Adla Badli, Sanyog Ya Saajish – Episode 11

अब ता अपने पढ़ा था.. पायल ने चेलेंज का दूसरा लेवल चूत की मसाज कर लिया और हार भी गयी. अब वो मुझे भी हराने का प्लान बना रही थी. मैंने उससे घबरा कर सजा को चुनने की सोची. अब न्यू सेक्स कहानी में पढ़िए.

मैंने चिट्ठी में से सजा पढ़ी और मेरे पैरो तले जमीन खिसक गयी. सजा से मेरा फंसना तय था. कम से कम लेवल टू में कुछ रूल तो थे. मैंने अब गेम पलटने की सोची. मुझे लग रहा था कि मुझे हराने के लिए पायल कोई न कोई रूल जरूर तोड़ेगी तो मैं ये वाली सजा उस पर डाल सकती हूँ.

मैं: “मैं लेवल टू ही कर देती हूँ.”

अशोक: “ऐसा क्या लिखा हैं चिट्ठी में?”

डीपू: “कोई हमें भी तो बताओ?”

पायल ने मेरे हाथ से चिट्ठी ली और वापिस समेट कर अपने पर्स में बंद कर दी.

पायल : “सजा ली ही नहीं तो बताने से क्या फायदा.”

मैं: “मैं तैयार तो हूँ, पर अगर पायल ने कोई रूल तोड़ा तो उसको भी सजा मिलनी चाहिए. ये चिठ्ठी वाली सजा.”

अब पायल का मुँह छोटा सा हो गया. अब डरने की बारी उसकी थी. पर फिर कुछ सोच उसने स्वीकार कर लिया.

मैं अब बिस्तर के बीच जाकर लेट गयी और वो सफ़ेद कपड़ा ले कमर से जांघो तक ढक दिया. अशोक मेरे सिरहाने बैठ गए और डीपू मेरे पावो के पास.

पायल अपने बेग से दो फीते ले आयी और डीपू को बोली इसके दोनों पैर चौड़े कर टांगो को एक दूजे से दूर बिस्तर से बाँध देना ताकि हिल ना पाए.

अशोक: “टांग बांधने की क्या जरुरत हैं, वो तो वैसे भी तैयार हैं.”

पायल: “ये सब ज्यादा उकसाने के तरीके हैं और रूल के अंदर हैं.” पायल ने अब वो ढका कपड़ा मेरे ऊपर से हटा दिया.

पायल: “तुम तो बोल रही थी ना कि तुम बिना कपड़े से ढके करवाओगी. ये कपड़ा नहीं मिलेगा अब तुम्हे.”

फिर पायल ने मेरा एक हाथ सिरहाने लाकर बिस्तर पर दबा दिया और दूसरा हाथ अशोक से कह के बिस्तर पर दबवा लिया. पायल ने अब मेरे स्लीप शर्ट के बटन खोलना शुरू कर दिया.

मैं: “मसाज नीचे की हैं तो ऊपर के कपड़े क्यों खोलना?”

पायल: “ये तुम्हे तब याद नहीं आया जब मेरा टॉप खोला था.”

उसने मेरे सारे बटन खोल कर शर्ट को सीने और पेट से पूरा हटा कर साइड में कर दिया. थोड़ी देर पहले लेवल वन वाली ही स्तिथि हो गयी थी मेरी.

डीपू: “प्रतिमा अब मैं तुम्हारा शार्ट निकाल रहा हूँ.”

उसने कल रात की तरह एक बार फिर मेरे शार्ट में अपनी ऊँगली घुसाई और धीरे धीरे प्यार से शार्ट को नीचे खिसकाने लगा. फर्क सिर्फ इतना था कि आज मेरे पति और खुद की पत्नी की मौजूदगी में उतार रहा था. मैंने पैंटी अभी भी पहनी हुई थी.

डीपू: “अरे तुम्हारी भी पैंटी गीली हो गयी थी क्या?”

पायल और अशोक भी मेरा हाथ छोड़े बिना, थोड़ी देर के लिए झुक कर देखने लगे. मैं शरमा गयी, उसने सबके सामने बोल दिया, चुप भी तो रह सकता था.

डीपू ने अब अपनी उंगलिया मेरी पैंटी में फँसायी और मजे लेते हुए धीरे धीरे नीचे खिसकाने लगा. मेरे पति के सामने उनकी बीवी को उनका दोस्त नंगी कर रहा था. जैसे जैसे मेरी पैंटी नीचे खिसकी मेरी गोरी गोरी चिकनी सफाचट चूत नजर आती गयी.

मैंने पायल का चेहरा देखा, मेरी सफाई देख उसका चेहरा देखने लायक था. मुझे बहुत ख़ुशी मिली. फिर अगले ही क्षण सोचने लगी मेरे पति क्या सोच रहे होंगे. मैंने ही लेवल टू के लिए हामी भरी थी. अब अगर मैं उनके सामने डीपू के हाथों झड़ गयी तो?

डीपू ने अब मेरी पैंटी टांगो से पूरी निकाल दी थी. डीपू ने अब वो फीते उठाये जो पायल ने उसे मेरी टांग बाँधने को दिए थे और एक एक फीता दोनों एड़ियों के वहा बाँधने लगा.

अशोक: “तुम सही में टाँगे बाँधने वाले हो?”

डीपू: “हां, मैडम की फरमाइश हैं, पूरी करनी पड़ेगी.”

उसने अब मेरी एक टांग पकड़ी और थोड़ा साइड में ले जाकर फैला दिया और उस फीते को पलंग के कोने से बांध दिया. मैं अपनी दूसरी टांग को भी पहले वाली के साथ रखे रही ताकि टाँगे ना खुले.

अब उसने मेरी दूसरी टांग पकड़ी और दूसरी तरफ ले जाकर टांगो को फैला दिया और उसको भी बाँध दिया. मेरी दोनों टांगो के एक दूसरे से दूर फैलते ही मेरी चूत की दरार खुल गयी.

डीपू: “ठीक हैं ना पायल?”

पायल: “देखो छेद खुला कि नहीं, वरना ओर चौड़े करो इसके पाँव.”

डीपू: “आकर देख लो, खुल गया हैं छेद.”

उनकी बातें सुन मैं शरमा रही थी. मैं किसी से नजरे नहीं मिला पा रही थी और छत की तरफ देखने लगी. पता नहीं कैसे मैं इस मुसीबत फंस गयी. किस घडी में मैंने हां बोल दिया और मुझे पता ही नहीं चला था. डीपू मेरी कमर की बगल में आकर बैठ गया.

अशोक: “तुम्हारी तैयारियां हो गयी हो तो शुरू करे? चलो थ्री टू वन गो.”

डीपू ने वहा से शुरू किया जहा अशोक ने ख़त्म किया था. अपनी एक ऊँगली मेरी चूत की दरारों पर रखी और जोर जोर से ऊपर नीचे रगड़ने लगा. उस रगड़ से उत्तेजित हो मैं आहें भरने लगी.

फिर उसने एक बजाय उंगलिया बढ़ाते हुए दो और फिर चार कर दी. अशोक की तरह वो भी तेजी से मशीन की तरह ऊपर नीचे हाथ कर बड़ी तेजी से रगड़ रहा था.

मेरी चिकनी सफाचट चूत की वजह से उसका हाथ अच्छे से फिसल रहा था पर घर्षण वैसा नहीं हो पाया जो पायल के बालों की वजह से पहले हुआ था.

मैं लगातार सिसकियाँ निकाले तड़प रही थी, क्यों कि जब भी उसकी उंगलिया नीचे जाती तो मेरी खुली चूत की वजह से उसकी उंगलिया मेरे छेद में थोड़ी धंसती हुई निकल रही थी.

तीन मिनट ऐसे ही निकल गए और डीपू को लगा कि पैतरा बदलना पड़ेगा. डीपू अब आकर मेरी दोनों फैली टांगो के बीच आकर बैठ गया.

उसने अब अपनी एक ऊँगली मेरे छेद में डाली और तेजी से अंदर बाहर करने लगा. ये तरकीब मेरे लिए ज्यादा परेशानी खड़ी करने वाली थी. उसकी ऊँगली के मेरी चूत को अंदर बाहर भेदने से मुझे मजा आने लगा. मैं जैसे तैसे नियंत्रण कर रही थी.

डीपू अब एक की बजाय दो उंगलियों से निशाना भेदने लगा. मेरी ओर तेज आहें निकलने लगी.

पायल डीपू का उत्साहवर्धन कर रही थी और मेरे पति मेरे कंधे पर एक हाथ फेरते हुए मुझे ढांढस बंधा रहे थे.

अब छह मिनट हो गए थे.

पायल: “दोनों में डालो डीपू दोनों में, जल्दी.”

डीपू थोड़ा ओर झुका और अपना अंगूठा मेरी गांड के छेद में डाल दिया. उसकी दो उंगलिया मेरी चूत के छेद में और अंगूठा गांड के छेद में एक साथ अंदर और बाहर हो रहे थे और मेरे लिए नियंत्रण करना ओर मुश्किल होता जा रहा था.

मैंने तड़प के मारे पाँव को ऊपर नीचे हिलाने की कोशिश की, जिससे जल्द ही पाँव को बांधें रखे वो फीते खुल गए और टाँगे आज़ाद हो गयी. मैं अपना मुँह खुला रख सदमे में सिसकियाँ निकाल रही थी.

अशोक ने घोषणा की आखिरी दो मिनट.

पायल : “डीपू अपना आखरी दांव लगा ही दो.”

डीपू ने अपनी उंगलिया मेरे छेदो से बाहर निकाली और मेरे घुटनो को मोड़ कर टाँगे ऊपर कर चौड़ी कर दी. अशोक और मैंने सोचा नहीं था कि वो ये करेगा.

उसने अपने होंठ मेरी चूत पर रख दिए. मेरी चूत की दोनों पंखुड़ियों को बारी बारी से अपने होंठों में फंसा हल्का सा ऊपर खिंच छोड़ देता.

मेरे दिमाग ने नशे के मारे काम करना बंद किया. मैं जोर जोर से गला फाड़ते हुए चिल्ला रही थी.

अशोक: “ये गलत हैं, इसकी बात नहीं हुई थी.”

पायल: “मसाज हाथ से करो या मुँह से, करना तो मसाज ही हैं. ये रूल के अंदर ही हैं.”

मेरे हाथ अभी भी पायल और अशोक ने दबा रखे थे और मैं तड़प रही थी.

पायल ने अब अपने दूसरे हाथ से मेरी चूंचीयों को दबाना शुरू कर दिया था. मैं अब चारो तरफ से गिर चुकी थी. मैंने हथियार डाल दिए. वो उन्माद मैं सहन नहीं कर पा रही थी. मुझे अब वो झड़ने की शर्मिंदगी झेलनी ही थी.

शायद उत्तेजनाओं को दबाने की शक्ति में, मेरे और पायल के बीच कोई फर्क नहीं था. मैं रह रह कर तड़प के मारे कभी अपने सीने का हिस्सा ऊँचा उठा देती तो कभी कूल्हों को बिस्तर से उठा ऊँचा कर देती.

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जैसे ही मेरा सीना ऊँचा होता तो खिंचाव से मेरे मम्मे और भी तन जाते और मेरे सीने के कर्व ओर भी खूबसूरती सी दिखाई देते.

डीपू चपड़ चपड़ की आवाज करते हुए अपनी जबान से मेरे छेद को चोद रहा था.

मैं अब झड़ने के करीब थी और मैं आह आह आह करते हुए अपना पानी छोड़ना शुरू ही करने वाली थी कि तभी स्टॉप टाइमर बज उठा.

डीपू को उठना पड़ा और बाकि दोनों ने भी मुझे छोड़ दिया.

पायल: “क्या यार एक बार फिर से होते होते रह गया. ये मुंह से मसाज तुम्हे थोड़ा पहले ट्राय करना था.”

डीपू के छोड़ देने के बाद भी मैं उसकी जबान अपनी चूत में महसूस कर पा रही थी. मेरी चूत के होंठ जैसे फड़फड़ाते हुए हलकी मसाज दे रहे थे. मेरे अंदर अभी भी कोई हलचल हो रही थी.

मैंने महसूस किया कि मेरा पानी अंदर ही अंदर धीरे धीरे छूट रहा हैं.

तभी मैंने जल्दी से अपनी पैंटी और शार्ट पहन लिया. मैंने अपना स्लिप शर्ट आगे की और से कवर करते हुए बिना किसी से बात किये भागते हुए बाथरूम में गयी.

मैंने अपनी ऊँगली चूत के अंदर डाल हिलाते हुए अपनी रही सही कसर पूरी कर झड़ गयी और अपनी अच्छे से सफाई की. ऊपर वाले को शुक्रिया कहा कि मुझे एक शर्मनाक स्तिथि से बाल बाल बचा लिया.

जब मैं बाहर आयी तो उन्होंने मेरा हाल चाल पूछा.

मैं: “हो गया तुम्हारा चैलेंज पूरा, तुम्हारे चैलेंज के चक्कर में मैंने अपनी इज़्ज़त गवां दी.”

पायल: “तुम तो ऐसे बात कर रही हो जैसे किसी ने तुम्हारे साथ शारीरिक संबंध बना लिए हो.”

मैं: “अब बचा ही क्या था? कपडे खुल गए, हाथ, मुँह सब तो लगा दिया.”

अशोक: “अरे तुम इतना मत सोचो. ये सिर्फ एक चेलेंज था. और तुमने तो दोनों चेलेंज पार किये हैं.”

पायल: “इस चैलेंज के बहाने पता चला कि हमारी सहनशक्ति कितनी हैं. और इससे भी ज्यादा ये कि हमारे पतियों की सहनशक्ति कितनी हैं. तुमने ध्यान दिया, जब हमारे साथ ये हो रहा था तो पतियों की क्या हालत थी?”

डीपू: “क्या हालत थी? तुम्हारे साथ हुआ तब मैं एकदम नार्मल था.”

मैं: “अब झूठ मत बोलो, मैंने भी देखी थी तुम्हारी हालत.”

पायल: “अभी साबित करती हूँ डेमो देके. अशोक जरा अपनी गोदी में जगह बनाना तो.”

ये कहते हुए पायल अशोक की गोद में जा बैठी और डीपू के हाव भाव पढ़ने लगी.

पायल: “कैसा लग रहा हैं, मैं अशोक की गोद में बैठी हूँ?”

डीपू : “ऐसा कुछ नहीं हैं. एक दोस्त दूसरे की गोद में नहीं बैठ सकता क्या?”

पायल ने अब अशोक का एक हाथ पकड़ा और उसके पंजे को अपनी छाती के उभारो से दो इंच दूर पकड़ कर रखा.

पायल: “अब जलन हो रही हैं क्या?”

मैं: “ये देखो, डीपू के माथे पर शिकन शुरू हो गयी हैं. इसको जलन हो रही हैं.”

मेरे चिढ़ाने से नाराज हो, डीपू ने मेरा हाथ पकड़ा और अपनी तरफ खिंच कर मुझे अपनी गोद में बैठा दिया.

डीपू : “अब बोलो पायल, तुम्हे कैसा लग रहा हैं?”

पायल ने जो अशोक का हाथ पकड़ रखा था उस पंजे को अपने एक मम्मे पर रख दिया.

अशोक: “अरे, ये क्या कर रही हो. चेलेंज ख़त्म हो चूका हैं.”

पायल : “बोलो डीपू, जलन हुई न?”

डीपू ने तेजी से मेरे स्लीप शर्ट का ऊपर का एक बटन खोल दिया. मैं एक दम चीखी और अपना बटन बंद करने को हाथ बढ़ाया, पर डीपू ने मेरी दोनों पतली कलाइयों को मेरी गोद में रख अपने एक हाथ से झकड़ लिया. मेरे शर्ट के एक बटन खुलने से मेरा क्लीवेज दिखने लगा.

मैं: “तुम दोनों की लड़ाई में मुझे क्यों पीस रहे हो?”

उन दोनों के बीच एक दूजे को जलाने का कम्पटीशन शुरू हो चूका था. पायल ने अब अशोक का दूसरा हाथ पकड़ा और उसके दूसरे पंजे को भी अपने दूसरे मम्मे पर रख दिया. मेरे पति उनकी इस नादानी पर हंस पड़े. पायल डीपू को देखने लगी.

डीपू ने अपने फ्री हाथ से मेरे स्लीप शर्ट का दूसरा बटन भी खोल दिया और अपना हाथ मेरे शर्ट में घुसा कर मेरा मम्मा दबोच लिया. मैं जोर से चिल्लाई “क्या कर रहे हो? छोड़ो मुझे.”

अशोक ने पायल को अपनी गोद से हटाया और डीपू को डांटने लगे “ये अब तुम्हारा ज्यादा हो रहा हैं. चेलेंज तक ठीक था, मर्जी से हो रहा था पर उसकी इच्छा के खिलाफ उसको तुम हाथ नहीं लगा सकते.”

डीपू ने मुझे छोड़ दिया और अशोक से बोला: “सॉरी अशोक, मेरा ये मकसद नहीं था. मैंने मजाक मजाक में लिमिट क्रॉस कर दी. सॉरी प्रतिमा, मैंने तुम्हे गलत नीयत से नहीं छुआ था. बस ऐसे ही पायल को जलाने के लिए किया था.”

पायल: “एकदम सही, मैं यही चेक कर रही थी. डीपू मुझे अशोक की गोदी में नहीं देख पाया और अशोक ये नहीं सहन कर पाया कि कोई दूसरा प्रतिमा को छू रहा हैं. तुम मर्दो ने सिर्फ कहने भर के लिए उस चेलेंज के लिए हां बोला था पर असल में तुम पछता रहे थे.”

अशोक: “मैं तो सिर्फ प्रतिमा को बचा रहा था.”

मैं: “बीवी की रक्षा की वो अच्छा किया तुमने, पर जलन तो हुई थी ना?”

अशोक: “अब मैं कैसे यकीन दिलाऊ. मुझे अच्छा लगा कि तुमने चैलेंज लिया और जीती भी.”

डीपू: “मैं भी समर्थन करता हूँ. जलन वाली कोई बात ही नहीं थी.”

पायल: “अगर प्रतिमा चेलेंज हार जाती फिर भी तुम यही कहते अशोक?”

अशोक: “हां भाई, हार जीत से क्या फ़र्क़ पड़ता हैं. ये कोई असली टेस्ट थोड़े ही था. मुझे अपनी वाइफ पर पूरा यकीन हैं.”

पायल: “शरीर को नियंत्रित करने का ही तो चेलेंज था. अगर इससे थोड़ा मुश्किल टेस्ट होता तो शायद प्रतिमा हार जाती.”

डीपू: “तुम्हारा इशारा चेलेंज के तीसरे लेवल की तरफ तो नहीं हैं?”

ये तीसरा लेवल क्या हैं? और क्या हम लोग इस चेलेंज को करेंगे, ये तो आगे न्यू सेक्स कहानी में ही पता चलेगा.