संतान के लिए परपुरुष सहवास -3

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

कहानी का पहला भाग : संतान के लिए परपुरुष सहवास-1 कहानी का दूसरा भाग : संतान के लिए परपुरुष सहवास-2

अनीता और संजीव भी अलग हो गए और अपने अपने वस्त्र पहन लिए तथा मुझे विदा करने के लिए अपने घर के दरवाज़े तक आये।

अपने घर जा कर देखा तो घड़ी पर बारह बज चुके थे इसलिए मैं बिस्तर पर सोने के लिए में लेट गई। क्योंकि मेरी समस्या हल हो चुकी थी और मन शांत था इसलिए पता ही नहीं चला की मुझे कब नींद आ गई।

सुबह छह बजे नींद खुली तो अपने को बहुत हल्का, तारो-ताजा तथा ऊर्जावान पा कर मन में उल्लास भर उठा और मैंने पति के आने से पहले घर का बहुत सा काम निपटा लिया। सात बजे अमित ने आकर चाय नाश्ता किया और सोने चला गया तथा मैं साफ-सफाई में व्यस्त हो गई।

अमित की नींद में कोई खलल नहीं पड़े इसलिए मैं काम समाप्ति के बाद ग्यारह बजे नहा धोकर अनीता के घर चली गई। दो घंटे उससे बातें करने के बाद मैं एक बजे घर वापिस आई, अमित के लिए खाना बनाया और उसे खिलाने के बाद उसी के साथ चिपट कर सो गई।

शाम को अमित उठा, नहा धोकर तैयार हुआ तथा नौ बजे रात का खाना खाकर काम पर चला गया। माहवारी समाप्त होने तक तो अमित के साथ यही दिनचर्या चलती रही लेकिन उसके बाद के अगले छह दिन मैंने इसमें एक और क्रिया जोड़ दी। शाम को जब मैं सो कर उठती तब अमित को जगा एवं उत्तेजित करके कर उसके साथ एक बार संसर्ग अवश्य करती थी।

अगले छह दिनों तक इसी प्रकार की दिनचर्या व्यतीत होती गई और सातवाँ दिन मैंने उस रात को होने वाली क्रीड़ा की तैयारी में गुजार दिया। उस दिन अमित के सो जाने के बाद घर का काम निपटा कर नहाते समय अपने जघन-स्थल और बगल के सभी बालों को साफ़ कर दिया और योनि के आस पास के क्षेत्र की बादाम रोगन से मालिश भी कर दी।

उस रात नौ बजे अमित के काम पर जाने के बाद मैं नहाई तथा अपने चेहरे पर हल्का सा मेकअप किया और दस बजे सिर्फ ब्रा, पैंटी एवं नाइटी पहन कर अनीता के घर पहुँच गई। मुख्य द्वार की घंटी बजाने पर अंदर से अनीता ने कहा- अमृता, दरवाज़ा खुला है तुम अन्दर आ जाओ।

मैं दरवाज़ा खोल कर अंदर गई तो देखा कि सामने वाले सोफे पर संजीव और अनीता बैठे हुए कॉफ़ी पी रहे थे। मुझे देखते ही संजीव ने मुझे अपने पास बैठने का इशारा किया और पूछा- अमृता, क्या तुम कॉफ़ी पीओगी? मैं नहीं कहते हुए थोड़ा झिझक कर खड़ी सोच ही रही थी कि कहाँ बैठूं, तभी अनीता ने मुझे पकड़ कर खींचते हुए अपने और संजीव के बीच में बिठा लिया।

कुछ ही क्षणों के बाद जब संजीव और अनीता के कॉफ़ी समाप्त कर ली तब हम तीन उठ कर उनके बेडरूम में चले गए। बैडरूम में घुसते ही अनीता ने मेरी नाइटी, ब्रा एवं पैंटी उतार कर मुझे भी पूर्ण नग्न कर के बिस्तर पर लिटा दिया और फिर संजीव का अंडरवियर उतार कर उसे धक्का देकर मेरे बगल लिटा कर बाहर चली गई।

हम दोनों में से ‘पहल कौन करता है’ इसकी प्रतीक्षा करते हुए हम दोनों कुछ देर तक सीधे लेटे रहे। मुझे अपनी दोनों टाँगें सिकोड़ कर योनि और हाथों से अपने स्तनों को छुपाते हुए देख कर संजीव के सब्र का बाँध टूट गया और उसी ने पहल कर दी। उसने मेरी ओर करवट ली और मेरे चेहरे को अपने हाथों से पकड़ते हुए अपने पास खींचा तथा मेरे होंठों पर होंठ रख कर मेरा चुम्बन लेने लगा।

पहले तो मैंने संकोच किया लेकिन फिर अपने निश्चय का स्मरण आते ही मैं संजीव का साथ देने लगी और उसके चुम्बन उत्तर चुम्बन से देने लगी। दस मिनट तक की इस चुम्बन क्रिया से जब दोनों के बीच का संकोच कम हुआ तब संजीव ने मेरे ऊपर लेट कर मेरे स्तनों पर से मेरे हाथों को हटा कर उन्हें अपने हाथों से मसलने लगा। उसने अपने उत्तेजित एवं तने हुए लिंग को मेरी जाँघों के बीच में दबाते हुए उसकी गर्मी मेरी योनि तक पहुंचा दी जिससे उसमें भी उत्तेजना शुरू हो गई।

कुछ देर के बाद संजीव ने मेरे होंठों से अपने होंठ अलग किये और मेरे एक स्तन की चू्चुक को मुँह में लेकर चूसने लगा और एक हाथ की बड़ी ऊँगली से मेरी भगनासा को सहलाने लगा। साथ में दूसरे हाथ की ऊँगली और अंगूठे के बीच में मेरे दूसरे स्तन की चूचुक को लेकर मसलने लगा।

संजीव द्वारा ऐसा करने से मेरे पूरे शरीर में उत्तेजना की लहरें दौड़ने लगी और मेरे मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी। मैंने उत्तेजनावश अपनी जांघें चौड़ी करके एक हाथ से उसके लिंग को पकड़ कर सहलाने और मसलने लगी जिस कारण वह भी सिसकारियाँ भरने लगा।

अगले दस मिनट तक इस संसर्ग पूर्व-क्रिया के बाद संजीव पलट कर मेरे ऊपर ही लेट गया और मेरी जाँघों को चौड़ा करके अपने मुँह को मेरी योनि पर रख कर उसे चूसने एवम् चाटने लगा। संजीव ने मुझे उसके लिंग को चूसने के लिए कहा लेकिन मैंने मना कर दिया और उसके लिंग-मुंड को चूम कर उसे अपने हाथ से हिलाने एवं मसलने लगी।

संजीव को इस क्रिया को करते हुए पन्द्रह मिनट ही बीते थे कि मुझे उत्तेजना की लहरों से झटके लगने लगे और कुछ ही क्षणों में मेरा शरीर अकड़ गया तथा मेरी योनि से रस स्खलित हो गया। तब संजीव उठ कर सीधा हुआ और मेरी टांगों के बीच में बैठ कर अपने लिंग को मेरी गीली योनि के मुख पर रखा तथा एक हल्का सा धक्का लगाया।

धक्का लगते ही संजीव के लिंग का तीन इंच मोटा लिंग-मुंड मेरी योनि के द्वार में घुस गया जिससे मुझे कुछ असुविधा हुई और मेरे मुँह से आह्ह.. निकल गई। मेरी आह्ह.. सुन कर संजीव रुक गया और मुझसे पूछा- क्या हुआ? क्या अधिक तकलीफ हो रही है? अगर कहो तो मैं बाहर निकाल लेता हूँ। मैंने तुरंत कहा- नहीं, कुछ नहीं हुआ, आप संसर्ग ज़ारी रखिये।

मेरा उत्तर सुन कर संजीव बोला- तो फिर तुमने आह्ह.. क्यों करी थी? मैं बोली- असल में आपका लिंग-मुंड कुछ अधिक मोटा है और उसके के अन्दर जाने से मेरी योनि के मुख में कुछ अधिक खिंचाव हो जाने के कारण कुछ असुविधा हुई थी इसलिए अहह.. निकल गई। अब मैं ठीक हूँ।

मेरी बात सुन कर संजीव ने अपना ध्यान फिर से संसर्ग पर केन्द्रित किया और हल्के धक्के लगते हुए बहुत ही धीमी गति के साथ अपने पूर्ण लिंग को मेरी योनि में प्रवेश करा दिया। सम्पूर्ण लिंग के अन्दर जाते ही मुझे ऐसा लगा कि किसी ने मेरी योनि के हर नुक्कड़ और कोने को ठूंस कर भर दिया गया हो।

मुझे अधिक असुविधा नहीं हो इसलिए गतिविधि आगे बढाने से पहले ही मैंने संजीव से कहा- मेरी योनि को आपके लिंग के नाप एवं आकार से अभ्यस्त होने तक रुक जाइए। मेरी बात सुन कर संजीव कुछ देर के लिए तो रुक गए और मेरे होंठों तथा मेरे चूचुकों को बारी बारी से चूसते एवं मसलते रहे।

लगभग पांच मिनट के बाद उन्होंने अपने लिंग को फुलाने लगे जिससे वह मेरी योनि में अपना स्थान बनाने और मेरी योनि को उसके आकार एवं नाप से अभ्यस्त कराने में सफल रहे। उसके कुछ ही देर के बाद संजीव ने अपने लिंग को पहले आहिस्ता आहिस्ता और फिर कुछ क्षणों के बाद तेज़ी से मेरी योनि के अन्दर बाहर करने लगे।

दस मिनट तक इसी प्रकार संसर्ग करते रहने पर जब मेरी उत्तेजना काफी बढ़ गई तब मैंने उन्हें तेज़ी से संसर्ग करने के लिए आग्रह किया।

मेरा अनुरोध सुन कर वो बहुत अपने लिंग को बहुत तेज़ी से मेरी योनि के अन्दर बाहर करने लगे जिस कारण मेरी योनि में से रस का स्राव होने लगा। उस योनि रस-स्त्राव के कारण योनि के अन्दर काफी फिसलन हो गई थी जिसके कारण संजीव के लिंग की गमनागमन गति बहुत ही तीव्र हो गई।

इस अति तीव्र गमनागमन गति के कारण लग रही रगड़ से मेरी योनि में बहुत ही तेज़ हलचल तथा सिकुड़न होने लगी थी और हर पांच मिनट के अन्तरकाल में वह योनि-रस का स्राव कर देती। इस अत्यंत तीव्र संसर्ग को अभी पन्द्रह मिनट ही हुए थे तभी मैंने महसूस किया कि मेरी योनि में हो रही सिकुड़न के साथ संजीव के लिंग में भी फुलावट होने लगी थी।

मेरी सिसकारियों के साथ साथ संजीव भी हुंकार की आवाजें सुन कर मुझे यह समझते देर नहीं लगी कि संजीव भी संभोग के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने वाला था। अगले कुछ ही क्षणों में हम दोनों की टांगें एवं शरीर अकड़ने लगे और संजीव के लिंग पर मेरी योनि की पकड़ और भी अधिक हो गई।

तभी संजीव ने ऊँचे स्वर में हुंकारते हुए एक जोर का धक्का लगा कर अपने लिंग को मेरी योनि के अन्दर गर्भाशय के मुँह तक पहुंचा दिया और वीर्य स्खलन क्रिया शुरू कर दी।

उसके लिंग का गर्म गर्म वीर्य जैसे ही मेरी योनि एवं गर्भाशय में गिरा वैसे ही मेरी योनि में अत्यंत तीव्र सिकुड़न हुई और उसने संजीव के लिंग को जकड़ कर निचोड़ना शुरू कर दिया। लगभग अगले एक मिनट लगातार संजीव के लिंग में से चल रहे वीर्य रस का फव्वारे ने मेरी योनि के अंदर इतनी गर्मी पैदा कर दी थी कि जैसे वहाँ आग लगा दी गई हो।

पिछले तीन वर्ष से अपने पति के साथ सहवास करते हुए मुझे अपनी योनि में ऐसी गर्मी एवं आग कभी महसूस नहीं हुई थी। मुझे ऐसा लग रहा था की जैसे मेरी योनि एवं गर्भाशय में कोई मन्थन हो रहा था और किसी दौड़ प्रतियोगिता चल रही थी। उस आखिरी धक्के और वीर्य स्खलन के बाद संजीव निढाल होकर मेरे ऊपर लेट गया और उसका लिंग सिकुड़ कर मेरी योनि से बाहर निकल गया था।

ठीक उसी समय कमरे का दरवाज़ा खोल कर अनीता अंदर आई और संजीव को मेरे ऊपर से हटा कर मेरे और उसके बीच में लेट गई। अनीता के अन्दर आने पर अकस्मात् मुझे कुछ संकोच होने लगा और मैं उठ कर बाथरूम जाने लगी तब उसने मुझे रोका और कहा– अभी आधे घंटे तक ऐसे ही लेटी रहो। मैंने पूछा- क्यों? अनीता बोली- तुम्हारे ऐसे ही लेटे ते रहने से शुक्राणुओं को गर्भाशय के अंदर तक पहुँचने में सुविधा रहगी। अगर तुम अभी खड़ी हो जाओगी तो वीर्य के साथ शुक्राणु भी बाहर बह जायेंगे।

अनीता की बात समझ आते ही मैं वैसे ही लेट गई और मुझे कब नींद आ गई पता ही नहीं चला। सुबह पांच बजे जैसे ही अलार्म बजा तब अनीता ने मुझे जगाया और मैं जल्दी से उठ कर कपड़े पहन कर अपने घर पर आ कर सो गई। सात बजे अमित काम से आया तब मैंने उठ कर उसे नाश्ता चाय कराया और फिर कुछ देर तक उसके साथ ही चिपक कर लेटी रात को किये संसर्ग के बारे में सोचती रही।

जब अमित सो गया तब मैं उठ घर के काम में लग गई और दोपहर तक सभी काम निपटा कर कुछ देर के लिया अनीता के घर चली गई। दोपहर के दो बजे अपने घर आ कर मैंने अमित उठाया और तब हम दोनों ने खाना खाया तथा उसके बाद दोबारा सोने से पहले मेरे अनुरोध पर उसने मेरे साथ संसर्ग किया।

पिछले दिन की तरह रात नौ बजे अमित के काम पर जाने के बाद मैं नहा धो कर तैयार हुई दस बजे अनीता के घर पहुँच गई। उस रात भी संजीव ने मेरे साथ एक बार वैसे ही संसर्ग किया जैसे पिछली रात किया था और उस पूरी रात मैं उसके साथ ही सोई रही क्योंकि अनीता संजीव के दूसरी ओर सोई थी।

इस तरह उन दस दिनों की अवधि के पहले पांच दिनों की दिनचर्या ऐसे ही चलती रही लेकिन छट्टी रात दस बजे जब मैं अनीता के घर पहुंची तो देखा की अनीता सो चुकी थी और संजीव मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे।

मेरे पूछने पर संजीव ने बताया की अनीता को कमर में दर्द हो रहा था इसलिए वह दवा खा कर लेट गई थी और उसे नीद आ गई थी। मैंने संजीव से कहा- अगर हम इसी बिस्तर पर संसर्ग करते हैं तो अनीता की नींद में विघ्न पड़ेगा इसलिए आज कुछ नहीं करते हैं। इतना कह कर जब मैं मुड़ अपने घर जाने लगी तब संजीव ने प्रस्ताव रखा- ऐसा करते हैं, अनीता को यहीं सोने देते हैं। मैं तुम्हारे साथ तुम्हारे घर चलता हूँ, वहाँ संसर्ग करने के बाद मैं यहाँ वापिस आ जाऊँगा।

क्योंकि मैं गर्भवती होने की प्रक्रिया में असफल नहीं होना चाहती थी और मुझे संजीव का प्रस्ताव भी न्यायसंगत लगा इसलिए मैंने हाँ कह दी। उसके बाद हम दोनों ने मेरे घर में आ गए और दोनों ने एक दूसरे को नग्न कर के संसर्ग किया।

संसर्ग के अंत में वीर्य स्खलन से पहले संजीव ने मेरी टांगों को ऊँचा करके मेरे हाथों में पकड़ा दिया और जोर का धक्का लगा दिया। उस धक्के के कारण संजीव का लिंग-मुंड मेरी पूरी योनि को पार करता हुआ मेरे गर्भाशय के मुहं में घुस गया और उसका सारा वीर्य रस उसी में स्खलत हो गया। उसके बाद संजीव निढाल होकर मेरे साथ ही लेटा रहा और हम दोनों को नींद आ गई।

रात तो दो बजे जब मेरी नींद खुली और संजीव को मेरे स्तनों को पकड़ कर सोते हुए देखा तो मैंने उसे जगा कर पूछा- संजीव जी, रात के दो बज गए हैं। क्या आपने अपने घर नहीं जाना? अनीता वहाँ अकेली है। संजीव ने झट से उठते हुए उत्तर दिया- हाँ हाँ अनीता वहाँ अकेली होगी। तुम तो ठीक हो न? तुम्हें और कुछ चाहिए हो तो बता दो मैं ला कर दे जाऊँगा।

मुझे उसकी बात सुन कर मन में लालच आ गया और मैं बोली- जो थोड़ी देर पहले दिया है, क्या वह एक बार और दे सकते हैं? मेरी बात सुन कर संजीव हंसा और बोला- क्या बात है आज दूसरी बार करने को कह रही हो? क्या पहली बार में संतुष्टि नहीं मिली और प्यासी रह गई हो? मैंने कहा- नहीं ऐसी कोई बात नहीं है, मुझे तो पूर्ण संतुष्टि मिली है लेकिन अंत में जब लिंग-मुंड गर्भाशय के मुहं के अन्दर चला गया था उसका अनुभव बहुत सुखद था और वह अनुभव एक बार फिर लेने की मेरी इच्छा हो रही है। अगर आप नहीं करना चाहते तो ना सही।

मेरी बात सुन कर संजीव बिना कुछ बोले मेरे पास सरक आये और मेरे होंठों पर अपने होंठ रखते हुए उन्हें चूसने लगा तथा अपने हाथों से मेरे स्तनों एवं भगनासा को मसलने लगे। एक बार फिर संसर्ग करने की लालसा को पूर्ण होते देख मेरी उत्तेजना बहुत ही शीघ्रता से बढ़ने लगी और देखते ही देखते दस मिनट में ही हम दोनों का लिंग तथा योनि के बीच का घर्षण शुरू कर दिया।

पन्द्रह मिनट के तेज़ घर्षण के अंत में संजीव ने एक बार फिर मेरी टाँगे ऊपर करके मेरे हाथों में थमा दी और जोर से एक धक्का लगा कर अपने लिंग-मुंड को मेरे गर्भाशय में घुसा दिया। ऐसा होते ही मेरी योनि में बहुत ही तीव्र सिकुड़न हुई और उसने लिंग को जकड़ लिया तथा उसे निचोड़ने लगी।

उस समय संजीव के लिंग में से निकली वीर्य की हर एक पिचकारी सीधे मेरे गर्भाशय के अंतरस्थल पर गिरती और वहाँ आग लग जाती। उस आग की गर्मी से मुझे जो आनन्द एवं संतुष्टि प्राप्त हो रही थी शायद हर स्त्री के मन में हमेशा उसी आनन्द एवं संतुष्टि को अनुभव करने की लालसा रहती है।

दस मिनट तक निढाल अवस्था में हम दोनों बिस्तर पर लेटे रहे जिसके बाद संजीव और मैंने उठ कर कपड़े पहने और वे अपने घर चले गए तथा मैं अपने बिस्तर पर सोये सोये मीठे सपने देखने लगी।

सात बजे अमित के आने के बाद मेरी दिनचर्या पिछले दिनों जैसे ही रही और रात को जब मैं अनीता के घर गई तो पता चला कि मासिक धर्म आने के कारण वह थोड़ी खिन्न थी तथा जल्दी सो गई थी। मैं बिना कोई आगे बात किए संजीव के साथ अपने घर आ गई और पिछली रात की तरह दो बार संसर्ग किया जिसमें संजीव ने अपने लिंग-मुंड को मेरी गर्भाशय में घुसा कर ही वीर्य का स्खलन किया।

ऐसी प्रक्रिया और दिनचर्या बाकी के बचे दिनों में भी इसी प्रकार चलती रही और आखरी दसवें दिन तक चली। दसवें दिन अनीता का मासिक धर्म समाप्त हो गया था इसलिए उस दिन मैंने उसके घर पर ही संजीव के साथ संसर्ग किया और उसने भी उस संसर्ग में भाग लिया।

हम सभी पूरी रात जागते रहे क्योंकि उस रात संजीव ने मेरे साथ दो बार और अनीता के साथ एक बार सहवास किया था। मेरे उस अभियान की आखरी रात समाप्त हुई और सुबह जब पांच बजे तब मैं भारी मन से अपने घर जाने के लिए तैयार होने लगी थी।

उस समय मुझे नहीं मालूम था कि मेरा पर-पुरुष सहवास से गर्भवती बनने का प्रयत्न कितना सफल रहा था लेकिन मेरी सहायता के लिए मेरा मन अनीता और संजीव का बहुत ही अनुगृहीत महसूस कर रहा था। मैं घर जाने से पहले विशेष रूप से संजीव का धन्यवाद करना चाहती थी लेकिन कैसे यह समझ नहीं आ रहा था।

तभी संजीव नींद में ही करवट ले कर सीधा हो गया और मुझे उसका लिंग दिखाई दिया तब मैं अपने को रोक नहीं सकी और भाग कर उसे पकड़ा तथा चूम कर धन्यवाद किया। उसके बाद मैं जल्दी से कपड़े पहन कर अपने घर आ गई और दस दिन चले उस अभियान के परिणाम की प्रतीक्षा करने लगी।

पन्द्रह दिन बीत जाने पर भी जब मुझे मासिक धर्म नहीं आया तब मेरी ख़ुशी की कोई सीमा नहीं थी और मैंने यह ख़ुशखबरी सब से पहले अपने पति तथा उसके बाद अनीता और संजीव को सुनाई। मेरे अगले नौ माह आने वाले बच्चे के आने की ख़ुशी और प्रतीक्षा में गुज़र गए और अंत में वैशाली ने मेरे गर्भ से जन्म लेकर मेरे उस अभियान की सफलता पर मोहर लगा दी।

बाईस वर्ष बाद आज अनीता और संजीव से आज्ञा ले कर ही मैंने अपने यह संस्मरण टी पी एल के साथ साझा करने का का साहस किया हैं ताकि वह इन्हें एक रचना के रूप में आप सब के लिए प्रस्तुत कर सके।


अन्तर्वासना के आदरणीय पाठिकाओं एवम् पाठको, आप सब को अमृता के जीवन का यह रहस्य अवश्य ही कुछ विचित्र, असामान्य एवं असंगत लगा होगा।

लेकिन इस रुढ़िवादी और पुरुष प्रधान समाज में स्त्री को अपने आत्म-सम्मान के लिए कई बार कुछ ऐसे कदम भी उठाने पड़ते हैं जो विचित्र, असामान्य एवं असंगत ही लगते हैं।

अगर हम सब मिल कर इस रूढ़िवादी प्रवृति को दूर कर दें तो अवश्य ही कोई भी स्त्री ऐसे विचित्र, असामान्य एवं असंगत कदम उठाने को कभी विवश नहीं होगी।

आप सबकी जानकारी के लिए मैं बताना चाहूँगी कि रचना के सभी पात्रों की गोपनीयता एवं सुरक्षावश मैंने इस रचना के सभी पात्रों अथवा स्थानों के नाम परवर्तित कर दिए हैं।

इस रचना के प्रति आप अपने विचार मुझे मेरे मेल आई डी [email protected] या [email protected] पर भेज सकते हैं।

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000