ललितपुर वाली गुड़िया के मुंहासे-3

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मेरे पड़ोस की जवान हो रही सेक्सी चुत स्नेहा जैन अपने मुंहासों को लेकर परेशान थी और मैं उसके मुंहासे ठीक करने के उपाय बताने के बहाने उस सेक्सी लड़की की चुत पे नजरें गडाए बैठा था. लेकिन वो हाथ से निकलती जान पड़ रही थी. इसी तरह एक डेढ़ महीने से ज्यादा निकल गया.

एक दिन मैं ऑफिस में अपने काम में व्यस्त था कि दोपहर बाद कोई साढ़े पांच बजे मेरा फोन बजा. देखा तो किसी अनजान नम्बर से कॉल आ रही थी. मैंने कॉल एक्सेप्ट की और हेलो बोला. ‘अंकल जी, नमस्ते!’ दूसरी तरफ से आवाज आई. वो आवाज सुनकर मेरा दिल जोर से धड़का. आवाज मैंने साफ़ पहचानी, स्नेहा बोल रही थी. ‘नमस्ते. आप कौन बोल रही हैं?’ मैंने जानबूझ कर न पहचानने का दिखावा किया. ‘अंकल जी. मैं हूँ स्नेहा! उस दिन शादी की पार्टी में आप से बात हुई थी न?’

‘ओह, हाँ याद आया. कैसी हो स्नेहा… आज कैसे याद किया?’ ‘ठीक हूँ अंकल जी. बस ऐसे ही फोन किया था. आप कहाँ हो इस टाइम?’ उसने पूछा. ‘इस समय तो मैं ऑफिस में हूँ. कोई काम हो तो बोलो?’ मैंने कहा. ‘कोई नी अंकल जी. बस वो मैं इस तरफ किसी काम से आई थी, आपके ऑफिस के बाहर ही हूँ. आप फ्री हो गये क्या?’ वो बोली.

‘हाँ हाँ, अभी अभी फ्री हुआ हूँ. तुम रुको मैं बाहर ही आ रहा हूँ दो मिनट में!’ मैंने कहा और फोन काट दिया.

स्नेहा का फोन सुनने के बाद मैं जैसे हवा में उड़ रहा था, मेरे चारों ओर जैसे फूल ही फूल खिल उठे थे. मैं झट से ऑफिस के टॉयलेट में गया और थोड़ा बन संवर के बाहर निकला. स्नेहा मेरे ऑफिस के बाहर एक स्टेशनरी की दूकान पर अपनी साइकिल लिए खड़ी थी.

मुझे देखते ही उसने नमस्ते की, मैंने भी जवाब दिया. उस दिन उसने सफ़ेद सलवार और हल्के पीले रंग का कुर्ता पहना हुआ था जिनमें से उसकी सुडौल जांघों और ठोस मम्मों के प्यारे प्यारे उभार मुझे आकर्षित और विचलित कर रहे थे.

‘कैसी हो स्नेहा, आज इस तरफ कैसे?’ मैंने पूछा. ‘बस ऐसे ही… मार्किट में कुछ पर्चेजिंग करनी थी. इस तरफ से निकली तो आपका ऑफिस देख के मन हुआ कि आप से कुछ बातें ही हो जायें, बहुत दिन हो गये आप से बात किये हुए!’ ‘जरूर, चलो वहाँ बैठ कर कोल्ड ड्रिंक पीते पीते बातें करेंगे!’ मैंने उससे कहा और हम लोग पास की ही दूकान से कोल्ड ड्रिंक्स लेकर पीने लगे.

‘हाँ, गुड़िया, अब बोलो क्या बात है?’ मैंने अपनी ड्रिंक सिप करते हुए पूछा. ‘कुछ ख़ास नहीं अंकल जी. बस वो वो…’ इतना बोल के वो रुक गई. ‘वो वो क्या स्नेहा… साफ़ साफ़ कहो न क्या बात है?’ ‘अंकल जी, वो मेरे मुहाँसे तो ठीक ही नहीं हो रहे!’ वो उदास स्वर में बोली.

‘स्नेहा उस दिन मैंने तुम्हें सब कुछ तो अच्छी तरह से समझा दिया था. मुहाँसे होने का कारण और उपचार सब बता दिया था. और मैंने तुझे एक वीडियो भी शेयर किया था. देखा था न वो?’ ‘जी, अंकल जी, देखा था.’ वो धीमे से बोली. ‘कैसा लगा?’ मैंने पूछा.

मेरी बात सुनकर वो चुप रही, कोई जवाब नहीं दिया. ‘बताओ न कैसा लगा?’ मैंने अपनी बात दोहराई. ‘अंकल जी, मैं कैसे कुछ बता सकती हूँ वैसे वाले वीडियो के बारे में… लेकिन मेरे मुहाँसे तो ज्यों के त्यों हैं.’ वो उलझन भरे स्वर में बोली.

स्नेहा की बात का मतलब मैं समझ गया था. शायद वो कहना चाह रही थी कि वो वीडियो देखने के बाद वो अपनी चूत से खेली थी, झड़ी भी थी लेकिन मुहाँसे नहीं जा रहे थे. यह बात विस्तार से जानने के लिए मैंने उसे और कुरेदा- स्नेहा, मैं समझा नहीं. देखो पहेलियाँ मत बुझाओ जो कहना चाहती हो साफ़ साफ़ कहो? मैंने कहा.

‘अंकल जी, मैं ज्यादा नहीं बता सकती बस, आप तो मेरे मुहाँसे मिटाने के लिए कुछ और बताओ प्लीज. कॉलेज में सब लोग मुझे चिढ़ाते हैं!’ ‘अच्छा ठीक है, नहीं बताना चाहती तो मत बताओ. मैं समझ गया पूरी बात. अब मैं बताऊंगा कि तुम्हारे साथ क्या हुआ है. सही गलत पर तुम हाँ या ना में जवाब तो दे सकोगी ना?’ मैंने कहा. ‘ठीक है अंकल जी!’ वो बोली.

‘देखो स्नेहा, उस वीडियो को तुमने कई कई बार देखा होगा और देखते देखते हर बार तुम्हारी जाँघों के बीच में तुम्हारी सू सू करने वाली जगह गीली हो गई होगी और उसमें सनसनाहट भरी खुजली सी मची होगी, है ना?’ मैंने उसकी जांघों के बीच उसकी चूत की तरफ इशारा करके कहा. जवाब में स्नेहा का मुंह लाज से लाल हो गया और उसने सर झुका के सहमति में अपना सर हिला दिया.

‘फिर तुमने अपने सारे कपड़े उतार के अपनी उंगली से इस अंग को छेड़ा होगा, रगड़ा होगा, मुट्ठी में भर कर दबाया होगा, इसके बाल भी खींचे होंगे और इस पर चिकोटी भी काटी होगी, साथ में अपने ये भी मसले और दबाये होंगे. जवाब दो हाँ या ना?’ मैंने उसके मम्मों की तरफ इशारा करके कहा. जवाब में वो कुछ नहीं बोली सिर्फ हाँ में गर्दन हिला कर सर झुका लिया.

‘अच्छा तो फिर यह बताओ कि वो सब करते हुए तुम्हें कैसा लगा?’ मेरी बात सुनके वो चुप रह गई, अब भी कुछ न बोली. आखिर लड़की थी बोलती भी क्या. इतना तो मैं समझ गया था कि अब ये बहुत जल्दी चुद जायेगी मुझसे लेकिन मुझे हर कदम फूंक फूंक कर रखना था. वो अभी कमसिन कच्ची कली थी. ऊपर से अपने ही मोहल्ले की थी. अपनी इज्जत के साथ साथ मुझे उसकी इज्जत, मान सम्मान का भी पूरा पूरा ध्यान रखना था.

‘ठीक है. वो नहीं बताना चाहो तो मत बताओ लेकिन इतना तो बता दो कि अपने इस अंग से खेलते खेलते तुम्हें लास्ट में कैसा फील हुआ था? जैसे उस वीडियो में उस लड़की की योनि से रस की फुहारें छूटती हैं वैसी ही पिचकारियाँ तुम्हारी चूत से भी …सॉरी चूत नहीं तुम्हारी योनी से भी निकली थीं?’ मैंने चूत शब्द जानबूझ कर कहा था.

मेरे मुंह से चूत शब्द सुनकर उसके चेहरे पर एक क्षण के लिए मुस्कान खिली फिर वो सामान्य हो गई और चुप ही रही.

‘बताओ न गुड़िया, देखो स्नेहा, अगर तुम मेरे साथ कोआपरेट नहीं करोगी तो फिर मैं तुम्हारे मुहाँसों के लिए कुछ नहीं कर पाऊंगा.’ मैंने उसकी दुखती नस पर हाथ रखा. ‘क्या बताऊँ अंकल जी?’ वो मरियल सी आवाज में बोली. ‘मैंने पूछा है कि जब तुम अपनी सूसू में उंगली या मोमबत्ती वगैरह घुसा कर अन्दर बाहर करती हो तो चरम स्थिति में पहुँच कर तुम्हारी उस जगह से रस की फुहारें छूटती हैं जैसी उस वीडियो में उस लड़की की सूसू से निकलतीं हैं?’ मैंने थोड़ा जोर देकर पूछा.

‘नहीं अंकल जी. वैसा कुछ नहीं होता. गीलापन तो खूब हो जाता है पर पिचकारी जैसी नहीं धार नहीं निकलती.’ वो धीमे से बोली.

‘हूँ हम्म्म्म…’ मैंने हुंकार भर के कुछ सोचने का नाटक किया जैसे यह बहुत गंभीर स्थिति हो स्नेहा के लिए- तभी तो मुहाँसे जा नहीं रहे हैं. देखो गुड़िया रानी. जब तक अन्दर जमा हुआ रस पूरी ताकत से पिचकारी की तरह बाहर नहीं आयेगा तब तक न तुम्हें सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त होगा और न तुम्हारा चेहरा निखरेगा!’ मैंने उसे समझाया.

‘तो अब मैं क्या करूं?’ उसने बड़ी आशा से मुझसे पूछा. ‘पहले ये बताओ कि तुम अपनी नीचे वाली में किस चीज से करती हो. उंगली से क्या किसी और वस्तु से?’ ‘कभी कभी उंगली से एक दो बार मोमबत्ती घुसा के भी…’ वो बोलकर चुप हो गई.

‘मोमबत्ती कितने अन्दर तक घुसाती हो?’ मैंने बड़ी मासूमियत से पूछा. जवाब में उसने अपनी बीच वाली उंगली खड़ी करके दिखा दी. मतलब वो अपनी चूत में बीच वाली उंगली से कुछ और ज्यादा गहराई तक मोमबत्ती घुसा के खुद को चोदती है. इसका मतलब उसने अपनी सील खुद ही तोड़ ली है.

‘हम्म्म्म… शुरुआत में एकाध बार थोड़ा खून भी निकला था?’ मैंने पूछा. ‘जी अंकल जी. एक बार निकला था. दर्द भी हुआ था. पर अब नहीं निकलता.’ वो शरमा कर बोली.

यह जानकर मुझे अफ़सोस हुआ कि उसकी चूत की सील तोड़ने का सौभाग्य मेरे लंड की किस्मत में नहीं था यह सोचते हुए मैंने गंभीरता से सोचने का नाटक किया.

‘देखो गुड़िया बेटा, तुम्हारे बदन के हार्मोन्स कामरस बहुत ज्यादा बनाते हैं और वो तुम्हारी इसमें भरा पड़ा है. जब तक वो जमा हुआ पुराना रस इस अंग से शीघ्रता से स्खलित नहीं होगा तब तक ये मुहाँसे नहीं जायेंगे.’ मैंने उसकी चूत की तरफ इशारा करके कहा.

‘अंकल जी, मैं कोशिश तो करती हूँ लेकिन उस वीडियो की तरह नहीं होता मेरा!’ वो झिझकते हुए बोली. ‘स्नेहा बेटा, जैसे उस वीडियो में उस लड़की की चूत से जो रस की फुहारें छूटती हैं वैसा स्खलन या तो सेक्स करने से होता है या फिर कोई आदमी चूत को चाटे तब होता है. सेक्स करने से या चूत को चाटने से चूत में आनन्द की हिलोरें उठती हैं जो जमे हुए पुराने रस में हिलोरें उठतीं हैं और उसमें बाढ़ लाकर उसे तेजी से चूत से बाहर बहा देती हैं,’ मैंने उसे कुटिलता से समझाया. अब मैं उसके साथ बातें करते हुए बार बार चूत शब्द का इस्तेमाल जानबूझ कर कर रहा था.

‘छीः अंकल जी. विडियो सिनेमा की बातें अलग होती हैं. ये लड़कियाँ अंग्रेजन हेरोइनों की देखादेखी पैसे के लिए कुछ भी कर लेतीं हैं, सचमुच में कोई कैसे उस गन्दी जगह पर अपना मुंह लगा सकता है?’ ‘अरे कोई जगह गन्दी होती है तो फिर साफ़ भी तो हो जाती है कि नहीं?’ ‘अंकल जी, साफ़ करने से क्या. रहेगी तो वो वही ना?’ ‘पगली है तू, अरे कोई जगह हमेशा के लिए गन्दी नहीं होती. देखो स्नेहा, टॉयलेट में खुद को साफ़ करते समय तुम्हारे हाथ भी तो गन्दे होते होंगे. लेकिन साफ़ करने के बाद कोई गन्दगी नहीं रहती, उन्ही हाथों से तुम खाना भी बनाती होती, आटा भी गूंथती होगी, पूजा भी करती होगी… है ना? और चूत को अच्छी तरह से साफ़ करके चाटा जाता है. मैं भी तो तुम्हारी आंटी की चूत खूब चाटता हूँ चोदने से पहले!’ मैंने कहा.

इस तरह बार बार चूत चुदाई जैसी बातें सुन कर भी वो कोई ऑब्जेक्शन नहीं कर रही थी, न ही उसके चेहरे से पता चल रहा था कि उसे वैसी बातें अरुचिकर लग रहीं थीं, मतलब इस तरह की नॉनवेज बातचीत उसे भी अच्छी लगने लगी थी. यही मैं चाहता भी था.

सेक्सी चुत की कहानी जारी रहेगी. [email protected]

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