अगर खुदा न करे… -3

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अंजलि समझ चुकी थी कि हम तीनों ने उसे खेल खेल में फंदे में ले लिया है। उसके हाथ-पाँव पकड़ रखे हैं। लगातार हो रहा चुम्बनों, स्तन-मर्दन, टांगों के बीच गुदगुदी के हमलों को वह कहाँ तक संभल पाएगी। उसकी तेज चलती साँसों और चेहरे की लाली में गुस्सा और उत्तेजना दोनों की भूमिका था। मैं कोशिश कर रहा था उसमें गुस्से की भूमिका घटाने की। जाएगी कहाँ… होंठों और स्तनों पर के अनुभवों को इनकार कर सकना उसके लिए मुश्किल था, असंभवप्राय! वह बेहद संवेदनशील अंगों वाली औरत थी।

मुझे गर्व हुआ। यह तेज साँस छोड़ती, मेरे होंठों के नीचे उम्म उम्म करती, उड़हुल की तरह चेहरा लाल कर रही औरत मेरी है। वह जितना असहाय हो रही थी उतनी ही मुझे उत्तेजना हो रही थी। लगा इसे रस्सी से बाँध दूँ और सब मिलकर उसके साथ संभोग करें। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं !

सुषमा ने देखा, अंजलि मेरे चुम्बन स्वीकार कर रही है। उसने उसका हाथ छोड़ दिया और उसकी पीठ पर ब्लाउज के बटन खोलने लगी। अंजलि ने हुमक-सी मारी पर मैंने उसे आलिंगन में बाँध रखा था। उसने पीठ सिकोड़ी मगर इससे उल्टे ब्लाउज का कपड़ा ढीला होकर बटन खोलने में मददगार हो गया। बटन खोलकर सुषमा ने ब्रा का हुक भी खोल दिया। ओह, यह हुक खोलना मेरी प्रिय चीज थी। पर ‘समाज’ के लिए मैंने इस व्यक्तिगत सुख का त्याग कर दिया।

ब्लाउज के नीचे ब्रा का सफेद फीता हल्का सा नम था। कपों के नीचेवाली पट्टी में स्तनों के बोझ से लम्बाई में पड़ी समानांतर सिलवटें थीं। ब्लाउज पीठ को खोलकर यूँ झूल गया था जैसे ड्यूटी समाप्त कर निश्चिंत पड़ गया हो।

यौन सुख का नशा जल्दी ही अंजलि पर तारी होने लगा, उसकी आहें निकलने लगी, होंठ काँपने लगे। सुषमा ने उसकी हालत देखकर अपने हाथ में पकड़े उसके हाथ को मेरे सिर पर लाकर जमा दिया। अंजलि का दूसरा हाथ स्वयं मेरे सिर पर आ लगा।

बला का चुम्बन, बला की बीवी, बला का सिचुएशन। आज उसी चिरपरिचित पत्नी की साँस की गंध में कोई और ही एहसास था, आज उसकी लार में कोई और ही मिठास थी। हथेली के नीचे उसकी छातियों के ऊपर नीचे होने में कोई और ही अनुभव मिल रहा था। लेकिन मैं याद रखे था- आज यह स्वाद मुझे नहीं लेना है, किसी और को दिलाना है। आज मैं उसे किसी और के लिए लाया हूँ। एक बार यह फूल अपना मधु किसी और भंवरे को दे दे।

मधु से मुझे अंजलि के निचले होंठों का ध्यान आया। पैरों को आगे-पीछे करने से साया जाँघों के ऊपर चढ़ जाता था, जिसे अंजलि पैरों के बीच दबाकर रोकने की कोशिश करती थी। निश्चित रूप से प्रकाश को पैंटी की झलक मिल रही होगी।

चोली और ब्रा खुलकर स्तनों पर झूल रहे थे और लेकिन उन्हें हटाकर नंगे स्तनों को थामने की जल्दबाजी मैंने नहीं दिखाई। सुषमा भी उसे सतर्क नहीं करना चाहती थी। उसने धीरे धीरे अंजलि के कंधों से चोली और फिर ब्रा को भी खिसका दिया। अंजलि के मुँह पर मेरा मुँह जमा था सो उसने कंधे उचकाकर बचने की कोशिश की लेकिन सुषमा ने उसकी रीढ़ पर उंगली फिराकर उसे मीठी गुदगुदी देते हुए निष्फ़ल कर दिया।

अंजलि के कंधों के उघड़ते ही उसके बदन की पसीने मिली खास गंध मेरे नथुनों में और बढ़ गई। सुषमा ने उसके गीले कंधे पर होंठ फिराए… पता नहीं अंजलि को यह बुरा लगा या अच्छा! शायद वह इसे महसूस भी नहीं कर पाई। मुझे अच्छा लगा कि सुषमा को पसीने से एतराज नहीं था।

धीरे धीरे मैंने अंजलि को पीछे की तरफ झुकाना शुरू कर दिया। सुषमा ने सिरहाने तकिया लगा दिया। नीचे प्रकाश अंजलि की ‘चरण-सेवा’ में लगा हुआ था, हालाँकि साया चरणों से बहुत ऊपर उठ चुका था और पैंटी से ढँकी ‘देव-प्रतिमा’ साया के अंदर से लुकाछिपी खेलती भक्त के धैर्य की परीक्षा ले रही थी। मैंने मन ही मन कहा- लगे रहो वत्स। हम हैं ना। ‘भग-वान’ अवश्य दर्शन देंगे।’

‘ओ अंजलि…’ खुशी से भरकर मैं एक बार उसके चेहरे के ऊपर फुसफुसाया। उसके होंठ उत्तर में फुसफुसाए, लेकिन मुझे शब्दों में कुछ नहीं सुनना था। यह जो आज हो रहा था यह मेरे कितने लम्बे इंतजार में चल रहे सवालों का जवाब ही तो था। अंजलि का एक-एक ‘चीर-हरण’, उसकी एक-एक हरकत, बाद में आनेवाले रति-क्रिया के दृश्य मेरे सवालों के उत्तरों से सिलसिले ही तो होंगे।

प्रकाश ने उसकी साए की गाँठ की डोरी खींची। रेशमी धागे की सरसराहट की मीठी आवाज मेरे मोहित मुग्ध मन में अंकित हो गई। यह एक महत्वपूर्ण मोड़ था। मैंने उसे बाँहों पर लेते हुए बिस्तर पर लिटा दिया, सुषमा ने कमर में खींच खींचकर साए की डोर को ढीला किया। इस दौरान प्रकाश उसके पैरों को पकड़कर उनकी बगावत को शांत किए रखा, हालाँकि बगावत में कुछ खास दम नहीं बचा था।

डोर पर्याप्त ढीली होने के बाद सुषमा ने उसकी कमर के नीचे हाथ डालकर नितंबों को उठाने के लिए प्रेरित किया और प्रकाश ने साए को नितंबों से खींचकर झटके के साथ पैरों से बाहर निकाल लिया।

मुझे बड़ी इच्छा हुई कि इस अनमोल घटना को किसी वीडियो कैमरे में कैद कर लेते। मेरी पत्नी कमर से नीचे नंगी थी। दुनिया की नजरों से सदा छिपे रहने वाली टाँगें इस समय ‘खुलकर’ अपनी खूबसूरती बिखेर रही थी। गोरी चमकती जांघें, उनके बीच के उभार पर तनी गुलाबी पैंटी, बीच में अंदर की विभाजक रेखा का आभास। गोल घुटने, जाँघों से नीचे क्रमशः मोटाई खोती पिंडलियाँ, टखनों से नीचे भरी एड़ियाँ, नेल पॉलिश से चमकती उंगलियाँ। एक जोड़ी सुंदर स्त्री पाँव! अगर कोई पुरुष इस पर मर न मिटे तो उसका जीना बेकार है। मैंने अपने भाग्य पर गर्व किया।

‘या देवी सर्वभूतेषु कामनारूपेण संस्थिता’ … हे देवी तुम सभी जीवों में कामना बनकर मौजूद हो।

मैंने उस देवी की आँखों पर से पट्टी उतार दी — कि वह अपने मुग्ध कर देनेवाले सौंदर्य को खुद भी देख सके… पर वह आँखें कसकर बंद किए थी। सुषमा ने उसकी ब्रा और चोली उतार दी। अब अंजलि के तन में, और मन में भी, कोई बाधा नहीं बची थी। हमने उसके स्तनों को सम्हाल लिया। सुषमा के साथ मिलकर अंजलि के स्तनों को चूसना, चूमना, सहलाना, एक दूसरे की देखादेखी हाथों में लेकर मसलना बहुत अच्छा लग रहा था। अंजलि ही सुषमा को मेरे नजदीक लाने में माध्यम बन रही थी।

अंजलि कसमसा रही थी। हमने उसके हाथों को खुला छोड़ दिया था ताकि वे यौनोत्तेजना को प्रकट कर सकें। वे कभी छटपटाते थे, कभी हमारे सिरों को सहलाने लगते, कभी परेशान होकर हमारे चेहरों को स्तनों पर से हटा देते। हम खुद भी अंजलि को ज्यादा परेशान नहीं करने के लिए बीच बीच में उसके स्तनों को छोड़ देते थे।

मुझे सुषमा के प्रति अन्याय ही लग रहा था कि मैं उसके साथ कुछ नहीं कर रहा था, जबकि वह भी तो ‘गर्म’ हो रही होगी। लेकिन अंजलि के लिए यह पहला मौका था और उसे पूरा ध्यान देना जरूरी था। सुषमा भी इसे सफल बनाने की पूरी कोशिश में लगी थी। एक बार अंजलि पूर्ण नग्न हो जाए, प्रकाश के लिंग को अपने अंदर स्वीकार कर ले, उसका सतीत्व समाप्त हो जाए, कम से कम मुझे तो चाँद-सितारों की खुशी हासिल हो जाएगी। और अंजलि बची भी कहाँ थी, पूरी नंगी तो हो ही चुकी थी, दूसरा लक्ष्य भी ज्यादा दूर नहीं था।

फिर भी, अंजलि के चेहरे और छातियों के ठीक ऊपर अपने चेहरे के पास सुषमा मुँह की नजदीकी इतनी उत्तेजक थी कि अलग रहना मुश्किल था। मैंने सुषमा के मुँह को अपनी तरफ घुमा लिया और उसके होंठों पर अपने होंठ दबा दिए। गरमाई हुई सुषमा तुरंत ही मेरे सिर को पकड़ कर जोर जोर से मेरे होंठों को अपने मुँह में खींचकर चूसने लगी।

चुम्बनों का शोर सुनकर अंजलि की आँखें खुल गईं, उसकी लाल डूबी आँखों में हैरानी का भाव उभरा। मैंने झुककर अंजलि को चूम लिया। अगले ही क्षण सुषमा ने दुगुने जोर से उसका चुम्बन लिया, वह फिर आँखें मूंदने को विवश हो गई। मुझे बड़ा मजा आया। हमने मिलकर कुछ और बार यह खेल दुहराया। कुछ देर में अंजलि सहयोग भी करने लगी। वह मेरे साथ साथ सुषमा के भी चुम्बनों का जवाब देने लगी।

सुषमा के थोड़ी ही देर के उस चुम्बन ने जतला दिया कि वह बिस्तर पर कितनी गरम औरत साबित होगी, दम-खम की पूरी परीक्षा होगी। सुषमा ने मेरा ध्यान खींचा – वह एक छोटी-सी बाधा, जो प्रकाश की विनम्र कोशिशों से जाने का नाम नहीं ले रही थी। पैंटी। औरत के संकोच का एक कोना हमेशा बचा रहता है – शायद पूर्ण संभोग के बाद भी। कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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