मेरा गुप्त जीवन- 133

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मधु मैडम और रूबी मैडम ने हम सबको आलिंगनबद्ध किया और फिर उनकी कार और लड़कियों से भरी मिनी बस लखनऊ के लिए रवाना हो गई। उधर देखा चाची लड़कियों के जाने से बहुत खुश लग रही थी और खूब चहक रही थी, कम्मो मुंशी जी के साथ बैठ कर सब काम करने वालों की तनख्वाह का हिसाब कर रही थी।

मुझको खाली देख कर चाची मेरे पास आ गई और बोली- सोमू राजा, आओ कमरे में चलते हैं। मैं बोला- थोड़ा ठहरो चाची, सब काम वालियों को भुगतान कर दें तो फिर चलेंगे।

मुंशी जी ने कम्मो को जिन लड़कियों को पेमेंट करनी थी, उनकी लिस्ट बना कर दे दी थी और उतने पैसे भी गिन कर दे दिए थे। बाहर लॉन में दो तीन कुर्सी बिछा दी थी और एक मेज भी रख दिया था।

मैं, कम्मो और मुंशी जी बैठ गए और कम्मो बारी बारी से सब लड़कियों के नाम बोल रही थी और सब आगे आकर अपने पैसे ले रही थी और रजिस्टर में अंगूठा भी लगा रही थी। जब सब पैसे बंट गए तो सब काम वाली लड़कियों से मैंने पूछा- आप सबको अपने पैसे मिल गए और किसी का कुछ बाकी तो नहीं बचा? सबने ज़ोर से हाँ कहा और फिर फुलवा ने खड़ी होकर मेरा और बड़े मालिक का शुक्रिया भी कहा जिनकी वजह से यह फिल्म वाले यहाँ आये शूटिंग के लिए और उन सबको काफी सारे पैसे भी दिलवाये।

जब सब चले गए तो मुंशी जी ने मुझको और कम्मो को भी बहुत सारे पैसे दे दिए जो हमारे लिए फिल्म वाले दे गए थे। जब यह पैसे का मामला निपट गया तो मैं अपने कमरे में चला गया और कम्मो कुछ लड़कियों को लेकर कॉटेज की सफाई के लिए चली गई।

अब हवेली में मैं और चाची अकेले ही रह गए, मैं तो अपने कमरे में चला गया और चाची अपने कमरे में! थोड़ी देर ही लेटा हूँगा कि चाची धड़धड़ाती मेरे कमरे में आ गई और आते ही उन्होंने मुझ को पलंग पर ही धर दबोचा, मेरे चेहरे को पकड़ कर चुम्मियों की बारिश कर दी और मेरे शरीर के सारे अंगों को सहलाने लगी। बिना किसी शर्म के उस ने मेरे लंड को पैंट से बाहर निकाल कर चूसना शुरू कर दिया।

मैंने कहा भी कि चाचा किसी वक्त भी आ सकते हैं तो वो बोली- तुम्हारे चाचा आज रात नहीं आ सकते क्यूंकि वो मुझको कह कर गये थे कि शायद आज रात वो नहीं लौट पाएंगे तो तुम सोमू उनकी फ़िक्र ना करो। मैं बोला- तब तो चाची हमारे पास सारी रात है, आराम से मैं आपकी सेवा कर दूंगा रात में, अभी आप अपने कमरे में जाओ! चाची बोली- सोमू यार, मेरा दिल एक छोटी चुदाई के लिए बहुत बेकरार है, तुम सिर्फ एक छोटी सी चुदाई कर दो मेरी प्लीज।

यह कह कर चाची ने अपनी सिल्क की साड़ी और पेटीकोट ऊपर कर दिया। लेकिन मैं बोला- ऐसे नहीं चाची, अगर चुदाई की इतनी ज़्यादा इच्छा है तो पूरी नंगी होना पड़ेगा! चाची थोड़ी असमंजस में पड़ी फिर बोली- कोई आ गया तो क्या होगा? मैं बोला- वो तुम जानो, मैं तो अपने कमरे में हूँ, सारा दोष तुम्हारे माथे पड़ेगा।

चाची एकदम जोश के साथ उठी और अपने कपड़े उतारने लगी। पहले उन्होंने अपनी सिल्क की साड़ी उतार दी और फिर अपने उभरे हुए उरोजों के ऊपर से सिल्क की ब्रा उतारी और अपने मुम्मों को मेरे मुंह के पास लाकर हिला हिला कर मुझको ललचा रही थी। फिर उन्होंने अपने पेटीकोट के नाड़े को धीरे धीरे खोलना शुरू कर दिया और ऐसा करते हुए उनकी नज़रें मेरे लौड़े पर ही टिकी हुई थी जो पैंट के थोड़ा बाहर हो कर ही हवा में लहरा रहा था।

चाची जब पूरी नंगी हो गई तो वो अपनी नग्नता को मेरे सामने बार बार ला कर मुझको रिझाने की कोशिश कर रही थी। फिर उन्होंने मुझको पलंग से उठा लिया और एक एक कर के मेरे कपड़े उतारने लगी। अब मैंने उनको ध्यान से देखा तो वो भी एक ख़ूबसूरती का मुज़स्समा निकली, हर अंग शरीर का सांचे में ढला था, गोल उभरे हुए सॉलिड चूचे और स्पाट पेट और गोल और उभरे हुए चूतड़… कुल मिला कर ज़न्नत का नज़ारा पेश कर रही थी चाची का बदन। चूत पर छाये घने काले बाल बहुत ही सेक्सी दिख रहे थे।

अब मैंने चाची को आगे बढ़ कर गले से लगा लिया और उनके चूतड़ों को हाथों से मसलने लगा। यह कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं ! फिर मैंने चाची को बिस्तर में लिटा दिया और जल्दी से उनकी जांघों के बीच अपना मुंह डाल कर उनकी चूत को चूसने लगा। चूत बेहद गर्म और नर्म हो रही थी और वो उछल उछल कर मेरे मुंह से चिपक रही थी और मुझको मजबूर कर रही थी कि मैं उनकी भग को चूसूं।

मेरे मुंह के उनकी चूत के साथ छूते ही वो एकदम से मस्ती से उछल पड़ती जिससे मैं समझ गया कि चाची का यह पहला मौका है चूत चुसाई का! वैसे भी बाद में मुझको ज्ञान हुआ कि चूत चुसाई उस वक्त के आदमियों में बहुत ही बुरी नज़र से देखी जाती थी और कोई भी पति या प्रेमी इस क्रिया को नहीं करता था। पतियों द्वारा ना किये जाने के कारण तकरीबन सब औरतें इस क्रिया से मिलने वाले आनन्द से वंचित थी। लेकिन यह क्रिया उस ज़माने की औरतों में आपस में काफी प्रचलित थी और वो एक दूसरी के संग इसको अक्सर इस्तेमाल करती जानी गई थी।

मेरी चूत चुसाई से चाची इतनी अधिक कामुक हो गई थी कि मुझको तकरीबन आधा घंटा लग गया उनकी चूत को शांत करने में और इस दौरान वो कई बार स्खलित हुई, ऐसा मुझको महसूस हुआ। जब उन्होंने मुझको अपने ऊपर खींचा चोदने के लिए, तो चाची एकदम मदहोश सी हुई लग रही थी और जैसे ही अकड़ा हुआ गर्म लंड उनकी रसभरी चूत में डाला तो चाची ने मुझको कस के अपनी छाती से लगा लिया और स्वयं ही नीचे से धक्के मार मार कर चुदवाने लगी।

ऐसा चुदाई का नज़ारा मैंने अपने जीवन में अभी तक नहीं देखा था जिसमें एक औरत इतनी ज़बरदस्त चुदाई की इच्छुक हो। जब चाची की चूत 2-3 बार झड़ने के कारण सिकुड़ चुकी तो मैंने उनके ऊपर से हटने की कोशिश की लेकिन हर बार चाची की सॉलिड जांघें मेरी कमर के चारों तरफ लिपटी होने के कारण मैं उनकी गिरफ़्त से निकल नहीं पाया और मजबूरन उनको चोदना जारी रखा।.

जब मैं इस पोज़ से थक गया तो मैंने चाची को कहा- चाची, मैं तुमको अब घोड़ी बना कर चोदता हूँ, उसमें और भी मज़ा आएगा। चाची एकदम से चहक उठी- वह कैसे होता है सोमू? वैसे मैंने कभी किया ही नहीं, चलो जल्दी से घोड़ी बनाओ मुझको? मैंने चाची को घोड़ी बना दिया और उसके पीछे घुटनों के बल बैठ कर चुदाई करने लगा।

चाची को इस पोज़ में बहुत आनन्द आने लगा क्यूंकि लंड का पूरा स्वाद मिल जाता है और औरत को कोई मेहनत भी नहीं करनी पड़ती। चाची को घोड़ी पोज़ की चुदाई बहुत पसंद आई और वो दो तीन मर्तबा झड़ जाने के बाद अपने आप ही अलग होकर बिस्तर पर लेट गई। मैंने शुक्र किया कि चलो ‘पीछा तो छूटा’ और जल्दी से कपड़े पहन कर बाहर निकलने से पहले चाची को बोल आया कि आप भी कपड़े पहन लो, कहीं मम्मी पापा ना आ जायें।

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

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