर होते हैं। हमारी टीम में मेरे अलावा आलोक, सिंधू और तीन चार लोग और हैं। प्रोग्राम के हिसाब से मेरी टीम के मेम्बर घट-बढ़ सकते हैं।

मैं एक कोरियोग्राफर की हैसियत से लड़के और लड़कियों के हाथ पैर को पकड़कर उनके स्टेप सही कराता हूँ। इसलिये मेरी नजर में सब एक जैसे थे, केवल मेरे भाई को छोड़कर। पता नहीं कब, प्रोग्राम करते करते आलोक और सिंधू एक दूसरे के करीब आ गये और इतने करीब आ गये कि उनको एक डोर में बांधने के लिए उनकी शादी करानी पड़ी। जबकि मैं अभी भी अपनी शादी के खिलाफ हूं। खैर दोनों की शादी को साल बीत गया था लेकिन अभी भी दोनों हमारे ग्रुप के मेम्बर थे। लेकिन अब मेरी नजर सिंधु के प्रति बदल चुकी थी क्योंकि अब वो मेरी बहु थी। लेकिन कभी कभी स्टेप सही करने के लिये मुझे सिंधु को छूना पड़ता था।

चूंकि हम लोग काफी समय से एक दूसरे के साथ काम कर रहे थे, इसलिये हम सब के बीच झिझक कम थी, फिर भी अब एक निश्चित फासला बन चुका था। हम लोग प्रोफेशनल और व्यक्तिगत जीवन को बड़े अच्छे से निभा रहे थे। कुल कहने का मतलब, जिस जगह जैसी जरूरत पड़ती, वैसी ही भूमिका में हम सब आ जाते।

उन दोनों की शादी को एक साल से ऊपर हो चुका था और उनकी शादी के ऐन्वरसरी के दिन ही हमारी टीम को एक बहुत ही बड़ा स्टेज मिला जहां पर हमें परफार्मेन्स करना था और यदि परफार्मेन्स अच्छा होने की स्थिति में हमारे जीवन में काफी बदलाव आने वाला था। हांलांकि यह कोई टीवी का प्रोग्राम नहीं था, फिर भी हमारे अथक मेहनत के बदले मिलने वाला बहुत बड़ा इनाम था। इस कहानी का इत्तेफाक यहां से शुरू होता है।

जिस कम्पनी के लिये हमें परफार्मेन्स करना था, उस कम्पनी ने मुझे, मेरे भाई और सिंधू जो कि मेरी बहू भी थी को दिल्ली में परफार्मन्स के लिए चुना। घर में खुशियाँ थी। अब हम तीनों ही अपने परफार्मेन्स को बेहतर करने के लिये कड़ी मेहनत कर रहे थे; दिन रात एक किये हुए थे।

धीरे धीरे वो दिन भी नजदीक आता जा रहा था जब हम लोगों को अपने जीवन को आर्थिक पथ पर आगे बढ़ने के लिये एक यात्रा दिल्ली तक की करनी थी। पर तभी एक हादसा या दूसरा इत्तेफाक था जो मेरी और सिंधू की जिंदगी के साथ जुड़ा हुआ था। हम तीनों का रिजर्वेशन स्लीपर क्लास में था और वो भी वेटिंग थी, दो दिन ही रह गये थे, लेकिन वेटिंग क्लीयर नहीं हुयी थी। हालाँकि हम सभी ने सोर्स का प्रयोग किया हुआ था और उम्मीद थी कि जाने से पहले तक सीट क्लीयर हो जायेगी।

हम तीनों ही जाने के लिये अपनी अपनी तैयारी में लगे थे कि शाम को खबर मिली कि आलोक का एक्सीडेन्ट हो गया है और उसका घुटना और एड़ी बुरी तरह जख्मी हो चुके है। हालांकि डाक्टर ने पुष्टि कर दी कि हड्डी को कोई नुकसान नहीं हुआ है, फिर भी चलने के लिये कम से कम दस दिन तो लगेंगे ही लगेंगे।

अब मेरा दिल बैठ चुका था, या तो यों भी कहें कि हम तीनों का दिल बैठ चुका था। पर तभी मेरे घर के सदस्यों ने एक रास्ता सुझाया कि किसी नये को प्रोग्राम में जोड़ने से अच्छा मैं और सिंधू उस प्रोग्राम को करें। मुझे क्या सिंधू को भी यह सुझाव पसंद नहीं आया और हम लोगों ने सिरे से इसको नकार दिया और यह मान लिया कि अगर किस्मत में नहीं है तो कोई बात नहीं।

पर शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था। जब यह बात आलोक को पता चली तो उसने हम दोनों से आग्रह किया कि ऐसा अवसर ना जाने दे। जब हम इस पर भी तैयार नहीं हुए तो उसने अन्त में अपनी कसम दे दी और साथ यह भी कहा कि ठीक होने के ऊपरांत वो डांस छोड़ देगा, यदि हमने उसकी बात नहीं मानी।

दोस्तो, इत्तेफाक को आप लोग कहानी में देखते रहियेगा कि किस किस जगह हमारे साथ इत्तेफाक हुआ था।

मन मारकर मैं और सिंधू जाने के लिये तैयार हो गये। वो दिन भी पास आया जब हमें दिल्ली के सफर के लिये ट्रेन पकड़नी थी। समय से पहले मैं और सिंधू कुछ एक-दो लोगों के साथ स्टेशन आ गये थे क्योंकि रिजर्वेशन कंफर्म के साथ-साथ आलोक का टिकट भी कैसिंल जो कराना था। सिंधू इस समय भारतीय परिधान मतलब साड़ी पहने हुए थी।

स्टेशन पहुंचने पर टिकट चेक की तो पाया कि एक आर-ए-सी ही मिल पायी थी। मेरा एक बार फिर इस यात्रा को रोक देने का था और सिंधू भी यही चाहती थी। लेकिन लोगों के दबाव और यह बोलने पर कि ऐसा मौका बार-बार नहीं आता, एक बार ट्रेन पर चढ़ जाओ, फिर टी-टी से मिलकर एक और सीट की व्यवस्था करा लेना।

मैं दोनों का सामान लेकर सीट पर पहुंचा, अन्दर काफी भीड़ थी। किसी तरह हम दोनों मैंनेज करके अन्दर पहुंचे। यह तो अच्छा था कि जो आर-ए-सी थी वो लोअर थी और बोगी के बीच की थी। हम दोनों अपनी सीट पर बैठ गये। थोड़ी देर बाद ट्रेन चल दी।

रात का सफर था, पता नहीं कहां की भीड़ थी कि अगले स्टेशन पर हमारी बोगी में और भीड़ आ गयी। हमारे सहयात्री ने बीच वाली सीट खोल ली। अब हम दोनों सर झुकाये हुए सीट पर बैठे रहे और टी-टी के आने का इंतजार करते रहे।

टीटी आया तो आया नहीं पर जो नीचे जगह खाली थी। वहां पर भी एक महोदय चादर जमीन पर बिछा कर लेट गये। रात बढ़ती जा रही थी और मुझे नींद भी आगोश में ले रही थी। मैंने सिंधू को लेट जाने को कहा। तो सिंधू प्रतिउत्तर में बोली- भईया, आप लेट जाओ मैं खिड़की से टेक लगाकर सो जाऊंगी। लेकिन मैंने सिंधू को जोर देकर लेटने के लिये कहा तो वो बोली- भईया आधे में आप लेट जाओ, आधे में मैं लेट जाती हूं। “ठीक है.” मैं बोला।

सिंधू लेट गयी और मैं जो ऊपर की बर्थ में चढ़ने के लिये पावदान बना था, उस पर टिक गया और अपने पैर फैला लिये। लेकिन मेरे पैर सिंधू के कमर के नीचे उसके हिप के साईड वाली जगह से टच करने लगा तो मैंने अपने पांव सिकोड़ लिये। यह क्रम तब तक चलता रहा जब तक कि मुझे नींद ने कसकर अपनी आगोश में ले लिया।

रात को सोते समय मुझे अक्सर करके सेक्स के सपने आते हैं। अब सपने में देख रहा हूं कि वही हालात हैं जैसा कि अभी मेरे साथ असल में हैं लेकिन उस सपने में सिंधू की जगह कोई दूसरी लड़की है और ट्रेन में बहुत भीड़ है। मैंने रिक्वेस्ट की तो उस लड़की ने मुझे अपनी सीट पर बैठा लिया। प्रॉब्लम वही थी जो इस समय मेरे साथ थी। दोनों उसी पोजिशन में बैठकर सीट शेयर किये हुए थे और मेरा पैर उस लड़की के नाजुक अंगों से टच कर रहा है और वो अपना पैर हटाने के चक्कर में मेरे सेन्टर पोजिशन में टच कर गया।

एक-दो बार ऐसा हुआ फिर मेरे पैर का अंगूठा उसके सेन्टर से टच करने लगा, धीरे-धीरे मेरा अंगूठा उसकी चूत के अन्दर घुसने की कोशिश करने लगा, लेकिन बीच में उसकी पैन्टी दीवार बनकर डटी हुयी थी, तो अंगूठा उसकी चूत की दीवार को ऊपर से ही रगड़ने लगा.

तभी मुझे लगा कि चूत मुझसे दूर हो गयी है। मेरी नींद खुल गयी तो देखा तो सिंधू अपने घुटने को मोड़कर बैठी हुई है और अपना मुंह घुटने पर टिकाये है। मैंने उसको पूछा- क्या हुआ, क्यों उठकर बैठ गयी? मुझे एक उलझन सी हो रही थी, क्योंकि एक अच्छा खेल चल रहा था और खेल के बीच में ही नींद टूट गयी।

एक-दो बार और पूछने पर बोली- वाशरूम जाना है। “हाँ हाँ… बिल्कुल जाओ लेकिन अकेले नहीं जा सकती।” “ओह…” “चलो, मैं चलता हूं।” कहकर मैं आगे आगे रास्ता बनाता हुआ आगे चल रहा था और सिंधू मेरे पीछे पीछे आ रही थी।

वो एक बाथरूम में घुसी और मैं दूसरे बाथरूम में घुस गया। फिर दोनों वापिस अपनी सीट पर आ गये। हम दोनों अपनी अपनी पोजिशन में फिर लेट गये। मुझे नींद नहीं आ रही थी, कारण बस वही सपना था, जिसके वजह से मेरे जिस्म में एक अकड़न थी और मुझे लग रहा था कि अन्दर कुछ ऐसा रूका है वो जब तक बाहर नहीं निकलेगा, तब तक नींद नहीं आने वाली है।

इधर सिंधू भी बार बार करवट बदल रही थी।

एक बार फिर मुझे नींद आ गयी। नींद आने के थोड़ी देर बाद मुझे फिर वही सपना दिखाई पड़ा पर उसी जगह से जहां से मेरी नींद टूटी थी। लेकिन इस बार थोड़ा स बदलाव था। इस बार वो पैन्टीनुमा दीवार नहीं थी जो पहली बार के सपने में थी। अब मेरा अंगूठा उस लड़की की चूत की फांकों के बीच जो हल्की सी गीली सी थी के बीच रगड़ खा रहा था और बीच-बीच में चूत के अन्दर भी जाने का प्रयास कर रहा था।

उधर वो लड़की भी अपने अंगूठे से मेरे पैन्ट के ऊपर रगड़ रही थी। मैंने पैन्ट की जिप खोली और लंड को बाहर निकाल लिया। अब मैं उसकी चूत को अपने अंगूठे से रगड़ रहा था तो वो अपने अंगूठे से मेरे लंड को। थोड़ी देर बाद मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी और उधर उसकी चूत से भी पानी निकल कर मेरे अंगूठे को गीला कर रही थी।

उसके बाद जब मेरा पूरा पानी निकल गया तो मैंने अपने पैरों को सिकोड़ा और सो गया। हाँ इस पूरे सपने में मुझे लड़की का कोई फेस नजर नहीं आया।

सुबह अपने नियत समय पर नींद खुली तो देखा कि सिंधु कपड़े तह कर रख रही है, उसका चेहरा कुछ खिला सा हुआ था। मैंने पूछा- सिंधू क्या बात है, बड़ी खुश नजर आ रही हो? वो चौंकी और बोली- कुछ नहीं भैया, बस दिल्ली आने वाला है।

आधे घण्टे के बाद स्टेशन आने वाला था तो मैं भी उठा और कपड़े ताहने में उसकी मदद कर करने लगा और फ्रेश होने चला गया।

थोड़ी देर में स्टेशन आ गया, हम लोग स्टेशन से बाहर आये, उस कम्पनी ने हमें पिक करने के लिये कैब भेजा था। हम लोग उस कैब में बैठे और थोड़ी देर के बाद हम कम्पनी के गेस्ट हाउस पर पहुंचे।

कहानी जारी रहेगी.

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कहानी का अगला भाग: इत्तेफाक से जेठ बहू के तन का मिलन-2

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