Utejna Sahas Aur Romanch Ke Vo Din – Ep 61

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जस्सूजी सुनीता के जोश को देखते ही रह गए। उन्होंने कहा, “ओके, मैडम। आपका अधिकार कोई भी छीन नहीं सकता। पर आपके पति? क्या वह नाराज नहीं होंगे?”

सुनीता ने जस्सूजी की और देखते हुए कहा, “कमाल है? आप यह सवाल मुझसे पूछते हो? ज्योतिजी आपसे कुछ तो छुपाती नहीं है। मेरे पति को मेरी फ़िक्र कहाँ? कहते हैं ना की घरकी मुर्गी दाल बराबर।? मैं तो घर की मुर्गी हूँ। जब वह चाहेंगे मैं तो हूँ ही। आप मेरे पति की नहीं अपनी बीबी की चिंता कीजिये जनाब। मेरे पति आपकी बीबी के पीछे लगे हुए हैं। आगे आपकी मर्जी।”

जस्सूजी ने कहा, “मैं ज्योति की चिंता नहीं करता। वह पूरी तरह आज़ाद है। मेरी बीबी को मेरी तरह से पूरी छूट है। क्या आप को ऐसी छूट है?”

सुनीता ने कुछ खिसियाते हुए कहा, ” देखोजी, मेरा मूड़ खराब मत करो। जब मेरे पति को पता लगेगा तो देखा जाएगा। दोष तो उनका ही है। जब मैं नदी में डूबने लगी थी तो वह क्यों नहीं कूद पड़े? दुसरा उन्होंने मुझे आपकी देखभाल का जिम्मा क्यों दिया? इसका मतलब यह की वह कैसे ना कैसे मुझसे छुटकारा पाना चाहते थे। उन्होंने ज्योतिजी के साथ रहने की जिम्मेवारी ली। आपभी तो उनके षड्यंत्र में शामिल हो ना? वरना आप ज्योतिजी के साथ पिक्चर में क्यों नहीं बैठे थे? अब आप चुप हो जाओ और जो होता है उसे देखते जाओ।” ऐसा कह कर सुनीता ने हाथ बढ़ाया और जस्सूजी के पयजामा उतरने की कोशिश करने लगी।

सुनीता जस्सूजी के कपडे क्या निकालती? जस्सूजी के कपडे तो वैसे ही नकली हुए थे। मोटे डॉ. खान के बड़े कपडे शशक्त बदन वाले पर पतले मजबूत जस्सूजी को कहाँ फिट होते? कपड़ों के बटन खोलने की भी जरुरत नहीं पड़ी। निचे खिसकाते ही जस्सूजी का पयजामा निचे गिर गया। अंदर तो कुछ पहना था नहीं। जस्सूजी का अजगर सा लण्ड आधा सोया और आधा जगा बाहर सुनीता के हाथों में आ गया।

आधा सोया हुआ भी काफी लंबा और मोटा था। सुनीता ने वैसे तो उसे देखा ही था। जब सुनीता ने उसे अपने हाथों में लिया तब उसे पता चला की जस्सूजी का लण्ड कितना भरी था वह भी तब जब अभी पूरा कड़क भी नहीं हुआ था। पर अब सोचने की बात यह थी की उसे अपनी चूत में कैसे डलवायेगी? यह सवाल था।

देखने की बात और है और करने की और। बच्चे की सीज़ेरियन डिलीवरी के समय डॉक्टर ने उसकी चूत के छिद्र को टाइट सी लिया था। उसके बाद अपने पति सुनीलजी से चुदवाते भी उसे कष्ट होता था। सुनीलजी का लण्ड भी कोई कम नहीं था। पर जस्सूजी के लण्ड की बात ही कुछ और थी।

सुनीता ने तय किया था की हालांकि वह दोनों थके हुए थे और उन्हें शायद सेक्स से ज्यादा आराम की जरुरत थी, पर वह एक बार जस्सूजी से चुदवाना जरूर चाहती थी। सुनता ने जस्सूजी को कई बार हड़का दिया था। अब वह उनको एक सम्मान देना चाहती थी। माँ का वचन तो अब पूरा हो ही गया था।

सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपने हाथों में लिया और प्यार से उसे धीरे धीरे हिलाने लगी। सुनीता के हाथ में ही अपना लण्ड आते ही जस्सूजी मारे उत्तेजना से मचलने लगे। उनको महीनो का सपना शायद आज पूरा होने जा रहा था। जस्सूजी ने पलट कर सुनीता की और देखा और सुनीता के मुंह को अपने हाथों मेंपकड़ कर उसे बड़ी गर्मजोशी से चूमा।

सुनीता की आँखों में आँखें डाल कर जस्सूजी ने पूछा, “सुनीता, अगर मैं नदी में नहीं कूदता तो क्या मुझे यह मौक़ा मिलता?”

सुनीता ने मुस्काते हुए कहा, “मैं अब आपको अच्छी तरह जान गयी हूँ। ऐसा हो ही नहीं सकता की मेरी जान खतरे में हो और आप मुझे बचाने के लिए पहल ना करें। जहां तक मौके की बात है तो मेरी माँ को भी शायद इस बात का पूरा अंदेशा होगा की मेरी जिंदगी में एक नौजवान आएगा और मुझे मौत के मुंह में से वापस निकाल लाएगा। अब मेरी जिंदगी ही आपकी है तो मेरा बदन और मेरी जवानी की तो बात ही क्या? मेरी माँ ने भी यही सोचकर मुझसे वह वचन लिया था। जो आपने पूरा किया।”

जस्सूजी प्यार से सुनीता का चेहरा देखते रहे और से सुनीता की करारी गाँड़ के ऊपर प्यार से अपना एक हाथ फेरते रहे। सुनीता जस्सूजी के लण्ड में से निकल रहा प्रवाही स्राव को अनुभव कर रही थी। स्राव से जस्सूजी का लण्ड चिकनाहट से पूरी तरह सराबोर हो गया था।

सुनीता की चूत भी जस्सूजी से मिलन से काफी उत्तेजित होने के कारण अपना स्त्री रस रिस रही थी। सुनीता ने जस्सूजी की मूंछ पर होने होंठ फिराते हुए एक हाथ से जस्सूजी का लण्ड सहलाती और दूसरे हाथ से जस्सूजी की पीठ पर अपना हाथ ऊपर निचे कर के जस्सूजी के स्नायुओं का मुआइना कर रही थी। जस्सूजी का कड़ा लण्ड पूरा कड़क हो गया था।

जस्सूजी के बगल में ही लेट कर सुनीता ने अपनी बाजुओं को ऊंचा कर लम्बाया और जस्सूजी को अपनी बाँहों में आने का निमत्रण दिया। जस्सूजी पलंग पर उठ खड़े हुए। उन्होने अपना कुर्ता और पयजामा निकाल फेंका और पलंग पर लेटी हुई सुनीता की जाँघों के इर्दगिर्द, सुनीता की जाँघों को अपनी टाँगों के बिच में रखे हुए अपने घुटने पर बैठ गए। जस्सूजी सुनीता के ऊपर बैठ कर उनके बिलकुल दो जाँघों के बिच निचे लेटी हुई सुनीता के नंगे बदन को प्यार से देखने लगे।

सुनीता के चेहरे पर एक अजीब सा रोमांच का भाव था। जस्सूजी अपना लण्ड उसकी चूत में डालेंगे यह सुनीता के लिए अनोखा अवसर था। बार बार सुनीता इसी के बारे में सोच रही थी। उसने सपने में यह कई बार देखा था जब जस्सूजी अपना यह मोटा लण्ड सुनीता की चूत में डाल कर उसे चोद रहे थे। सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी उंगलियों में लेनेकी कोशिश की।

जस्सूजी का लण्ड पूरा फुला हुआ और अपनी पूरी लम्बाई और मोटाई पा चुका हुआ था। जस्सूजी का लण्ड देख कर सुनीता को डर से ज्यादा प्यार उमड़ पड़ा। कालिया का लण्ड देखने के बाद सुनीता को जस्सूजी का लण्ड बड़ा प्यारा लग रहा था। जो लण्ड स पहले सुनीता काँप जाती थी, वही लण्ड अब उसे सही लग रहा था। कालिया का गैण्डा के लण्ड के जैसा लण्ड देख कर सुनीता को यकीन हो गया की दर्द तो खूब होगा, पर वह जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में जरूर ले पाएगी।

सुनीता ने प्यार से जस्सूजी की आँखों से नजरें मिलायीं और मुस्काती हुई जस्सूजी के लण्ड को प्यार से सहलाने लगी। सहलाते सेहलाते उसे जस्सूजी पर प्यार उमड़ पड़ा और सुनीता ने जस्सूजी के सामने अपने हाथ लम्बाए और उन्हें अपने आहोश में लेने के लिए मचल उठी।

जस्सूजी ने अपना लण्ड सुनीता की चूत पर टिकाते हुए झुक कर सुनीता के होँठों से होँठ मिलाये। जस्सूजी का लण्ड सुनीता की चूत के आसपास इधर उधर फैल गया और जस्सूजी ने भी सुनीता को अपने आहोश में ले लिया। दोनों प्रेमी एक दूसरे की बाँहों में ऐसे लिपट गए और उनके होंठ ऐसे एक दूसरे से भींच गए जैसे कभी वह जुदा थे ही नहीं।

सुनीता ने जस्सूजी को फिर खड़ा किया और शर्माते हुए इशारा किया की वह अपना लण्ड सुनीता की चूत में डाले। पर आज जस्सूजी कोई ख़ास मूड़ में लग रहे थे। उन्होंने सुनीता के इशारे पर कोई ध्यान ही नहीं दिया। वह चुपचाप ऐसे ही बूत बनकर बैठे रहे जैसे कुछ सोच रहे हों। जस्सूजी की यह करतूत देखकर सुनीता झल्लायी। सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड उँगलियों में पकड़ कर उसमें हलकी सी चूँटी भरी। चूँटी भरने पर दर्द के कारण जस्सूजी के मुंह से “आउच….” निकल गया।

सुनीता ने जस्सूजी का लण्ड अपनी उँगलियों में लिया और उनकी चिकनाहट पुरे लण्ड पर फैलानी शुरू की। उसके बाद सुनीता जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत की सतह पर थोड़ी देर तक हलके से घिसती रही। जस्सूजी का हाथ सुनीता ने अपने मम्मों पर रख दिया। वह चाहती थी की जब जस्सूजी का मोटा कड़क फौलादी लण्ड सुनीता की चूत में दाखिल हो और तब जो दर्द वह महसूस करे तब जस्सूजी की उंगलियां उसकी चूँचियों के सहलाती रहे, ताकि उससे हो रही उत्तेजना में सुनीता को दर्द महसूस ना हो।

जब जस्सूजी का लण्ड काफी चिकना हो चुका तब सुनीता ने अपना पेंडू ऊपर उठाकर जस्सूजी के लण्ड को अपनी चूत में घुसेड़ने की हलकी कोशिश की। जस्सूजी ने महसूस किया की उनका लण्ड अंदर घुसने में दिक्कत हो रही थी। पर सुनीता जस्सूजी का लण्ड अपनी चूत में डलवाने के लिए बेचैन थी। जस्सूजी ने अपना लण्ड सुनीता की चूत में एक हल्का सा धक्का दे कर थोड़ा सा घुसेड़ा। सुनीता के मुंह स एक छोटी सी आह…. निकल पड़ी।

जस्सूजी सुनीता की आह सुन कर रुक गए। उन्होएँ चिंता से सुनीता की और देखा। सुनीता ने जस्सूजी के चहरे पर परेशानी के भाव देखे तो मुस्कुरायी और फिर अपना पेंडू और ऊपर उठाकर जस्सूजी को लण्ड अंदर डालने के लिए इशारा किया। जस्सूजी ने एक धक्का और दिया। धक्का देते ही जस्सूजी का लंड का टोपा सुनीता की चूत को फाड़ कर घुस गया। ना चाहते हुए भी सुनीता चीख उठी।

सुनीता की चीख सुनकर जस्सूजी नर्वस हो गए और अपना लण्ड बाहर निकाल लिया।

जब जस्सूजी ने अपना लण्ड बाहर निकाला तो सुनीता बड़ी झल्लायी। पर फिर उसे जस्सूजी पर प्यार भी आया। सुनीता ने जस्सूजी से प्यार से कहा, “मेरे राजा! यह क्या कर रहे हो? डालो अंदर। मेरी चिंता मत करो। मैं तो ऐसे चीखती रहूंगी। प्लीज चोदो ना मुझे!”

सुनीता की बात सुनकर जस्सूजी मन में ही मुस्काये। औरतों को समझना बड़ा मुश्किल होता है। जस्सूजी ने धीरे से अपना लण्ड सुनीता की चूत में घुसेड़ा और एक हल्का सा धक्का मारा। सुनीता ने अपनी आँखें मूँद लीं। जस्सूजी ने फिर एक धक्का और मारा। सुनीता के कपाल पर पसीने की बूँद दिखाई देने लगी।

सुनीता का हाल देख कर जस्सूजी थोड़ा घबरा से गए और झुक कर सुनीता से पूछा, “क्या चालु रखूं?”

सुनीता ने अपनी आँखें खोलीं और मुस्करा कर थोड़ा सा हाँफते हुए बोली, “जस्सूजी, आपने कभी किसी औरत को बच्चे को जनम देते हुए देखा है? आज मुझे भी ऐसा ही महसूस हो रहा है। यह दर्द नहीं सुख है मेरे लिए। जैसे आप और आपके जवान देश के लिए जखम खा कर भी हँसते हैं, वैसे ही आज मुझे आप मत रोकिये। आज मैं आपसे चुदकर जैसे माँ को दिया हुआ मेरा प्रण साकार कर रही हूँ। प्लीज आप चोदिये मुझे मत रुकिए।”

जस्सूजी ने दिए धीरे अपना लण्ड अंदर घुसेड़ना जारी रखा। उनकी नजर सुनीता के चेहरे पर हर वक्त टिकी रहती थी। सुनीता ने भी जब यह देखा तो अपना दर्द छुपाते हुए वह मुस्कुराने लगी और कृत्रिम दिखावा करती रही की जैसे उसे कोई दर्द नहीं हुआ। पर अपने कपाल पर इकट्ठा हुआ पसीना कैसे छुपाती? वह सुनीता के दर्द की चुगली कर देता था। जस्सूजी सुनीता की जांबाजी पर फ़िदा हो गए। भगवान् ने औरतों को कैसा बनाया है? इतना सहन करने पर भी वह अपने चेहरे पर एक सिकन भी नहीं आने देती?”

जस्सूजी ने धीरे हिरे सुनीता की चूत में अपना लण्ड ज्यादा गहरा घुसेड़ना जारी रखा। एक धक्का मारते ही उनका आधा लण्ड सुनीता की चूत के सुरंग में घुस गया। जस्सूजी ने देखा की उनके धक्के से सुनीता पलंग से ही उछल पड़ी। उसके मुंह से एक बड़ी जोर से चीख निकलने वाली ही थी पर सुनीता ने बड़ी जबर्दश्त कोशिश कर उसे रोक ली। जस्सूजी सुनीता की सहनशीलता देख हैरान रह गए। उन्हें पता था की सुनीता को कितना ज्यादा दर्द अनुभव हो रहा होगा।

उनके लण्ड को सुनीता की चूत ने जितनी मजबूत पकड़ से जकड़ा हुआ था उससे यह पता लगाना मुश्किल नहीं था की सुनीता की चूत की त्वचा को कितना ज्यादा चौड़ा और खींचना पड़ रहा होगा। यह भगवान् की ही दें है की औरत की चूत को भगवान् ने पता नहीं कितनी माहिम और मजबूत चमड़ी से बनाया होगा की इतनी ज्यादा हद तक चौड़ी हो सकती थी। इतनी ज्यादा खिंचाई होने के कारण सुनीता को कितना दर्द महसूस हो रहा होगा इसकी कल्पना करना भी मुश्किल था।

जस्सूजी सुनीता को इतना दर्द नहीं देना चाहते थे। पर दो चीज़ें उनको मजबूर कर रहीं थीं। पहले तो सुनीता का दुराग्रह। सुनीता उनसे चुदवाना चाहती थी। बस आगे पीछे कोई बात वह सुनने के लिए तैयार नहीं थी।

दुसरा जस्सूजी का साला कमीना लण्ड। पता नहीं इससे पहले किसी भी औरत के लिए उसने इतना तूफ़ान नहीं मचाया था। पर सुनीता को देखते ही (भले ही वह पूरी तरह कपडे पहने ही क्यों ना हो?) जस्सूजी का लण्ड ऐसे फनफनाने लगता था जैसे कोई कई महीनों से भूखा आदमी अपने सामने स्वादिष्ट मनपसंद व्यंजनों से भरा हुआ थाल देख कर फनफनाता है।

जस्सूजी के इस लण्ड घुसाने की प्रक्रिया दरम्यान सुनीता की आँखें बंद ही रही थी। कभी कभी सुनीता की भौंहें सिकुड़ जातीं थीं। फिर जस्सूजी कहीं देख ना ले यह डर से वह अपने चेहरे पर एक मुस्कान ला देती थी।

सुनीता की चूत की सुरंग में जैसे जैसे जस्सूजी का लण्ड घुसता गया, वैसे वैसे सुनीता के अंगों में फड़कन और रोमांच बढ़ता ही जा रहा था। “मेरे परम प्रिय, मेरे पति के सामान मेरे सर्वस्व से चुदाई करवाके उनके जहन में आनंद देकर मेरा जीवन आज धन्य हो गया।” ऐसे विचार बार बार सुनीता के मन में आते रहे।

अपने प्रियतम का लण्ड अपनी चूत में महसूस करके वह अपने आपको धन्य अनुभव कर रही थी। सुनीता ने अपनी जिंदगी में पहले कभी ऐसा सोचा भी नहीं था की किसी पराये मर्द से चुदवा कर वह कभी इस तरह अपने आपको धन्य महसूस करेगी।

जस्सूजी के लण्ड का एक एक धक्का दर्द के साथ सुनीता को एक गजब आनंद का अनुभव करा रहा था। साथ साथ में जस्सूजी के हाथों में अपने स्तनों को दबवा कर वह आनंद को कई गुना बढ़ा रही थी।

सुनीता को चोदने की ख्वाहिश दिल में लिए हुए जस्सूजी पता नहीं शायद सदियों से सुनीता की चूत के दर्शन चाहते रहे होंगे। शायद कई जन्मों से ही उनके मन में सुनीता को चोदने कामना रही होगी।

क्यूंकि उन्होंने इससे पहले किसी भी औरत को चोदने के बारेमें इतनी उत्कटता और बेचैनी नहीं महसूस की थी। जब जब भी सुनीता ने उन्हें चोदने से रोका तो उन्हें अपने दिल के कई हजार टुकड़े हो गए हों ऐसा लगता था। उनके जहन में इतनी जलन और बेरुखी होती थी जैसे उनके जीवन में कोई रस रहा ही नहीं हो।

जब सुनीता ने सामने चलकर उन्हें चोदने के लिए आमंत्रित किया तो उन्हें लगा जैसे कोई अकल्पनीय घटना घट रही हो। उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था की सुनीता इस जनम में तो उनसे कभी चुदवायेगी। उन्होंने तो यह अपने मन से मान ही लिया था की शायद उन्हें सुनीता को चोदने का मौक़ा अब अगले जनम में ही मिलेगा। इस लिए जस्सूजी के लिए तो यह मौक़ा जैसे पुनर्जन्म जैसा था।

उनको यकीन ही नहीं हो रहा था की वाकई में यह सब हो रहा था। उन्हें यह सारी घटना एक सपने के सामान ही लग रही थी। और क्यों ना लगे भी? जिस तरह सारी घटनाएं एक के बाद एक हो रहीं थीं, ऐसा ज़रा भी लगता नहीं था की क्या सच था और क्या सपना? हर एक पल, हर एक लम्हा उत्तेजना और रोमांच के साथ साथ रहस्य से लबालब भरा हुआ था। अगले पल क्या होगा किसीको भी कल्पना नहीं थी।

जब सो रहे थे तब सपना भी वास्तविक लगता था और जब जागते हुए कुछ होता था तो ऐसा लगता था जैसे सपना देख रहे हों। जस्सूजी के लिए सुनीता का उनसे चुदाई के लिए तैयार होना भी एक ऐसी ही घटना थी।

बने रहिएगा.. क्योकि यह कहानी आगे जारी रहेगी!

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