फ़तेहपुर सीकरी की एक रात

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लेखक : अनिल वर्मा

हैलो दोस्तो, कहानियाँ पढ़ रहा था तो सोचा आप लोगों से अपनी कहानी शेयर करूँ।

मैं पेशे से इंजीनियर हूँ। अभी 35 वर्ष का हूँ। लम्बाई 5’8″ है। देखने में सुन्दर हूँ और चुदाई में ज़बरदस्त। यह बात मेरी महिला मित्र अच्छे से जानतीं है, कुछ जो यहाँ कहानी पढ़ रहीं हैं, अच्छे से वाकिफ़ हैं। उनमें से एक जिसे मैं ज़ैस्मिन कहता हूँ, को यह कहानी समर्पित है। पिछ्ले तीन सालों से हर साल एक बार बात हो जाती है। इस साल सिर्फ़ इन्तज़ार ‘जैस्मिन मिस यू !’

हाल ही में मेरा तबादला आगरा हो गया। मैंने आगरा में ज्वाइन भी कर लिया, लेकिन बच्चों के स्कूल के कारण परिवार को लखनऊ से आगरा नहीं ले जा पाया। अकेले रहना कितना मुश्किल है, अब समझ आया।

“दिन तो कट जाता है बस रात ये ढलती नहीं !”

वी आई पी शहर होने के नाते सुबह से शाम तक दौड़ भाग। पर कहते हैं जब किस्मत में लिखा हो तो पूरी कायनात उसे सच करने में लग जाती है।

सबसे पहले तो रहने का ठिकाना ढूँढा, दो कमरों का घर था। दूसरी मंज़िल पर मकान मालकिन रहती हैं। दो महीने तो शान्ति से गुज़र गये। जिसे रोज़ चुदाई की आदत हो, तो दो महीने कैसे गुज़रे होंगे? ये मुझसे बेहतर कौन समझेगा।

एक दिन मैं ऑफिस के लिये निकल रहा था, अभी बाहर आया ही था कि पड़ोस की लड़की पास आकर बोली- प्लीज़, आप मुझे ऑफिस तक छोड़ देंगे? आज जरा जल्दी पहुँचना है।

मैंने एक निगाह लड़की पर डाली, थोड़ी मोटी थी। लम्बाई 5’5″, वज़न 80-85 किलो होगा, साइज़ 40-38-42 होगा। जाँघें जैसे पेड़ का तना। कुल मिला कर अच्छी तो नहीं कह सकते, वैसे मुझे मोटी लड़कियाँ बहुत पसन्द हैं, पर ऐसी बुरी भी नहीं। चेहरा बहुत सुन्दर, नयन-नख्श बहुत तीखे ! जैसे मैं खो गया था।

“प्लीज़, जल्दी चलिये !”

मैंने कार की ओर इशारा किया- आओ…!

मन ही मन सोच रहा था- वैसे तो बात भी नहीं करती, अभी कितने अधिकार से कह रही है।

“किस बात की जल्दी है?” मैंने पूछा।

मेरी ओर देख कर मुस्कुराई, बोली- आप से बात करनी थी, कोई बहाना नहीं मिल रहा था।

“क्यों?”

“आप इतना चुप क्यों रहते हैं?”

अब उसे क्या बताऊँ? किस बात की कमी खल रही है। वैसे मैं अर्न्तमुखी हूँ। जल्दी किसी जगह घुल-मिल नहीं पाता।

“बताकर क्या फ़ायदा? कौन सा तुम पूरा कर दोगी?”

“फ़िर भी बताइये, हो सकता है पूरा कर दूँ?”

‘अच्छा मौका है, फ़ायदा उठाओ !’ मेरे दिल से आवाज़ आई।

“अकेला रह रहा हूँ, बीवी के बिना मन नहीं लगता। रात में उसकी बहुत याद आती है। बताओ इस कमी को पूरा करोगी?”

कार में सन्नाटा छा गया, वो चुप, मैं भी चुप, फ़िर कोई बात नहीं हुई। उसका ऑफ़िस आ गया था, भारी कदमों से उतरी, जैसे मन में कोई ज़वाब ढूँढ रही हो।

दो-तीन दिन गुज़र गये इस बात को, कोई उम्मीद नहीं थी, मैं भी भूल गया, बात आई गई हो गई, वो भी, सामने नहीं पड़ी, मैंने भी उत्सुकता नहीं दिखाई।

शनिवार का दिन था, मैं अपने सारे काम खत्म करके जल्दी घर भागने के चक्कर में था, घर से सामान उठा कर लखनऊ जो भागना था।

बाहर आया ही था कि जैसे वो मेरा इन्तज़ार कर रही थी।

उसने खुद ही कार का दरवाज़ा खोला और बोली- चलना नहीं है क्या?

यह सब इतनी ज़ल्दी हुआ कि समझ में ही नहीं आय कि क्या हो रहा है?

“कल घर के सब लोग बाहर जा रहे हैं, और तुम मुझे फ़तेहपुर सीकरी लेकर चल रहे हो। मुझे कुछ नहीं सुनना, यही प्रोग्राम फ़ाइनल है।”

उसने अपना फ़ैसला सुना दिया था। मैं भी सब समझ चुका था, पर जिस अधिकार से उसने कहा था, उससे मैं मना तो कर ही नहीं सकता था ! दीवाना सा हो गया था उसका मैं, उसे ही देखे जा रहा था। वो सिर्फ़ मुस्कुरा रही थी।

उसके चेहरे पर, अधिकार और खुशी दोनों थीं।

मैं भौंचक्का सा उसे ही देखे जा रहा था। मैं भी खुश था। हमारे बीच एक डोर सी बंध गई थी। सही गलत भूल कर सिर्फ़ कल की खुशी दिख रही थी।

आश्चर्य भी हो रहा था। कहीं वासना जैसा कोई भी ख्याल भी नहीं आ रहा था।

चाहत भी थी, अधिकार भी, पर वासना क्यों नहीं?

खैर… जो होना था, वो भी समझ आ रहा था, पर मुझे आज यह चुदाई शब्द बेमानी लग रहा था, समर्पण कहा जा सकता है। क्या ऐसा कुछ था?

‘सम्मानित पाठकगण कृपया अपना विश्लेषण जरूर बताइयेगा !’

इसी उधेड़बुन में गाड़ी से उतरा, लखनऊ जाने का प्रोग्राम रद्द हो गया था, मेरी बेचैनी खत्म होने का नाम नहीं ले रही थी, आने वाली सुबह के इन्तज़ार में, रात करवटें बदलते हुए गुज़री।

…कुछ खुशी, कुछ उत्सुकता, कुछ मादकता, कुछ तो बात थी उसमें ! ऐसा सौंधापन समा गया था उसकी बातों से, प्यार सा हो गया हो ! अचानक वासना और प्यार में अन्तर लगने लगा था, सही गलत तो भूल चुका था।

रात कैसे गुज़री… यह वही लोग समझ सकेंगे जिन्होंने कभी ऐसे रात गुज़ारी होगी, किसी के इन्तज़ार में।

जैसे–तैसे सुबह हुई।

अभी बिस्तर से उठा ही था कि दरवाजे पर दस्तक हुई !

“अभी तैयार नही हुये? मम्मी-पापा चले गये हैं, जल्दी करो, हमें भी चलना है।” बाहर से आवाज़ आई।

झट से दरवाजा खोला। बैंगनी सलवार सूट पहने, एकदम अप्सरा लग रही थी। माथे पर छोटी सी बिन्दी, होठों पर हल्की लिपस्टिक, बहुत ही खूबसूरत लग रही थी ! मैं पहली बार उसे इतने ध्यान से देख रहा था, मन किया कि एक चुम्बन ले लूँ।

आगे बढ़ा भी, उसने रोका- अभी नहीं ! पूरा दिन है हमारे पास !

अब शक की कोई गुंजाईश नहीं रह गई थी।

मैं झट से तैयार हुआ और हम एक घण्टे में निकल लिये।

“कहाँ चलें?” मैंने पूछा।

“पहले कहीं किसी होटल में चलते हैं?” उसने तिरछी निगाहों से मुस्कुराते हुये जवाब दिया।

होटल के कमरे में पहुँचते ही लिपट गई।

मैं भी उसमें खो जाने को बेताब था।

होंठों से होंठ चिपक गये, कितनी देर उसके नर्म मक्खन जैसे होंठ चूसता रहा। मेरे हाथ खुद–ब-खुद, उसके उरोजों को सहला रहे थे, साँसें भारी हो रही थीं, मैं उसके गाल, गर्दन, कानों पर चूम रहा था, उसकी आँखें भारी हो रही थीं।

मुँह से ‘आह्ह ऊह्ह्ह’ की आवाजें आ रही थीं। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

अब हमसे रुका नहीं जा रहा था, मैं उसे बिस्तर की ओर ले गया। अब तक हमारे सारे कपड़े उतर गए थे, उसके उरोजों पर मुँह लगा कर चूसे जा रहा था मैं और मेरे हाथ उसकी जाँघों के बीच पहुँच गये थे।

उसकी योनि पानी छोड़ रही थी, चूत के चारों ओर गीला–गीला सा था। मैं सहलाये जा रहा था और उसका बदन नागिन की तरह मचल रहा था।

उसके मुँह से मादक आवाजें आ रहीं थीं ‘खा जाओ मुझे !’ आह… ब…हु…त त…प्या…सी हूँ …ऊऊह्ह्ह… चोद दो… जा…न्… आह्ह्ह्ह…’

उसके हाथ मेरे बालों से खेल रहे थे और मैं उसके गुब्बारे चूसते हुये चूत की ओर चूमता हुआ जा रहा था। एकदम मुलायम बदन और हर अँग में आग भरी हुई थी। मेरा लण्ड भी पूरे शबाब पर था पर मैं जल्दी के मूड में नहीं था, उसे और तड़फ़ाना चाह रहा था जिससे वो, आनन्द के चरम अनुभूति ले सके।

कोई भी औरत अगर पहली बार ही चुदाई का आनन्द नहीं पा सकी तो दोबारा हाथ भी नहीं लगाने देगी। और मैं खुद और उसे भी भरपूर आनन्द देना चाह रहा था, वो चुदाई के लिये तैयार थी।

“चो..दो… मुझे… जा..न… खा.. जाओ… चो..दो… जान..।”

ज्यूँ ही मैंने उसकी चूत पर जीभ लगाई, वो और मचल उठी, अपनी टाँगों से मुझे जकड़ लिया।

“आआ… आआ… आआआ… आह्ह्ह… ह…ह्ह्ह्ह्ह्… ऊऊ…ऊऊ…ऊह्ह्ह… ह्ह्ह्ह… ह्ह्ह्…ह्ह्ह्ह्ह ” की आवाजें जोरों से आने लगीं। उसकी चूत बहुत गीली हो चुकी थी।

मैंने अपनी उंगली चूत पर लगाई, वो चूत रस से भर गई तो उंगली मैंने उसकी चूत में घुसा दी और उंगली को ही आगे पीछे करने लगा। उसका बदन अकड़ रहा था। चेहरे पर सन्तुष्टि के भाव थे।

मैं उसके नँगे बदन पर चढ़ गया और होंठों को चूमने लगा, मेरा लण्ड उसकी चूत से टकरा रहा था, उसकी टाँगों को चौड़ा किया और सुपारे को चूत पर रगड़ने लगा और वो तो बस ‘चो…दो…मुझे …जान्…आआ आह्ह… ह… ऊऊ …ऊऊह्ह्ह… ह्ह्ह्ह्ह” कर असीम आनन्द में गोते लगा रही थी।

मैंने लण्ड को चूत पर लगाया और अन्दर घुसाने लगा। चूत कसी हुई थी, उसके चेहरे पर दर्द के भाव आ गये। इससे पहले वो कुछ कहे, मैंने उसके होंठ अपने मुँह में ले लिये और चूसना शुरू कर दिया। लण्ड भी अन्दर घुस गया था।

हम दोनों ही चुदाई का मज़ा ले रहे थे और एक लम्बी जुदाई का इस रंगीन चुदाई से समापन हुआ। हम दोनों ने पूर्ण प्राकर्तिक सम्भोग किया और अपने रसों को एक दूसरे से मिल जाने दिया।

हमने पूरे दिन चार राउण्ड चुदाई की। उसकी चूत सूज़ गई थी। लेकिन हमारे बीच प्यार पनप चुका था।

इसके बाद, हम अक्सर, ऐसे ही एक दूसरे में खो जाते थे।

मित्रों, आपको कहानी कैसी लगी जरुर बताना !

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