लागी लंड की लगन, मैं चुदी सभी के संग-7

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000

हमारे कमरे का दरवाजा बाहर से बन्द देख सभी आश्चर्य में थे केवल एक अमित जीजा को छोड़कर… उसकी कुटिल मुस्कान भी बता रही थी कि ऐसी हरकत उसी ने की है।

उसकी कुटिल मुस्कान देखकर मेरा गुस्सा और बढ़ता ही जा रहा था, लेकिन रितेश की वजह से मैं कुछ भी न बोल सकी।

मैं इधर वाशरूम में फ्रेश होने के लिये जा ही रही थी कि अमित जल्दी से बेड रूम में घुस गया, वही दूध का गिलास ले आया जिसको हम दोनों ही नहीं पी सके थे।

दूध के गिलास को लिये हुए अमित उसी कुटिल मुस्कान के साथ बोला- अरे तुम दोनों ने एक दूसरे को दूध नहीं पिलाया।

रितेश लपक कर गिलास को पकड़ने की कोशिश करने लगा पर सफल न हो सका। बल्कि रितेश बोला भी- जीजा जी, दूसरे से बिना पूछे उसके सामान को हाथ नहीं लगाना चाहिए।

पर अमित ने बेशर्मी से जवाब दिया- रात में ही मैंने कह दिया था कि तुम दोनों ने नहीं पिया तो मैं पी लूँगा।

मेरे सब्र का बांध टूट रहा था कि मेरे ससुर जी बोल उठे- बेटा, किसी का दूध इस तरह से नहीं पिया करते।

पर तब तक अमित गिलास को मुंह से लगा कर दूध पीने लगा।

अब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया- जीजा जी, बच कर भी रहा करो, कहीं ऐसा न हो गलती से कोई आप को दूध की जगह कुछ और पिला दे।

लेकिन अमित बेशर्म तो बेशर्म, तुरन्त ही बोल उठा- तुम्हारी जैसी खूबसूरत हो तो वो कुछ भी पिला दे, मैं हँसते-हँसते पी जाऊँगा। गिलास से मलाई को उँगलियों में लेते हुए बोला और ऐसी मलाई मिले तो उसे भी चट कर जाऊँगा।

सभी उसकी बातों पर हँस रहे थे लेकिन मैं मन ही मन गुस्से में बड़बड़ाने लगी ‘मौका लगा मादरचोद तो तुझे अपनी अपनी पेशाब न पिलाई तो मेरा नाम भी आकांक्षा नहीं। तब पता लगेगा कि मैं क्या चीज हूँ।’

लेकिन ऊपर से मैं उस मादरचोद से बहस करना नहीं चाहती थी, मैं बाथरूम में जाकर नहाने धोने लगी।

नहाने के बाद मैंने रितेश के कहने पर सलवार सूट पहन लिया और रसोई में आकर रितेश की मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी। फिर धीरे-धीरे रितेश सहित सभी नहा धोकर तैयार हो गये, सभी ने नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद एक बार फिर मैं रसोई में मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी।

पर रितेश का मन नहीं लग रहा था वो कई बार इशारा करके बुला चुका था, पर मैं लिहाज के मारे रसोई से न निकल सकी और रितेश झुंझलाकर रसोई में आया और मम्मी की नजर बचा कर मेरी गांड को कस कर दबा दिया।

मम्मी रितेश की हरकत को तो न देख सकी पर समझ तो गई थी कि रितेश क्यों आया है।

मम्मी ने मेरी ननद को बुलाया और उसे डाँटते हुए बोली- अभी अभी इसकी शादी हुई है और तुम आराम कर रही हो और उससे पूरा काम कराये जा रही हो? चल मेरे काम में हाथ बँटा! और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- जा तू थोड़ा आराम कर ले।

लेकिन मैं शर्म के मारे नहीं जा रही थी। बार बार कहने पर मैं अपने कमरे मैं आ गई और अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया।

रितेश बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटा हुआ था, मुझे देखते ही उसने अपने ऊपर से चादर हटाई तो उसका लंड राड की तरह एकदम सीधा तना हुआ था। मैंने भी जल्दी से अपने कपड़े उतारे और सीधा जाकर उसके लंड पर बैठ गई और जब तक उछलती रही जब तक कि हम दोनों खलास नहीं हो गये।

खलास होने के बाद मैं रितेश के ऊपर लेट गई। दो मिनट बाद रितेश का लंड मुरझा कर मेरी चूत से बाहर आ चुका था। लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मेरी चूत की खुजली मिटी नहीं थी।

एक तो यह था कि आज मैं और रितेश मियाँ-बीवी थे और दूसरा कल रात जो हमारे और रितेश के बीच हुआ विशेषकर वो पेशाब वाली बात उसकी वजह से मुझे रितेश पर बहुत प्यार आ रहा था और मैंने मन ही मन ये प्रण कर लिया था कि जिस समय रितेश मेरे जिस छेद की डिमांड करेगा मैं खुशी-खुशी अपने उस छेद को उसके हवाले कर दूँगी।

मैं मन ही मन ये सोच रही थी और खुश हो रही थी जिसकी वजह से मेरी मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी। तभी रितेश ने मुझे झकझोरा और मैं ख्याली दुनिया से बाहर आई तो रितेश पूछने लगा- कहाँ खो गई थी?

मैंने उसके कान को हल्के से काटते हुए कहा- जानू, मेरी चूत की खुजली अभी शान्त नहीं हुई है। तो वो मेरे बालों में हाथों को फेरते हुए बोला- जानू मेरा लंड तुम्हारी चूत के लिये ही बना है, जब चाहो तुम इसको अपनी चूत में ले सकती हो। पर इस समय ये भी थक कर मुरझा गया है।

मेरी चूत का रस उसके लंड पर और उसके लंड का रस मेरे चूत के अन्दर था। पर मैं इस सब को भुलाकर 69 की पोजिशन में आ गई और अपनी चूत को रितेश के मुँह में रख दिया और रितेश के लंड को चूसने लगी। मैं अपने ही माल को चाट रही थी और रितेश अपने माल को चाट रहा था।

थोड़ी देर ऐसे करते ही रहने से रितेश का लंड खड़ा हो गया और फिर मैं उतर कर घोड़ी बन गई और रितेश को पीछे से चूत चोदने के लिये बोली।

हम दोनों बिना आवाज किये चुदाई का खेल खेल रहे थे और हम लोग काफी मस्ती में आ गये थे।

रितेश अपनी पूरी ताकत से मेरी ड्रिलिंग कर रहा था और मेरी चूची को कस कर दबा रहा था। मैं सिसिया रही थी लेकिन मेरी कोशिश भी यही थी कि आवाज बाहर न जाये।

काफी देर तक धक्के मारने के बाद अन्त में रितेश ने अपना माल मेरे अन्दर छोड़ दिया।

चुदाई खत्म होते ही रितेश ने मेरी सलवार से मेरी चूत और अपने लंड को साफ किया और फिर मेरी सलवार को सूंघने लगा और उसके बाद सलवार को मेरी तरफ हवा में उड़ा दिया।

तब तक मैं कुर्ती पहन चुकी थी, मैंने अपनी उड़ती हुई सलवार को हवा में ही लपक लिया और सूंघने लगी। क्या मस्त खुशबू मेरी और रितेश के प्यार की थी।

तभी बाहर से कुन्डी पीटने की आवाज आने लगी, मैंने जल्दी से सलवार पहनी, तब तक रितेश ने भी अपने कपड़े पहन लिये और हम दोनों ही बाहर आ गये।

सामने अमित ही खड़ा था। एक बार उसने फिर द्विअर्थी अंदाज में बोला- अगर तुम दोनों ने कबड्डी का खेल खेल लिया हो तो चलो खाना खा लो। मैं शर्मा के रसोई में आ गई, जबकि रितेश सफाई दे रहा था और बाकी लोग उसकी खींच रहे थे।

अमित की इस हरकत से मुझे काफी गुस्सा आ रहा था पर बोल मैं कुछ सकती नहीं थी। एक तो मैं नई शादीशुदा थी तो मर्यादा भंग नहीं कर सकती थी दूसरा अमित इस घर का दमाद था और इधर तीन चार दिन से जो मैं देख रही थी, उसके रौब के आगे किसी की कुछ नहीं चलती थी।

लेकिन मुझे अपने ऊपर विश्वास था कि एक दिन अमित को मैं सबक सिखा दूंगी। पर सवाल ये उठता था कि अमित को सबक सिखाऊँगी कब… क्योंकि मेरा घर संयुक्त है और हर समय घर में कोई न कोई बना ही रहता है।

इसी सोच विचार में 10-12 दिन बीत गये।

चूंकि अमित पुलिस में है तो उसने हमारी शादी के समय से ही अपना ट्रांसफर लखनऊ में करवा लिया था और तभी से अमित और उसकी बीवी नमिता यानि की मेरी ननद जिसका भी जिस्म काफी तराशा हुआ था और वो मेरी कद काठी की ही थी, हमारे घर में ही रह रहे थे और अमित और नमिता का कमरा भी ऊपर ही था।

दोस्तो, दिल से कहूँ… मैं अमित की डील-डौल देखकर खुद ही चाहती थी कि मैं उसके नीचे लेट जाऊँ और अमित जैसा चाहे मुझे रौंदे और मैं उफ भी नहीं करती! पर उस रात वाली हरकत जिसके कारण मुझे और रितेश को एक-दूसरे का मूत पीना पड़ा, रह रह कर मैं वही सोचती और फिर मेरा गुस्सा अमित पर और बढ़ता जाता।

पता ही नहीं चला कि कैसे सब छुट्टियाँ हँसी मजाक और छींटाकशी में बीत गई।

मैं और रितेश अपने कमरे में नंगे ही रहते थे और अगर किसी काम से हममे से किसी को अगर बाहर जाना भी होता तो रितेश लोअर और टी-शर्ट डाल लेता था और मैं जल्दी से साड़ी,पेटीकोट और ब्लाउज पहन लेती थी।

सोमवार का दिन आया जब हम दोनों को ऑफिस जाना हुआ तो घर के सभी सदस्यों ने मुझे और रितेश को तैयार होने का पहला अवसर दिया ताकि हम दोनों समय से ऑफिस पहुँच सकें।

पहले रितेश नहाने के लिये गया जबकि मैं, मेरी सास और ननद तीनों लोग जल्दी-जल्दी नाश्ते की तैयारी करने लगे।

रितेश नहाने के बाद नीचे तौलिया लपेट कर अपने कमरे में चला गया, जैसे ही वो निकला, मैं भी नहाने चली गई और नहा धोकर मैं भी जल्दी से अपने कमरे में आ गई।

रितेश तौलिये में ही बैठा हुआ था। जैसे ही मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करके मुड़ी रितेश ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया और गाल को चूमते हुए बोला- आज शादी के बाद पहला दिन है ऑफिस जाने का… कुछ हो जाये?

मैं उससे झिड़कते हुई बोली- यार, आज काफी दिनों के बाद ऑफिस जा रहे हैं, कुछ तो शर्म करो। यह हिन्दी सेक्स कहानी आप अन्तर्वासना डॉट कॉम पर पढ़ रहे हैं!

रितेश मेरी बात काटते हुए बोला- जान, पहली बात तो यह कि मैं तो बहुत बेशर्म हो चुका हूँ और दूसरी तुम्हारी खुमारी अभी तक मेरे दिमाग से उतरी नहीं है और ऑफिस में मैं सारा दिन तुम्हें और तुम्हारी चूत गांड के बारे में सोचता रहूँगा। मेरा लंड खड़ा रहेगा और फिर मेरा काम में मन भी नहीं लगेगा और शायद तुम्हें भी ऐसा ही कुछ लग रहा होगा तो मेरा लंड तुम्हारी चूत की गर्मी को शांत करने को तैयार है और तुम मेरे लंड की अकड़ निकाल दो।

इतना कहने के साथ ही रितेश ने अपनी तौलिया को उतार कर फेंक दिया और कुर्सी के ऊपर बैठ गया। उसका लंड पहले से ही तना हुआ था, तने लंड को देखकर मैंने भी झटपट अपने घर वाले कपड़े उतारे और रितेश के लंड की सवारी करने लगी।

करीब चार-पाँच मिनट तक उछल कूद मचाने के बाद दोनों फ्री हुए, रितेश जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे चला गया और मैं आराम से तैयार होने लगी। फिर नाश्ता वगैरह करने के बाद जिसको जिसको ऑफिस जाना था, वे सभी ऑफिस के लिये रवाना हो गये।

इसी तरह तीन चार दिन बीत गये थे। दिन में ऑफिस निकलने से पहले चुदाई का एक राउन्ड चलता था और फिर रात को।

चूँकि नई-नई शादी का माहौल था तो खूब मजा भी आ रहा था।

लेकिन ऑफिस के चौथे दिन ही रितेश को ऑफिस से फरमान आ गया कि उसे देहरादून के ऑफिस में जाना है और एक नये प्रोजेक्ट पर काम करना है और इस कारण उसे हफ्ते भर वहां रहना पड़ सकता है।

घर के सभी लोग मुझे भी रितेश के साथ जाने के लिये कहने लगे लेकिन मेरी सभी छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी और छुट्टी नहीं मिल रही थी तो रितेश को अकेले ही देहरादून जाना था।

मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी।

तभी रितेश मेरे पास आकर बैठ गया और बोला- सॉरी यार… मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ेगा।

कहानी जारी रहेगी। [email protected]

This website is for sale. If you're interested, contact us. Email ID: [email protected]. Starting price: $2,000