कुंवारी लड़की की कहानी: थेंक यू धर्मेन्द्र जी

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

दो माह पहले ही मैं अठारह वर्ष की हुई. पापा ने मेरे जन्मदिन को स्पेशल बनाने में कोई कर नहीं छोड़ी. होटल में पार्टी अरेंज की गयी. मेरे स्कूल कॉलेज के दोस्तों के साथ ही रिश्तेदार भी थे. और उस वक्त तो मैं खुशी से पागल हो गयी जब केक काटने के दौरान हेप्पी बर्थ डे का गायन समाप्त होते ही मेरे सामने गिफ्ट के रूप में बीस हजार रूपये मूल्य का स्मार्ट फोन था, सब फीचर थे उसमें और जियो की सिम. डेढ़ जीबी रोज इंटरनेट डाटा.

अब मैं एडल्ट हो गयी थी. इसके पहले की मेरी जिन्दगी बहुत ही मासूम रही. पापा की परी और माँ की लाड़ली थी. घर से स्कूल और स्कूल से घर. मगर अब तो क़ानून और मेडिकल साइंस दोनों मुझे मंजूरी देते हैं कि मैं जिन्दगी के नये मोड़ को भी समझूं और उसे जियूं. बस इसी भावना ने मेरी जीवन शैली में परिवर्तन किया और वह घटना घटी, जिसे मैं पहली कहानी के रूप में आपके सामने पेश कर रही हूँ.

घर में हम तीन ही सदस्य हैं. माँ, पापा और मैं. पापा डॉक्टर हैं. माँ एडवोकेट हैं. मैं बी.एससी. कर रही हूँ. साथ ही नीट की तैयारी भी कर रही हूँ. अगर पास हो गयी तो डॉक्टर बनूंगी. नहीं पास हो पायी तो सोचूंगी कुछ और!

दिन में घर पर अकेली ही रहती हूँ. एक दो दिनों में ही मैं मोबाइल के सारे फंक्शन समझ गयी. उस दिन पहली बार मोबाइल पर एडल्ट कंटेंट सर्च की. कुछ वीडियो देखे. इसी सर्च के दौरान मैं अन्तर्वासना तक पहुँच गयी. जहां आप मुझसे मुलाक़ात कर रहे हैं.

अन्तर्वासना पर मैंने हर श्रेणी की एक दो कहानियाँ पढ़ीं. आश्चर्य से भर गयी. ऐसा भी होता है. यहाँ तो कोई किसी को नहीं छोड़ रहा है. न पिता, न भाई, न अंकल, न पड़ोसी, न शिक्षक. सब एक ही कार्य में लगे हैं. क्या वाकई ऐसा होता है. फिर ध्यान आया कि कभी कभी समाचारों में भी देखने पढ़ने को मिलता है कि रिश्तों की मर्यादा तार तार हो गयी. पिता अपनी बेटी के साथ कई वर्षों तक यौनक्रिया करता रहा आदि आदि. तो होता है ऐसा.

अब मेरा भी मन मचलने लगा. मैं भी इस अनुभव से गुजरने की सोचने लगी. शादी को तो अभी कम से कम पांच सात वर्ष हैं. या तो इतना इन्तजार करूं या फिर कोई जुगाड़ लगाऊं. इतंजार अब होने का नहीं तो क्यों तकलीफ में रहूँ. बस एक बार करके देखती हूँ, ऐसा मैंने सोचा और आँखों को खुला छोड़ दिया. तलाशो अपने लिए कोई बांका यार.

मैंने अपने आपको विशेष रूप से सजाना संवारना प्रारम्भ कर दिया. कांच के सामने खड़े होकर अपने को निहारती रहती हूँ. बिना कपड़ों के भी और फैशनेबल कपड़े पहनकर भी. मेरे कमरे में ही बाथरूम है. वहां से नहाकर निकलती हूँ तो तन पर एक भी वस्त्र नहीं रहता है. कमरे में ड्रेसिंग टेबल है. आदमकद है ड्रेसिंग टेबल. गीले बदन के साथ उसके सामने खड़ी होती हूँ तो अपने पर ही मोहित हो जाती हूँ. पांच फीट पांच इंच का मंझला कद है मेरा. रंग एकदम गोरा. जैसे किसी ने मक्खन में थोड़ा सा सिंदूर मिला दिया हो. चेहरे पर चमक है जो इस उम्र की लड़कियों में होती ही है. आँखें बड़ी बड़ी हैं. होठ एकदम लाल सुर्ख हैं. सुराहीदार गला है. सोने की चेन पहनती हूँ.

गले से नीचे नजर जाती है तो कहना ही क्या. मेरा सीना जबर्दस्त है. मेरी सहेलियां मुझे छेड़ा करती हैं. बड़े बड़े उरोज हैं. एकदम सफेद झक्क. छोटे छोटे निप्पल हैं. निप्पल के आसपास भूरे रंग के दो घेरे हैं. पेट सपाट है. नाभि गोल और सुदर है.

और नीचे आइये ना … हल्के हल्के बाल उग रहे हैं. अभी तक एक बार भी मैंने नहीं काटे हैं. बालों का रंग सुनहरा है और सुनहरे बालों से घिरी हुई है मेरी चूत. चूत की फांकें थोड़ी उभरी हुई हैं. गुलाबी आभा लिए यह चूत किसी को भी मदहोश कर देने के लिए काफी है.

जब मैं दर्पण में खुद को देखती तो इस बात के लिए आश्वस्त हो जाती कि इस कायनात में कोई भी बन्दा ऐसा नहीं होगा जिसको मैं चाहूँ और वो मेरा न हो सके. मेरे पास पूरा मायाजाल था. बस अब एक ऐसे व्यक्ति की तलाश थी जिसके साथ मैं वयस्कता यानि एडल्टहुड का अनुभव कर सकूं. सुरक्षित भी रहूँ. बदनामी भी न हो. माता पिता मेरे बड़े प्रतिष्ठित हैं. उनका नाम खराब न हो इस बात की भी मुझे फ़िक्र है.

किसके साथ लूँ यह रंगीन अनुभव? जिस पॉश कालोनी में मैं रहती हूँ वहां एक से बढ़कर एक स्मार्ट लड़के हैं. जब मैं अपनी स्कूटी से निकलती हूँ तो सब हसरत भरी निगाहों से देखते हैं. उम्रदराज लोग भी ताकते रहते हैं. फब्तियां भी कसते हैं. कॉलेज में मेरे क्लास फेलो लड़के भी हमेशा मेरे इर्द गिर्द घूमते रहते हैं. इनमें से कोई भी मेरी एक मुस्कान से ही मेरे कदमों में आ पड़ेगा. परन्तु मैं ऐसा नहीं चाहती हूँ. इससे बदनामी हो सकती है.

कोई ऐसा लड़का हो, जिससे मैं पहली बार मिलूं और मेरा काम हो जाये. मैंने तलाश जारी कर दी. जहाँ चाह वहां राह.

माम डेड के जाते ही उस दिन मैं भी अपनी स्कूटी से घर से निकल गयी. बड़े शहर में रहती हूँ. नाम नहीं बताऊँगी. घर से दस बारह किलोमीटर चलते हुए एक काफी हाउस के बाहर रुकी. अंदर गयी और काफी पीते हुए अपने जीवन के पहले अनुभव के लिए साथी की तलाश करने लगी. कोई नहीं दिखा ढंग का बन्दा … निराश होकर बाहर आ गयी.

स्कूटी पर बैठकर स्टार्ट की तो वह घुर्र घुर्र करके बंद हो गयी. बार बार कोशिश करने के बाद भी वह चालू नहीं हुई. आठ दस बार किक भी मारी, मगर ढाक के तीन पात. कोई परिणाम नहीं निकला. तभी वहां एक लड़का आया. बहुत ही शालीनता से बोला- छोड़िये ! मैं कर देता हूँ स्टार्ट! मैंने देखा तो धड़कन बढ़ गयी. बस यही है, जिसकी मुझे तलाश थी.

मैंने उस दिन मेरून रंग का बड़े गले का टॉप पहना था और बहुत ही टाईट जींस थी. बूब्स तो आधे से अधिक दिख रहे थे. थोड़ा सा झुकती तो दोनों बाहर भागने को तैयार हो जाते. अगर कोई थोड़ा ध्यान से मेरी जींस की तरफ देखता तो उसे मेरी चूत की बनावट का आभास हो जाता और गांड का तो कहना ही क्या. वह तो जींस फाड़कर बाहर निकलने को बेताब थी.

मैं थोड़ा झुकी और स्कूटी से अलग हटकर खडी हो गयी. उस लड़के ने जमकर दो तीन किक मारी और गाड़ी स्टार्ट हो गयी. मुझे गुस्सा आया. इतनी जल्दी स्कूटी ऑन हो गयी. पर प्रकट रूप में कहा- थेंक्स !! आपने आते तो बहुत तकलीफ हो जाती मुझे. वह- मेरा नाम धर्मेन्द्र है. मैं ऑटोमोबाइल इंजीनियर हूँ. मेरे लिए किसी भी गाड़ी को ठीक करना बाएं हाथ का खेल है. मैं- और मेरा नाम नंदिनी है. मैं डॉक्टर बनने की कोशिश कर रही हूँ. धर्मेन्द्र- गुड … अब मैं चलूं?

मैं- जी, मगर मुझे यहाँ से दस किलोमीटर जाना है, अगर गाड़ी फिर बंद हो गयी तो? धर्मेन्द्र- वैसे तो बंद नहीं होगी अब आपकी गाड़ी, आप किस तरफ जा रही हैं? मैंने अपने घर की उल्टी दिशा के बारे में बता दिया. धर्मेन्द्र- अरे वाह! उधर तो मेरा भी घर है. चलिए मैं भी उधर ही जा रहा हूँ. रास्ते में अगर कोई तकलीफ हुई तो मैं आपकी हेल्प कर दूंगा. मैं तो तैयार ही थी. चल दी साथ. धर्मेन्द्र की मोटर सायकल स्टायलिश थी.

कोई आठ किलोमीटर जाने के बाद धर्मेन्द्र ने एक मल्टी के सामने अपनी मोटरसायकल खडी कर दी और बोला- यहीं मैं रहता हूँ. अब आपका घर भी पास में ही है. अब आपको कोई दिक्कत नहीं आयेगी. आप चाहें तो मेरे घर चलिए, काफी पी लीजिये. इसके पहले कि धर्मेन्द्र का इरादा बदलता मैंने तुरंत स्कूटी साइड में लगाई और उसके साथ उसके घर आ गयी.

धर्मेन्द्र एक जेंटलमेन था. वह कोई कोशिश नहीं कर रहा था. मैंने एक लड़की थी और इससे मेरा इगो हर्ट हो रहा था. उसके घर पर कोई नहीं था. उसने बताया कि सभी परिवारजन किसी शादी में शामिल होने के लिए गये हैं और वह भी शाम को जायेगा. मैं सोफे पर बैठ गयी. धर्मेन्द्र काफी बनाने चला गया. मैंने मन ही मन कहा ‘बेटा नंदिनी, तुझे भाग्य से मौका मिला है चूकना मत!’ काफी बहुत ही अच्छी थी.

मैं- आपका कर्ज कैसे उतारूँ. आपने पहले मेरी गाड़ी स्टार्ट की और अब काफी पिलाई. धर्मेन्द्र- नहीं कर्ज की कोई बात नहीं है. मेरा मोबाइल नम्बर ले लीजिये कभी कोई काम हो तो बताइए. मैं- आप मेरे लिए क्या कर सकते हैं? धर्मेन्द्र- जो भी आप कहें. मैं- अगर मैं आपसे अभी कोई काम बताऊं तो आप करेंगे. धर्मेन्द्र- जरुर. बोलो ना नन्दिनी जी.

मुझे उसके मुंह से नन्दिनी जी सुनना अच्छा लगा. इसलिए मैंने यह कहानी नन्दिनी जी के नाम से ही लिखी है. मैं- आप नाराज भी हो सकते हैं! धर्मेन्द्र- प्रोमिस बाबा नहीं होऊंगा नाराज, बोलो?

मैंने संक्षेप में धर्मेन्द्र को अपनी ख्वाहिश बताई. वह पहले तो भौचक्का रह गया. फिर मेरे पास आकर बैठ गया. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और गार्जियन की तरह समझाने लगा- नन्दिनी जी, यह रास्ता बहुत फिसलन भरा है. सम्भल जाओ. मैं- बस एक बार … इसके बाद नहीं.

धर्मेन्द्र- ओके, बताओ क्या चाहती हो? मैं- आपको पूरा नंगा देखना चाहती हूँ. और आपके लंड को छूना चाहती हूँ. मेरे मुंह से लंड शब्द सुनकर धर्मेन्द्र मुस्कुरा दिया, बोला- तो पक्का इरादा करके निकली हो तुम. भगवान का शुक्र है कि मुझसे मिल गयी. आओ मैं तुम्हारी इच्छा भी पूरी कर दूंगा और तुम्हें नुक्सान भी नहीं पहुँचने दूंगा.

वह मुझे अपने कमरे में ले गया और बोला लो कर लो जो चाहो, मैं आधे घंटे के लिए तुम्हारे हवाले हूँ. मैंने उसके शर्ट को खोल दिया. बनियान भी निकाल दी. उसने जींस पहना हुआ था. उसका लंड खड़ा हो गया था. मैंने जींस का बटन खोला और चेन भी खोल दी. काले रंग की कट वाली अंडरवियर उसने पहन रखी थी. मैंने उसे पूरा नंगा कर दिया.

वाह क्या दर्शनीय शरीर था उसका. एकदम फ़िल्मी हीरो की तरह. लंड भी लम्बा और मोटा था. लंड की जड में घुंघराले बाल थे.

मैं उसके शरीर के एक एक भाग को ध्यान से देखने लगी. फिर मैंने अपने कपड़े भी उतार दिए. धर्मेन्द्र ने मुझे देखा और बोला- बहुत सुंदर हो नन्दिनी जी. खुद को बर्बाद मत करो. मैं उससे लिपट गयी. उसका लंड मेरे पेट पर टकरा रहा था. मैंने अपने बूब्स उसके सीने में गड़ा रखे थे. मेरे कहने पर उसने मुझे अपनी बांहों में ले लिया. दस मिनट तक मैं उसे फील करती रही. मेरी चूत गीली हो गयी थी. मन हो रहा था कि यह मुझे पटक के चोद दे तो मजा आ जाये.

पर वह किसी और ही मिट्टी का बना था. नपुंसक नहीं था वह. उसका लंड खड़ा था. एक मिनट में ही वह मेरी चूत को फाड़ सकता था. मुझे उसके संयम पर प्यार आने लगा. मैं- धर्मेन्द्र जी! क्या मैं आपके लंड को छू सकती हूँ? उसने हाँ में सिर हिलाया.

मैंने उसका लंड हाथ में लिया. गर्म और कड़क. मैं उस पर अपने हाथ फिराने लगी. मेरा मन हुआ कि चूम लूं इसे! अबकी बार मैंने पूछा नहीं और लंड पर तीन चार चुम्मे दिए. चूसने का मन हुआ. मुंह खोला और लंड अंदर ले लिया. चूसने लगी. धर्मेन्द्र अविचल खड़ा था. बस कभी कभी सिसकारी निकल जाती उसके मुंह से पर वह बेकाबू नहीं हो रहा था. मैं- धर्मेन्द्र जी मेरे बूब्स को दबा सकते हो आप? वह- हाँ मगर एक बार ही. आपको अनुभव देने के लिए.

मैं गांड की तरफ से उनके सीने से चिपक गयी, अब उसका लंड मेरी गांड को स्पर्श कर रहा था और मैंने उनके हाथ पकड़कर अपने बूब्स पर रख दिए. धर्मेन्द्र ने पांच मिनट तक बूब्स को दबाया. मालिश की. मैं मस्त हो गयी. मैं- क्या आप मेरे चूत को छू सकते हो. थोड़ा चाट सकते हो. उसने बिना कोई जवाब दिए वैसा कर दिया.

मैं- अब घुसा दो अपना लंड मेरी चूत में प्लीज. वह- नहीं यह नहीं करूंगा नन्दिनी. लेटो तुम. मैं लंड तुम्हारी चूत से स्पर्श कर देता हूँ पर चोदूँगा नहीं.

उसने चूत के बाहर से अपने लंड को घिसा. मुझे अच्छा लगा. मैं उल्टी लेट गयी. वह मेरी भावना समझ गया. उसने मेरी गांड की दरार और उसके छेद पर भी अपना लंड घिसा. धर्मेन्द्र- नन्दिनी जी, आपकी इच्छा पूरी हो गयी ना. चलो अब पहन लो कपड़े!

वाकई मुझे ऐसा लगा जैसे मैं पूरी तरह तृप्त हो गयी. मैं बिना चुदे ही अपने आपको तृप्त महसूस कर रही थी. मैं एक बार और धर्मेन्द्र से लिपटी और कपडे पहन लिए. धर्मेन्द्र भी वापस तैयार हो गया. एक बार फिर उसने काफी बनाई और मुझे इस शर्त के साथ विदा किया कि मैं सीधे घर जाऊँगी और घर पहुँचते ही उसे फोन करूंगी.

मैं बच गयी उस दिन. कोई और होता तो मेरी लालसा का लाभ उठाता और मेरी चूत और गांड दोनों फाड़ देता. मगर धर्मेन्द्र अलग था. मैं उसपर मोहित हो गयी. दमदार लंड का मालिक अपने सामने नंगी पड़ी मस्त लड़की को देखकर भी संयम रख ले तो उसमें कोई बात है.

मैं गुनगुनाते हुए घर पहुँची और उसे फोन किया- थेंक्स धर्मेन्द्र जी. धर्मेन्द्र- वेलकम नन्दिनी जी. मैं- कभी और मेरा मन हुआ तो? धर्मेन्द्र- मैं हूँ ना! उसके बाद मैं धर्मेन्द्र से कई बार मिली.

यह कहानी आपको कैसी लगी. भारतीय समाज में अभी भी मर्यादा है. धर्मेन्द्र जैसे युवक देश की शान है. आप मुझे कहानी के बारे में [email protected] पर लिखें. अपने जीवन में सेक्स का आनन्द अवश्य लें पर अपने परिवार की प्रतिष्ठा का ध्यान रखें. अगर आपको यह कहानी अच्छी लगी होगी तो मैं आपको अपनी अन्य कहानियाँ भी सुनाऊँगी.

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000