थोड़ा सा प्यार-2

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प्रेषिका : कामिनी सक्सेना

प्रथम भाग से आगे :

वो आह ओह्ह उफ़्फ़्फ़ करता रहा, मैं जोश भरे अन्दाज में उसकी मुठ मारती रही। मेरा यह पहला मौका था कि मैं किसी की मुठ मार रही थी। वो अब कसमसा उठा … धीरे से झुक गया मेरे कंधों को जोर से पकड़ लिया और लण्ड ने एक भरपूर पिचकारी उछाल दी। उसके मुख से एक वासना भरी सीत्कार निकल गई। रुक रुक कर उसका वीर्य निकलता रहा।

फिर मैंने उसे हिला हिला कर सारा बचा खुचा वीर्य झटक डाला। उसने झड़ने के बाद अपना पजामा ऊपर खींच लिया। मुझे मन ही मन में बहुत खीज आई। बस माल निकल गया तो पहचानते नहीं !

हम दोनों फिर से सामान्य हो गये थे, यहां-वहां की बातें करने लग गये थे। कुछ देर बाद उसके हाथ मेरे चूतड़ों पर फ़िसलने लगे। मेरे दिल की आग बुझते बुझते फिर से भड़क उठी।

“सोना, आज की रात मेरे साथ गुजार लो … जी भर कर प्यार करेंगे !”

“आप कब से मुझसे प्यार करने लगे… बताओ तो ?” मैंने उसे यूँ ही मजाक में पूछा।

“सच बताऊँ… मुझे तो आपसे पहले दिन से ही प्यार हो गया था।”

“मैं शादीशुदा हूँ, तब भी… एक बच्ची है फिर भी?”

“प्यार तो अन्धा होता है ना…”

आप तो अन्धे नहीं हो ना…”

“ओह, सॉरी, मुझसे गलती हो गई … ” उसका चेहरा लटक गया।

वो मुड़ा और सीढ़ियाँ उतर गया। मुझे बहुत ग्लानि हुई कि मैंने यह क्या कह दिया ? मैं भी पीछे पीछे सीढ़ियाँ उतर आई।

“हां , आप क्या कह रहे थे … आप के साथ रात गुजारने वाली बात?”

उसकी आंखें एक बार फिर से चमक उठी।

“मैं अभी बच्ची को देख कर आती हूँ”

बालिका तो मस्ती में सो रही थी, उसे क्या देखना था ? मैं जल्दी से बाथरूम गई और नहा-धो कर चूत की शेविन्ग की। मेरी आंखों के आगे तरह तरह के दृश्य घूमने लगे। मेक-अप करके कुछ ही देर में उनके कक्ष में आ गई। वो मात्र एक चड्डी में बिस्तर पर लेटे मेरा इन्तज़ार कर रहे थे।

“लाईट बन्द कर दूँ ?”

फिर बिना पूछे मैंने लाईट बंद कर दी। मैंने मात्र पेटीकोट और ढीला सा ब्लाऊज पहन रखा था, मालूम जो था कि चुदाई करनी है। मेरे मन के लड्डू फ़ूट रहे थे। तन और मन से चुदने के लिये हर तरह से तैयार थी। मेरा दिल खुशी के मारे उछल रहा था। आंखों में और दिल में प्रेम-पिपासा नजर आने लगी थी। मैं उनके पास धीरे से लेट गई। शर्म के मारे मेरा बुरा हाल था, पर दिल से मजबूर थी। मेरा दिल अभी भी जाने क्या क्या सपने देखने लगा था। मेरी शर्म को ढकने के लिये अंधेरा मेरा साथ दे रहा था। उसने मुझे कमर से पकड़ कर अपनी ओर घुमा लिया। हाय रे ! वो कितने नजदीक था, उसकी गरम खुशबू भरी सांसे मेरे से टकरा रही थी। मेरी सांस धौंकनी की तरह चल रही थी। यही हाल उसका भी था … उसकी धड़कनें मुझे यहाँ तक सुनाई पड़ रही थी।

“सोना, आओ मुझे चूम लो, प्यार कर लो !”

“मेरे राजा, अब तो मैं आपकी हूँ … चाहे जो कर लो !” मेरे थरथराते लब कांप उठे।

मेरे ढीले से ब्लाऊज को उसके ऊपर उठा दिया और मेरे उरोजों को थाम लिया।

मेरी तो जैसे सांसें रुक गई। अन्धेरे का राज कायम था … अन्धेरे में मेरी हिम्मत बंधी हुई थी। उसके हाथ ने मेरे पेटिकोट के नाड़े को खींच कर ढीला कर दिया। मैंने मारे खुशी के अपनी आंखें कस कर बंद कर ली। मैं नंगी होने वाली थी। मेरी तो सुहागरात भी इतनी खूबसूरत नहीं थी, और ना ही इतनी प्यार भरी थी। धीर से अनिल ने अपने पावों से मेरा पेटीकोट खींच दिया। मैंने भी उसे उतारने में उसकी सहायता की। मेरा नंगापन अंधेरे में छुपा था …

“आ जाओ, मेरे से लिपट जाओ …”

कुछ मैंने, कुछ उसने बाहों के घेरे में लपेट लिया। हाय रे ! वो भी नंगा था…

जाने कब उसने अपनी चड्डी उतार दी थी। उसका मदमाता बलिष्ठ और लोहे जैसा मजबूत लिंग मेरी योनि को छू गया। मुझे एक तेज गुदगुदी सी हुई। उसके गीले होंठ मेरे चेहरे से रगड़ खा गये। मैं मस्ती में झूम उठी। उसके लिंग का दबाव मेरी योनि पर बढ़ता ही गया। मेरे मन की भावना जैसे पिंघल कर बह निकली। हाय मेरे राजा … अब देरी किस बात की … मेहमान को आने दे …” मेरे चुचूक कड़े हो गये थे। उस पर उसकी अंगुलियाँ उन्हें दबा रही थी।

अपने लण्ड को दबाते हुये वो मेरे ऊपर आ गया और धीरे से उसने जोर लगा दिया। मेरी चिकनी चूत में इस तरह उतर गया जैसे मक्खन में चाकू। आह्ह्ह रे …

मेरी मां … मैं तो मर गई। मेरी योनि में वो मुझे एक तीव्र मिठास भरता हुआ अन्दर उतरने लगा।

“मेरे राजा … मैं तो तेरी बांदी हो गई हूँ रे…” मैं सिसक उठी।

अनिल भी वासना के मीथे नशे में मदहोश हो गया था। लण्ड पूरा मेरी चूत में समा गया। पहले तो वो उसी का आनन्द लेता रहा, फिर धीरे से अन्दर ही अन्दर वो चूत में लण्ड रगड़ने लगा। उस रगड़ाई से मुझे तेज आनन्द आने लगा। मेरा शरीर जैसे वासना की मिठास भरी आग का गोला हो गया था। उसकी रफ़्तार बढ़ने लगी। मेरी चूत भी नीचे से उछलने लगी थी। एक साथ दोनों लयपूर्वक चल रहे थे।

चूत और लण्ड के मिलाप की थाप गूंजने लगी थी। थप थप की आवाजें और चूत की गुदगुदी मेरे होश उड़ा चुकी थी। जाने मैं नीचे दबी कब तक चुदती रही। जब होश आया तो मेरी जान जैसे निकलने वाली थी। नशे का तार टूट गया, मैं वासना के नशे में चीख सी उठी। मैं जोर से झड़ गई थी। चूत में लहरें रह रह कर उठ रही थी। मेरा पानी धीरे धीरे निकलता जा रहा था पर उसके धक्के बन्द नहीं हुये थे। मैं झड़ कर निश्चल सी लेटी थी। फिर वो भी एक धीमी सी चीख के साथ चूत मे ही झड़ने लगा। मेरी चूत को उसने लबालब भर दिया।

मुझे उसने प्यार किया और बिस्तर से उतर कर खड़ा हो गया। उसने लाईट जला दी।

मैं चौंक गई।

“अरे, ये क्या… बन्द करो ना … मैं नंगी हूँ !”

उसने मुझे ऊपर से नीचे तक ध्यान से देखा,”मैं नहीं जानता था कि जितना मैंने सोचा उससे तो तुम बहुत अधिक सुन्दर हो।”

“हाय रे, मम्मी … तुम तो बहुत बेशरम हो जी !”

“अरे ये क्या … कुछ टपक रहा है ये तो?”

“चल हटो … मैं साफ़ कर लूंगी !” टांगो के बीच में से टपकता हुआ वीर्य देखकर मैं शरमा गई। मैंने अपना पेटीकोट से उसे साफ़ कर लिया, फिर भी कुछ माल तो चूत में था ही। मैंने अनिल को मुस्करा कर देखा फिर जल्दी से अपने कपड़े उठा कर अपने कमरे में भाग आई। मेरे गोरे नितम्बों को देख कर एक बार फिर अनिल के मुख से आह निकल गई।

रात को ना जाने किस समय किसी ने मुझे अपने दोनों हाथों में किसी बच्चे की उठा लिया। वो कोई और नहीं अनिल ही था। मेरी नींद खुल गई। मैं उसके गले से लिपट गई। उसने मुझे उसी के कमरे में लाकर खड़ा कर दिया। हाय तौबा ! उसका लण्ड बेहद तन्ना रहा था … उसने मेरा पेटीकोट एक बार से उतार दिया और मुझसे लिपट गया। हम दोनों बिस्तर पर एक बार फिर से यौन क्रिया के लिये तैयार हो गये थे। मुझे पता था कि इस बार मेरी गाण्ड की चुदाई होगी। मैं घोड़ी बन गई … उसने एक खुशबूदार क्रीम मेरे गाण्ड के छेद में लगा दिया। और अपना मजबूत लोहे जैसा लौड़ा मेरी गाण्ड के छिद्र से लगा दिया। सब कुछ निशाने पर था। मैं भी इसके लिये अपने आप को तैयार कर चुकी थी। एक बार पति से गाण्ड मरवा चुकी थी, पर उसका अनुभव कुछ अच्छा नहीं था।

“सोना, तैयार हो ना?”

“हूं, उहं…”

“छेद को ढीला छोड़ो …”

“हूं, ओह्ह्ह …”

उसने धीरे से लण्ड छेद में घुसा दिया। सुपाड़ा अन्दर आ चुका था। लण्ड घुसते ही लग़ा कि जैसे गाण्ड फ़ट जायेगी। मेरे मुख से एक चीख सी निकल गई। तभी उसने और जोर लगाया और करीब आधा लण्ड छेद में उतार दिया। इस बार दर्द तो कम हुआ पर छेद बहुत कसा होने से जलन हुई। उसका अगला धक्का करारा था। मेरी तो आंखें उबल पड़ी … एक भरपूर चीख निकल पड़ी।

“बस सोना जी, हो गया… अब बस चुदाई बाकी है … प्लीज शान्त हो जाईये”

“मेरी तो फ़ट गई होगी … देखो बहुत दर्द है…”

“कभी गाण्ड चुदाई नहीं क्या…”

“अरे गाण्ड की बात करते हो, यहाँ तो चूत भी चुदने के लिये तरस जाती है !”

उसने सब समझ कर धीरे धीरे लण्ड अन्दर बाहर करना शुरू कर दिया। जलन धीरे धीरे कम होती गई। गाण्ड के छेद की चमड़ी नरम थी सो बस फ़ैल गई थी, फ़टी नहीं थी। काफ़ी देर तक वो मेरी गाण्ड चोदता रहा। उसके लण्ड की मोटाई का अहसास मुझे भली प्रकार हो रहा था। वास्तव में मुझे एक ऐसा ही मजबूत और भारी लण्ड चाहिये था जो मुझे पूर्ण रूप से सन्तुष्ट कर सके। अब मेरी गाण्ड में मुझे मजा आने लगा था, पर इतनी देर में इस यौन क्रिया के कारण मेरी चूत कसक उठी थी। अब उसमें एक लौड़ा चाहिये था। मुझे लगा कि अनिल अब झड़ने के करीब आ चुका है तो मैंने उससे विनती की,”अनिल, अब मेरी नीचे भी तर होने लगी है, उसे भी शान्त कर दो…”

वो मुस्करा उठा… और मुझे उसी पोजीशन में गाण्ड में से लण्ड निकाल कर चूत पर सेट कर दिया।

“रोज ऐसे ही गाण्ड चुदवाना, देखना कोई दर्द नहीं होगा, बल्कि मजा आयेगा।”

“बड़े अनुभवी लगते हो…” मेरी हंसी छूट गई।

“अरे नहीं … बस किताबों में पढ़ा है …”

मेरी प्यासी चूत ने लण्ड को पूरा ही निगल लिया। फिर भचाभच चुदाई होने लगी … कुछ ही देर में मेरा पानी छूट गया और उसका भी वीर्य मेरी चूत में निकल गया।

अब तो मेरी पति की अनुपस्तिथि में अनिल मुझे खूब चोदता और मैं भी उसे नहीं छोड़ती थी। अब वो अपनी आधी तनख्वाह भी चुपके से मुझे दे दिया करता था। घर में खाने का सामान, मेरे और बेबी के कपड़े वगैरह भी दिलाने लगा था। अब मैं तंगी में नही, बल्कि शान से चुदवा कर रहती थी।

आज भी मैं चालीस साल की हो गई हूँ। अनिल का भी ट्रांसफ़र हो चुका था। अब तो उनकी भी फ़ेमिली है, बच्चे हैं। मेरे पति का जीप एक्सीडेंट में स्वर्गवास हो चुका था। अनिल ने उनके स्थान पर मुझे क्लर्क की नौकरी दिला दी थी। जब कभी भी वो यहाँ आते थे तो मैं उनसे जी भर कर चुदवाया करती हूँ। मेरी बेबी कल्पना का दाखिला अनिल ने जयपुर में करवा दिया था।

कामिनी सक्सेना

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