गेटपास का रहस्य-1

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सुनीता की शादी होने के बाद एक बार फिर से मैं तन्हा हो गया था, मैं चाहकर भी सुधा या सुनीता से नहीं मिल सकता था क्योंकि मैं नहीं चाहता था मेरी वजह से उनको कोई परेशानी हो इसी तरह से मेरे दिन कट रहे थे। पर मेरे नसीब में तो कुछ और ही लिखा था, सुनीता की शादी के 2 महीने बाद ही मेरे साथ एक और रोमांचकारी घटना घटी, इस घटना को अपने शब्दों में पिरो कर एक बार फिर मैं आपके सामने आया हूँ।

वो दिन मुझे आज भी याद है, उस दिन रविवार था और मैं सोकर भी लेट ही उठा, मैं नहा धोकर टी.वी पर प्रोग्राम देख रहा था, सुबह के करीब 10:30 बजे थे, तभी किसी ने मेरे घर का दरवाजा खटखटाया, मैंने दरवाजा खोला, तो मेरे सामने मेरा दोस्त प्रेम खड़ा था, प्रेम मुझे देखते ही बोला- साजन, चल यार मुझे कपड़े खरीदने हैं, तुम मेरे साथ मार्किट चलो।

कपड़े का नाम सुनकर मुझे भी याद आया- यार कपड़े तो मुझे भी खरीदने हैं, एक मिनट रुक, मैं अभी आया जूते पहनकर !

मैंने अपने जूते पहने और कुछ रूपये अपनी जेब मे डालकर बाहर आकर प्रेम से बोला- अब चलते हैं।

अभी हम घर से बाहर निकल कर सड़क पर आये ही थे कि हमें एक और दोस्त मिल गया, जिसका नाम राजू था, प्रेम ने राजू से पूछा- गेटपास बाहर है क्या?

तो उसने कहा- हाँ है।

उन दोनों की बात मेरी तो समझ में नहीं आ रही थी, वो किस बारे में बात कर रहे हैं।

इतना बता कर वो चला गया, मैंने प्रेम से पूछा- यह गेटपास क्या है, इस गेटपास का क्या रहस्य है?

“तुझे नहीं पता गेटपास के बारे में?”

मैंने उससे बोला- नहीं यार, मुझे नहीं इस बारे में !

प्रेम ने मुझसे कहा- चल, तुझे सब बताता हूँ।

हम सड़क पर आ गये और एक जगह रुककर प्रेम ने मुझे इशारा करते हुए बोला- उधर देख !

मैं उसी तरफ देखने लगा जिधर प्रेम ने मुझे इशारा किया था।

एक चार मंजिला मकान था, उसकी पहली मंजिल पर एक लड़की खड़ी थी, बेहद ही सुन्दर उसने उस टाइम हाफ पेंट और टी–शर्ट पहनी हुई थी, उसकी उम्र लगभग 18 साल की लग रही थी, हाईट उसकी 5’0″ की थी और उसके बूब्स भी ज्यादा बड़े नहीं थे, उसको देख कर मेरे मुँह से निकल गया- वाह क्या माल है !

मैंने प्रेम से पूछा- कौन है ये? क्या नाम है इसका?

प्रेम बोला- देख लिया? चल अब, तुझे रास्ते में बताता हूँ सब कुछ !

और फिर हम दोनों मार्किट की तरफ चल दिए, रास्ते में प्रेम बोला- तूने अभी पूछा था न कि गेटपास क्या है? तो ये है गेटपास इसका हमने कोड रखा हुआ है, नाम हमें भी नहीं पता अभी तक।

मैं- अच्छा तो यह है गेटपास, कब आया यह?

प्रेम- दो महीने हो गए हैं इसको आये हुए !

मैं- इसके पीछे कौन-कौन लगा हुआ है?

प्रेम- बस तू ही नहीं है, बाकी सब हैं।

मैं- किसी की बात बनी या नहीं?

प्रेम- कहाँ यार ! यह किसी को घास भी नहीं डालती।

मैं- ठीक है, मैं भी कोशिश करता हूँ, शायद मुझसे हो जाये।

प्रेम- हम में से किसी से तो हुई नहीं, तुझसे हो जाएगी ये?

मुझे उसकी बात सुनकर बहुत गुस्सा आया, मैं ताव में आकर उससे बोला- तुम सब को दो महीने हो गए, इसका नाम भी पता नहीं कर पाए, दो दिन के बाद यह मेरे साथ होगी।

मेरी बात सुनकर प्रेम हँसने लगा और बोला- जब हो जाये तो मुझे भी बता देना !

यह बात यही पर खत्म हो गई।

उसके बाद हम दोनों ने मार्किट से कपड़े ख़रीदे और अपने घर आ गए, घर आकर मैं सोच में पड़ गया, ताव में आकर मैंने प्रेम को बोल तो दिया है पर यह होगा कैसे? तभी मुझे याद आया उस लड़की के पड़ोस में तो मेरी चाची जी रहती है, उनके दो बच्चे हैं, एक लड़का और एक लड़की, उनमें सबसे बड़ी लड़की थी, उसका नाम दीपशिखा है, और वो मुझे बहुत मानती है, मैं भी उसकी बहुत मानता हूँ, दीपशिखा मेरी छोटी बहन है, और उससे छोटा भाई है जिसका नाम आशु है, तो मैंने सोचा इस काम में दीपशिखा मेरी मदद कर सकती है।

मैं अपनी चाची जी के घर गया, उस वक़्त चाची जी खाना बना रही थी और वो दोनों भाई बहन टी वी देख रहे थे, चाची मुझे देख कर बोली- कहाँ रहता है? नजर भी नहीं आता, तूने तो यहाँ आना ही छोड़ दिया।

मैं चाची जी से बोला- ऐसी तो कोई बात नहीं है, मुझे टाइम नहीं मिल पाता, इसलिए मेरा आना कम हो गया है।

चाची बोली- चल अन्दर बैठ, खाना बना रही हूँ। अब आया है तो खाना खाकर ही जाना।

मैंने- कहा ठीक है चाची जी !

मैं घर के अन्दर चला गया। दीपशिखा और आशु दोनों अन्दर बैठे टी वी देख रहे थे, दीपशिखा मुझे देखकर बोली- भाई, आज कैसे घर का रास्ता भूल गये?

मैं- ऐसी कोई बात नहीं है, आजकल मुझे टाइम नहीं मिलता, पर आज तुमसे कुछ काम भी था।

दीपशिखा- क्या बात है भाई, बोलो ना !

तभी चाची ने ने आवाज लगाई- दीप, खाना ले जाओ !

“भाई, मैं अभी आई !” और इतना कह कर दीप खाना लेने रसोई में चली गई। कुछ देर बाद चाची जी और दीप खाना लेकर कमरे में आ गई, हम सब ने मिलकर खाना खाया।

खाना खाने के बाद चाची जी बर्तन लेकर रसोई में चली गई साफ़ करने के लिए, चाची जी के जाते ही मैं दीप से बोला- तुम्हारे पड़ोस में जो नये किरायेदार आये है, उनकी एक लड़की है, मुझे उससे दोस्ती करनी है, क्या तुम मेरी मदद करोगी।

दीप- अच्छा वो, वो तो मेरी फ्रेंड है वही न जो पहली मंजिल पर रहती है?

मैं- हाँ वही, क्या नाम है उसका?

दीप- अच्छा उसका नाम तो मयूरी है, ठीक है मैं उससे बात करके देखती हूँ, फिर मैं आपको बता दूंगी।

मैं- कब तक बता दोगी?

दीप- आज ही शाम को !

मैं- ठीक है, मैं इंतजार करूँगा शाम को।

इतना कह कर मैं वहाँ से अपने घर चला आया और यही सोचता रहा अब आगे क्या होगा, अभी मुझे घर पर आये हुए दो ही घंटे हुए थे कि दीप मेरे घर पर आई और बोली- भाई चलो मेरे साथ, मयूरी आपको देखना चाहती है, आपको देखने के बाद ही वो बताएगी, वो आप से दोस्ती करेगी या नहीं !

मैंने कहा- ठीक है, चलो मैं चलता हूँ।

और फिर मैं दीप के साथ बाहर चला गया।

हम दोनों दीप के घर पर पहुँचे तो दीप ने कहा- भाई। आप बैठो मैं उसको बुला कर लाती हूँ। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं।

दीप के घर पर उस वक़्त कोई नहीं था क्योंकि चाची जी पड़ोस में बैठी थी और उसका छोटा भाई ट्यूशन गया हुआ था, मैं घर के अन्दर जाकर बैठ गया, दीप मयूरी को बुलाने के लिए चली गई।

कुछ देर बाद दीप मयूरी को साथ लेकर घर में आई, क्या लग रही थी मन तो कर रहा था कि….?

छोड़ो, मन की बातों को मन तो पता नहीं क्या क्या करता है।

आज भी उसने हाफ पेंट और टीशर्ट पहनी हुई थी, इन कपड़ों में उसका गोरा बदन और भी मादक लग रहा था, गोल चेहरा पतली सी कमर उसकी नंगी जाँघ को देकर ही मेरा लौड़ा खड़ा हो गया था, वो कमसिन सी लड़की मुझे बेहद हसीन और सुन्दर लग रही थी।

दीप ने मयूरी से कहा- ये हैं मेरे भाई, इनका नाम साजन है और तुमसे दोस्ती करना चाहते हैं, तुमने देखने को बोला था अब देख ले अच्छी तरह से, तुम दोनों बैठ कर बाते करो, मैं तब तक चाय बनाती हूँ।

इतना कह कर दीप रसोई में जाने लगी तो मयूरी ने दीप का हाथ पकड़ कर उसको रोकते हुए बोली- तुम भी यहीं पर रहो !

दीप ने मयूरी से हाथ छुड़ाते हुए उसके कान में कहा- क्यों क्या हुआ? पसंद नहीं आये क्या मेरे भैया?

मयूरी- नहीं ऐसी बात नहीं है।

दीप- फिर जाओ उनके पास और बात करो ! मैं अभी आई।

कहानी जारी रहेगी।

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