मेरा गुप्त जीवन -3

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सुन्दरी के साथ बड़े ही गर्मी भरे दिन बीत रहे थे, भरी दोपहर में वह छुपते हुए मेरे कमरे में आ जाती थी और हम दोनों एक दूसरे में खो जाते थे। आते ही वह मुझ को लबों पर एक चुम्मी करती और मेरे होटों को चूसती। मैं भी उसकी नक़ल में वैसा ही करता। दोनों के मुंह का रस एक दूसरे के अंदर जाता और खूब आनन्द आता। फिर वह अपना ब्लाउज खोल देती और मुझ से अपने निप्पल चुसवाती और साथ ही मेरा हाथ अपनी धोती के अंदर पतले पेटीकोट में अपनी चूत पर रख देती। फिर उसने चूत में ऊँगली से कामवासना जगाना सिखाया मुझे।

अब जब वह मेरे लंड पर हाथ रखती तो लंड खड़ा होना शुरू हो जाता और मेरे सख्त लंड को सुन्दरी मुंह में लेकर चूसने लगती और फिर एक दिन उस ने पूरी नंगी होकर लंड को अपने अंदर डालने की कोशिश की, सबसे पहले उसने मेरे लंड को चूत के मुंह पर रगड़ा एक मिनट तक और जब लंड का सर चूत के अंदर 1 इंच चला गया तो वह रुक गई और उसने मेरे होटों को ज़ोर से चूमा और अपनी जीभ भी मुंह में डाल दी, उसको गोल गोल घुमाने लगी। मैं भी ऊपर से हल्का धक्का मारने लगा जिसके कारण मेरा आधा लंड उसकी चूत में चला गया। मुझे ऐसा लग रहा था कि मेरा लंड आग की भट्टी में चला गया है। तभी सुन्दरी ने नीचे से एक ज़ोर का धक्का मारा और मेरा लंड पूरा अंदर चूत में चला गया।

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कामवासना की यह पहली अनुभूति बड़ी ही इत्तेजक और आनन्द दायक लगी। फिर सुन्दरी के कहने पर मैंने ऊपर से धक्के मारने शुरु कर दिए और सुन्दरी भी नीचे से खूब ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगी। फिर मुझको लगा कि सुन्दरी की चूत मेरे लंड को पकड़ रही है और जैसे ‘बन्द और खुल’ रही है। फिर सुन्दरी ने मुझको कस कर भींच लिया और उसका जिस्म कांपने लगा और फिर थोड़ी देर में वह एकदम ढीली पढ़ गई और मेरा लंड सफ़ेद झाग जैसे पदार्थ से लिप्त हुआ बाहर निकल आया। लंड अभी भी खड़ा था लेकिन उसमें से कोई पदार्थ नहीं निकला।

इस तरह हमने कई दफा सेक्स का खेल खेला और हम दोनों को काफी आनन्द भी आया। मैं अब काफी कुछ सेक्स के बारे में समझने लगा था। अब सुन्दरी के बाद मैंने रात वाली मोटी के साथ भी यही खेल खेलने की सोची। उसी रात को जब वह आई तो मैंने उसको पकड़ लिया, एक चुम्मी उसके गालों पर जड़ दी, वह एकदम छिटक कर परे हो गई और मुझ को घूरने लगी। मैंने कहा- घबराओ नहीं, मैं तुमको कुछ नहीं कहूँगा।

और फिर मैंने उसको पास बुलाया और कहा कि तुम सोती हो, बिस्तर पर सोया करो ना! ‘नहीं न… मालकिन देखेंगी तो घर से निकाल देंगी।’ मैंने कहा- तुम ऐसे ही घबराती हो और फिर मैं तुमको पैसे दूंगा। वह बोली- कितने पैसे दोगे छोटे मालिक? मैंने कहा- कितने चाहिये तुमको? वह बोली- तुम बताओ कितने पैसे दोगे?मैंने कहा- 2 रुपये दूंगा चूमक़ चाटी का!

और वह राज़ी हो गई। उस ज़माने में 1-2 रुपये बड़ी रकम होती थी गाँव वालों के लिये। और सबसे बड़ा आकर्षण था मखमली बेड पर सोने का मज़ा!

उस रात मैं ने उसको नहीं छेड़ा और खूब सोया। अगली रात वह फिर आ गई और नीचे सोने लगी, मैंने इशारे से उसको पास बुलाया और बिस्तर पर सोने को कहा। वह हिचकिचाती हुई मेरे साथ लेट गई, मैंने उसके मोटे होटों पर एक हल्की किस की और अपना एक हाथ उसके स्तनों पर रख दिया। उसने झट से मेरा हाथ हटा दिया।

मैंने फिर उसको चूमा और अब हाथ उसके पेट पर रख दिया और वह चुप रही। फिर वही हाथ मैंने उसकी धोती में लिपटी उसकी जाँघों पर रख दिया और धीरे धीरे उसको ऊपर नीचे करने लगा और साथ ही उसको चूमता रहा, फिर धीरे से दूसरे हाथ को उसके स्तनों पर फेरने लगा।

मैंने उसको कहा- तुम्हारे स्तन तो एकदम मोटे और सॉलिड हैं।

शायद वह समझी नहीं, मैंने फिर कहा- ये बड़े मोटे और सख्त हैं, क्या करती हो इनके साथ? वह बोली- सारा दिन फर्श पर कपड़ा मारना पड़ता है हवेली में तो काफी मेहनत हो जाती है।

फिर धीरे से मैंने उसके ब्लाउज के बटन खोल दिए और उसके मोटे स्तन एकदम बाहर आ गए जैसे जेल से छूटे हों। मैंने तो पहले उनको देख रखा था तो मैं उसका जिस्म जानता था।

फिर मेरा एक हाथ उसकी धोती के अंदर डालने लगा तो उसने हाथ पकड़ लिया और बोली- किसी को बताओगे तो नहीं छोटे मालिक? मैंने कहा- नहीं रे, यह कोई बताने की चीज़ थोड़ी है।

और उसने धोती ऊपर उठाने दी। पहले मैंने उसकी चूत को ग़ौर से देखा और समझने की कोशिश करने लगा कि उसकी चूत और सुन्दरी की चूत में क्या फर्क है। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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