मेरा गुप्त जीवन- 23

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बसंती के जाने का दुःख किसी को नहीं हुआ क्यूंकि वो कुछ दिनों में सिर्फ मेरे साथ ही सम्बन्ध बना पाई थी। कई बार मैं सोचता था कि बसंती का व्यवहार अजीब ज़रूर था लेकिन इतना भी अजीब नहीं कि संभव न हो सके। ऐसे किस्से तो सुनने में आते रहते थे कि अमुक को रात में चलने की आदत है या फिर बहुत अमीर होने के बावजूद भी चोरी की लत किसी किसी में पाई जाती थी।

अब मैं और बिन्दू रात भर चुदाई करते रहते थे। मेरी भरसक कोशिश होती थी कि मैं अपना वीर्य बाहर ही छुटाऊँ लेकिन फिर भी कभी अंदर थोड़ा बहुत छूट ही जाता था। शायद इसी का परिणाम हुआ कि एक दिन बिन्दू जब मेरे कमरे में सवेरे चाय देने आई तो बहुत घबराई हुई थी। मेरे पूछने पर उसने बताया कि उसकी माहवारी इस महीने नहीं आई और उसको पक्का यकीन है कि वो गर्भवती हो गई है। उसके मुख पर चिंता के रेखाएं छाई हुई थीं, मैं भी काफी फ़िक्रमंद हो गया यह सुन कर। सारा दिन हमारा इसी सोच में डूबा कि अब क्या करें।

लेकिन अगले दिन बिन्दू आई तो वो मुस्करा रही थी। मैंने पूछा- क्या माहवारी वाली खबर गलत है? बिन्दू बोली- नहीं जी, एकदम सही है। लेकिन कल रात मेरा पति घर वापस आ गया था, उसने भी चोद दिया और अब यह बच्चा मेरे पति का ही होगा न? ‘बहुत शुक्र है भगवान का… जो ऐसा हो गया, नहीं तो बड़ी मुसीबत आ जाती। लेकिन मेरा क्या होगा बिन्दू?’ बिन्दू बोली- आप फ़िक्र न करें छोटे मालिक, कोई न कोई इंतज़ाम मैं कर दूंगी आपका… अच्छा अब मैं चलती हूँ।

यह कह कर बिन्दू तो चली गई लेकिन मेरा मन उचट गया। तभी खबर आई कि मेरा रिजल्ट निकल गया है और मैं अच्छे नंबरों से पास हो गया हूँ। यह सुन कर मम्मी पापा बहुत खुश हुए और वो मेरे शहर जाने की तैयारी करने लगे ताकि बड़े कॉलेज में दाखला ले सकूँ। मुझको कॉलेज में दाखला लेने और शहर में जाने की कोई खास ख़ुशी नहीं हो रही थी। यहाँ चुदाई का अच्छा साधन बन गया था और मुझ को आशंका थी कि शहर में मुझको गाँव जैसा आनन्द नहीं मिल पायेगा।

शहर जाने में अभी कुछ दिन बाकी थे, मैं घूमते हुए अपनी कॉटेज में चला गया। शरबत का एक ठंडा गिलास बना कर पी ही रहा था कि दरवाज़ा खटका। खोला तो देखा कि सामने चम्पा खड़ी थी और उसके साथ एक और औरत भी थी। मैं चम्पा को देख कर खुश हो गया लेकिन उसके साथ खड़ी औरत को देख कर कुछ हिचकिचाहट सी होने लगी।

चम्पा बोली- छोटे मालिक, सुना आप परीक्षा में पास हो गए, सोचा बधाई दे आऊँ। इनसे मिलो, यह निर्मला है। बेचारी का पति भी बाहर गया हुआ है। मैंने सोचा कि छोटे मालिक से मिलवा देती हूँ शायद इसका भी कुछ काम हो जाए। मैं एकदम सकपका गया और मेरे मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल रहा था।

चम्पा बोली- छोटे मालिक, इसकी भी मदद कर दो, ज़िंदगी सुधर जायेगी इस बेचारी की। मैं बोला- कैसी मदद कर दूँ चम्पा इसकी? ‘वही जैसी आपने हमारी मदद की!’ ‘अरे मैं बदनाम हो जाऊँगा अगर गाँव वालों को पता चला तो? और फिर इसका पति भी नहीं है यहाँ। कैसे होगा यह सब?’

चम्पा ने कुछ सोचते हुए कहा- ऐसा करते हैं मालिक, आप इसको आज चोद दो तो इस का भी मन और शरीर ठीक हो जायेगा। मैंने कहा- इससे पूछ लो क्या यह इस काम के लिए राज़ी है? चम्पा ने निर्मला से पूछा- छोटे मालिक के सामने बताओ तुम क्या क्या चाहती हो? क्या इनसे चुदवाना है या नहीं? फिर अगर तुम को बच्चा ठहर जाता है तो छोटे मालिक जिमेवार नहीं होंगे। समझी न? निर्मला ने हाँ में सर हिला दिया।

चम्पा ने फिर कहा- ऐसे नहीं, मुंह से बताओ छोटे मालिक को कि तुम क्या चाहती हो? तब निर्मला बोली- मैं तैयार हूँ छोटे मालिक। उसका मुंह शर्म से लाल हो गया। यह सुन कर चम्पा निर्मला को लेकर अन्दर कमरे में चली गई और वहीं वो उसके कपड़े उतारने लगी। अब मैंने उस औरत को गौर से देखा, उसकी आयु होगी 20-21 और वो रंग की साफ़ थी और जिस्म भरा हुआ, उसके उरोज काफी गोल और उभरे हुए लग रहे थे। सबसे सुन्दर उसके मोटे और गोल चूतड़ थे जिनमें से काम वासना की एक महक आ रही थी।

मुझे लगा कि निर्मला कि उसका पूरा शरीर सिर्फ चुदाई के लिए बना था। गोल गदाज़ चूतड़ों के ऊपर उस की चूत बहुत उभरी हुई दिख रही थी। उसका सेक्सी बदन देख कर मेरा दिल उसको फ़ौरन चोदने के लिए तयार हो गया।

मैंने चम्पा से कहा- ऐसे नहीं चम्पा, तुम भी आओ मैदान में, तभी बात बनेगी। चम्पा बोली- मैं कैसे आ सकती हूँ। मैं तो अपने पति को भी पास नहीं आने देती आजकल! ‘तो फिर रहने दो…’ ‘नहीं नहीं छोटे मालिक, निर्मला का तो कल्याण कर दो। मुझको कष्ट होगा, 5वाँ महीना चल रहा है।’ ‘देखो चम्पा अगर तुम आती हो तो ठीक, नहीं तो निर्मला को भी नहीं?’ ‘देखेंगे, पहले निर्मला को तो चुदाई सुख दीजिये फिर मैं भी आ जाऊँगी।’

यह कह कर चम्पा ने मेरे कपड़े उतारने शुरू कर दिए। मेरे लंड को देख कर निर्मला के मुंह से ‘उई माँ’ निकल गया क्यूंकि मेरा लंड एकदम खड़ा था और 7 इंच का और लंड चूत के अंदर जाने के लिए बेताब था।

चम्पा ने निर्मला के होटों को चूमा और फिर उसके मम्मों को चूसने लगी। यह देख कर मुझ से रहा नहीं गया, मैंने उसके मोटे स्तनों को चूसना शुरू कर दिया, चूचियाँ सख्त हो गई थीं, उनको मुंह में लेकर चूसा और फिर एक हाथ उसकी चूत में डाल दिया। चूत एकदम गीली हो रही थी। चम्पा झुक कर निर्मला के गोल चूतड़ों को चाट रही थी।

चम्पा ने निर्मला को पलंग पर लिटा दिया और मैं भी झट से उसकी फैली हुई टांगों के बीच चला गया और लंड को निशाने पर बैठा कर ज़ोर का धक्का दिया और लंड पूरा का पूरा चूत में चला गया गया। निर्मला के मुंह से एक हल्की सिसकारी निकली और उसकी बाँहों ने मेरे को घेर लिया और अपनी छाती से चिपका लिया। कभी धीरे और कभी तेज़ धक्कों से शुरू हो गई हमारी यौन जंग…

शीघ्र ही निर्मला की चूत से पानी छूट गया और मैं तब भी अपने धक्कों में लगा रहा। कुछ समय बाद ही निर्मला का दूसरी बार भी छूटा और वो टांगें पसार कर लेट गई।

मैंने चम्पा की तरफ देखा, उसका मुंह शारीरिक गर्मी से लाल हो रहा था और उसका दायां हाथ धोती के अंदर था। मैंने चम्पा को पलंग पर खींच लिया और उसको घोड़ी बना कर उसको पीछे से पेल दिया लेकिन मैं बड़े ध्यान से उसको चोदने लगा। बड़े धीरे धक्के मार रहा था और पूरा लंड अंदर नहीं डाल रहा था। उसकी चूत भी पनिया गई थी। और इस तरह प्यार से मैं चम्पा को भी चोद दिया। एक बार उसके झड़ जाने के बाद में उसके ऊपर से उतर गया।

तब तक निर्मला अपनी ऊँगली से अपनी भगनसा को मसल रही थी और बड़े ध्यान से चम्पा की चुदाई को देख रही थी। जैसे ही मैं चम्पा के ऊपर से हटा, निर्मला ने अपनी टांगें फ़ैला दी और मुझको अपने ऊपर आने के लिए खींचने लगी, झट से मैं चम्पा की चूत को छोड़ कर निर्मला पर चढ़ गया। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

थोड़े धक्के मारने के बाद मैंने उसको भी घोड़ी बनने के लिए कहा और वो झट से घोड़ी बन गई। तब मैंने उसको फुल स्पीड से चोदना शुरू किया। उसके मुंह से कुछ अजीब सी आवाज़ आ रही थी जैसे कह रही हो ‘फाड़ दो मुझको… और ज़ोर से चोदो राजा।’ जैसे वो बोल रही थी वैसे ही मेरा जोश और बढ़ रहा था और मैं पूरी ताकत के साथ उसको चोदने में लग गया। उसके अंदर बहुत दिनों का यौन इच्छा का दबा हुआ सारा जोश जैसे एक साथ बाहर निकलने के लिए उतावला हो रहा हो।

अबकी बार जब निर्मला छूटी तो उसके चूतड़ उछलने लगे। मैंने चुदाई रोक कर बिन्दू की तरफ देखा तो वो भी हैरान थी कि निर्मला इतनी ज्यादा गर्म हो गई थी और तभी मुझको महसूस हुआ कि पानी का फव्वारा निर्मल की चूत से निकल रहा है और मेरे लंड समेत मेरा पेट तक को भिगो दिया। फिर अपने आप ही मेरा भी छूट गया और वो उसकी चूत की गहराई तक अंदर गया।

थोड़ी देर बाद हम तीनों संयत हुए। मैंने चम्पा से कहा- आज से बिन्दू भी नहीं आयेगी क्योंकि उसका घरवाला वापस आ गया है। चम्पा बोली- अच्छा तो फिर आप निर्मला को चोद लिया करना रोज़! ‘कैसे होगा यह सब? यह हमारे घर काम नहीं करती ना?’ ‘तो आप इसको कॉटेज में बुला लिया करो ना, क्यों ऐसा नहीं कर सकते क्या?’ ‘कर सकता हूँ लेकिन किसी ने देख लिया तो? फिर रोज़ रोज़ मुझको गर्मी में यहाँ आना पड़ेगा।’ ‘बोलो फिर क्या करें? क्यों निर्मला मालिक के घर काम करोगी?’

निर्मला बोली- कर लिया करूंगी। दिन को काम कर के रात को घर आ जाया करूंगी, क्यों ठीक है? ‘नहीं, रात भी रुकना पड़ेगा तुझको!’ ‘मेरी सास है न, वो शायद न माने, कोशिश करती हूँ।’ फिर वो दोनों चली गई और मैं वहीं सो गया।

अगले दिन चम्पा निर्मला को लेकर मम्मी से मिलने आई। थोड़ी देर बाद वो दोनों मम्मी के साथ मेरे कमरे में आईं। मम्मी ने आते ही कहा- सोमू, चम्पा इस निर्मला को ले कर आई है तुम्हारे काम के लिए! बोलो ठीक है यह? मैंने कहा- मम्मी, आप जो फैसला कर लो, वही ठीक है।

मम्मी ने चम्पा को कहा- चम्पा, तुम निर्मला को सोमू का काम समझा देना। वैसे ही यह तो जल्दी शहर जाने वाला है, उसके बाद मैं देखूंगी इसको कहाँ रखें। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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