मेरे पहले सच्चे प्यार का अंजाम

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मैं उससे एक सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर मिली थी। मैं उसे थोड़ा बहुत जानती थी लेकिन वो मुझे नहीं जानता, इस बात का मुझे अंदेशा था। वो दिखने में खूबसूरत था और मुझे पसन्द करता था। ‘कैसीं हैं आप?’ बस इतना ही काफ़ी था शुरुआत के लिए।

शुरुआत में सब कुछ बहुत ही अच्छा था। उसके अंदर वो सब गुण थे जिनकी मुझे हमेशा से तलाश थी। मुझे मालूम था कि उसके भूतपूर्व सम्बन्ध इतने अच्छे नहीं खत्म हुए थे लेकिन मुझे विश्वास था कि मैं उसे अपना बनाकर रहूंगी। जल्द ही हम एक साथ रहने लगे और उससे भी जल्दी मैंने और किसी के भी बारे में सोचना या परवाह करना छोड़ दिया। मुझे बस हर क्षण उसके आस पास रहने का मन करता था। सिर्फ उसके आस-पास रहने भर से मुझे जो खुशी मिलती थी, ऐसा मुझे अपने पूरे जीवनकाल में कभी प्रतीत नहीं हुई थी।

मुझे कुछ समय लगा यह जानने में कि वो काफी मालिकाना(पोजेस्सिव) स्वभाव का था लेकिन मुझे यह अच्छा लगता था। मुझे ऐसा प्रतीत होता था कि वो मुझे सिर्फ़ और सिर्फ़ अपना बना कर रखना चाहता है। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था कि वो मुझसे प्यार करने लगा है और मैं तो पहले से ही उस पर मर मिटी थी।

लेकिन जब वो मेरे निजी जीवन के कई ऐसे मामलों में जिज्ञासु होने लगा जो मैं किसी को भी बताना नहीं चाहती थी तो मुझे अच्छा नहीं लगा। अपने पुराने शारीरिक संबंधों के विषय में मैंने आज तक किसी से कोई चर्चा नहीं की थी। जब उसने छानबीन करके उन सबके बारे में पता लगाया तो उसके अंदर का छिपा हुआ हैवान बाहर आने लगा, जैसा मैंने पहले कभी नहीं देखा था। वो सब 15 माह पहले आरम्भ हुआ।

जिस रिश्ते को मैंने पहले दिन से अपने दिल के करीब रखा था, एकदम से ही उसका सौंदर्य और पवित्रता कहीं खो से गए। मैं काफ़ी समय तक स्वयं को दोषी मानती रही। उसे प्रारम्भ में ही सच्चाई ना बताने के लिए मैं अपने आप को कोसती रही। मैंने उसका दिया हुआ हर दण्ड सहा। मुझे पता था कि वो अब मुझ पर आने वाले काफी समय के लिये विश्वास नहीं करेगा लेकिन उसका हर कहा मानने के लिए में पूर्ण रूप से तैयार थी।

इसकी शुरुआत ऐसे हुई कि जब भी वो मुझसे नाराज़ होता तो मुझे मेरी नग्न तस्वीरें भेजने को कहने लगता था, भले मैं जहाँ कहीं भी हूँ, और मुझसे गाली गलोच करता था। मैं टूटने लगी थी। वह मुझे तरह तरह के अपमानजनक नामों से पुकारता और कॉलेज के अलावा मुझे कहीं भी और जाने की अनुमति नहीं थी। सिर्फ यह सुनिश्चित करने के लिए कि मैं झूठ नहीं बोल रही, वो मुझसे मेरे वर्तमान स्थान की तस्वीर खींच कर भेजने को कहता।

वह मेरे कॉल्स और सन्देश भी देखता था और मुझे किसी भी और पुरुष से बात करने को मना करता था।

यह सब सहते सहते मैं एक कल पुर्ज़ा सा बन कर रह गई थी और जब भी मुझसे कोई गलती होती तो पहले वो मुझसे गाली गलोच करता, फिर मेरी तस्वीरों को लेकर मुझे डराता और फिर मुझे छोड़ कर चले जाने की धमकी देता।

यह सब तब तक चलता रहा जब तक कि मैं बिल्कुल अकेली नहीं पड़ गई। छोटी छोटी बातों को लेकर उसे भयंकर गुस्सा आने लगता। यदि मैं उसे अपने 5 मिनट की खबर नहीं देती तो वो मुझ पर किसी और पुरुष के साथ होने का लांछन लगा कर शक करने लगता।

जिस चीज़ को मैं शुरू में एक दंड समझ रही थी वो धीरे धीरे एक रोग बनता जा रहा था।

मैं घर से दूर पढ़ रही थी, मेरे माता पिता ने भी मुझे लेकर सब उम्मीदें छोड़ दीं। उनका मुझ पर से विश्वास उठ चला था इसलिए वो मुझे अब पैसे भी कम भेजते थे। जब भी मैं उससे मिलती तो सारे खर्चे के वो ही देता था और वो मुझे किसी वेश्या की तरह नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं गंवाता था।

उसे अब हमारे शारीरिक समबन्ध से भी शिकायतें होने लगी थी, उसे लगता था कि मैं उसे संतुष्ट नहीं कर पाती थी.

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मुझे अपना कैरियर बनाने में कोई रूचि नहीं थी और मेरे अंक नीचे गिरने लगे थे। मैं एकदम अकेली और हताश थी। इस सब से मैं इतना तंग आ चुकी थी कि और जीना भी नहीं चाहती थी. यह सब 12 महीने चला।

मैं प्रतिदिन रोती थी, वह प्रतिदिन गाली गलोच करता था। मैं क्षतिग्रस्त थी और टूट चुकी थी।

और फिर उसने मुझे छोड़ दिया।

मैंने पुरज़ोर कोशिश की लेकिन अपना जीवन खो बैठी। मैं जीवित हूँ या मृत, यह पूछने वाला भी मेरे आसपास कोई नहीं था। और वो मुझे छोड़ गया क्योंकि मैं हंसना मुस्कुराना और अदाएं बिखेरना भूल गई थी। वो मुझे छोड़ गया क्योंकि मैं बीमार थी। मैं दुखी थी।

जब मैंने वापस अपने पैरों पर खड़े होने का प्रयत्न किया तो अपने मित्रों और सहेलियों से सम्पर्क करने की कोशिश की। सबका एक ही सवाल था ‘तुम यह सब क्यों सहती रही?’ मैंने स्वयं से भी यही पूछा।

शायद मेरे रोने के बीच एक धीमी सी आवाज़ मुझसे यह कहा करती थी ‘बस थोड़ा और…’ अब वो मेरे जीवन में वापस आ गया है, और अब शायद थोड़ा और…

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